इमाम ख़ुमैनी, इस्लामी जुमहूरिया की रूह हैं। अगर इस्लामी जुमहूरिया से यह रूह ले ली जाए और इसे नज़रअंदाज़ किया जाए तो यह व्यवस्था बेजान तसवीर बनकर रह जाएगी।

आज मेरी गुफ़्तगू प्रिय व महान इमाम की शख़्सियत के पहलुओं के बारे में है, बहुत कुछ बातें हैं जो अभी तक बयान नहीं हुयी हैं।

इश्क़ के बारे में जितना भी बयान करुं

जब इश्क़ की हालत में होता हूं शर्मिंदा हो जाता हूं कि कुछ बयान ही नहीं कर सका

हमारे महान इमाम की शख़्सियत के बहुत से पहलु अभी तक पहचाने नहीं गए। अस्ल में हमारी मौजूदा नस्ल, ख़ास तौर पह हमारी जवान नस्ल, प्रिय इमाम को सही तरह से नहीं पहचानती। इमाम की महानता को नहीं जानती। इमाम की मुझ जैसे नाचीज़ से तुलना करते हैं जबकि बहुत ज़्यादा अंतर है। मीलों का फ़ासला है।

इमाम सिर्फ़ कल के इमाम नहीं थे, इमाम आज और आइंदा कल के भी इमाम हैं। इमाम की नसीहतें, दूसरे चरण में मुल्क के संचालन का रोडमैप हैं।

नौजवान नस्ल के लिए इमाम की पहचान इसलिए अहमियत रखती है कि उनकी, भविष्य में मुल्क को बेहतरीन तरीक़े से चलाने में मदद करेगी। इमाम सिर्फ़ कल के इमाम नहीं थे, इमाम आज भी हैं, इमाम कल भी हैं।

हमारी होशियार नौजवान नस्ल को जो इस क्रांति के दूसरे चरण के क्रांतिकारी क़दम उठाने और क़ौमी ज़िम्मेदारी लेने वाली है, उसे क्रांति के सही रास्ते को तय करने के लिए एक सही गाइडलाइन की ज़रूरत है। एक व्यापक व भरोसेमंद गाइडलाइन की जो उसकी मदद कर सके। वह गाइडलाइन जो तेज़ी ते आगे बढ़ाए, मदद करे, यहाँ तक कि कुछ मौक़ों पर पूरी तरह बदलाव ले आए, वह इमाम की नसीहतें हैं। उन नसीहतों को इमाम की ज़बान से निकलने वाली बातों से भी, उनके अमल से भी हासिल किया जा सकता है।

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