सवालः हर शख़्स के लिए फ़ितरे की मेक़दार कितनी है?

जवाबः ज़रूरी है कि इंसान अपने और हर उस शख़्स के लिए जो उसकी सरपरस्ती (केफ़ालत) में है, प्रति व्यक्ति एक साअ (क़रीब-3 कीलो) गेहूं, जौ, खजूर, किशमिश, चावल या मकई वग़ैरह में से कोई एक चीज़ फ़ितरे के तौर पर मुस्तहक़ को दे और अगर इनमें से किसी एक की क़ीमत भी अदा कर दे तो काफ़ी है।

 

सवालः इस बात के मद्देनज़र कि ज़काते फ़ितरा उस माल से अदा करना ज़रूरी है जो निकाल कर अलग किया गया हो, क्या जायज़ है कि मुस्तहक़ को फ़ितरा बैंक एकाउंट में ट्रांस्फ़र के ज़रिए दिया जाए?

जवाबः अगर आपने फ़ितरे की रक़म निकाल कर अलग नहीं रखी, तो मुस्तहक़ के बैंक एकाउंट में रक़म ट्रांस्फ़र करके फ़ितरे की नियत कर सकते हैं, अगर पहले से ही फ़ितरे की रक़म अलग करके रखी हुई हो तो मुस्तहक़ को वही रक़म देना होगी।

 

सवालः हम फ़ितरा अदा करना भूल गए हैं, इसका क्या हुक्म है?

जवाबः अगर आपने फ़ितरा अलग करके रखा हुआ है तो उसी को दें और अगर अलग नहीं किया है तो एहतियाते वाजिब की बिना पर अदा और क़ज़ा की नियत के बिना, क़ुर्बत की नियत के साथ अदा करें।

 

सवालः क्या ईदुल फ़ित्र की रात (माहे रमज़ान के आख़िरी रोज़े के बाद वाली रात) आए हुए मेहमान का फ़ितरा मेज़बान के ज़िम्मे है?

जवाबः एक रात का मेहमान नान ख़ोर (यानी जिसका खाना पीना उस इंसान के ज़िम्मे है) शुमार नहीं होता, लेहाज़ा मेज़बान पर उसका फ़ितरा देना वाजिब नहीं है, लेकिन अगर कोई ईद की रात के अलावा भी कुछ मुद्दत से किसी का मेहमान हो और आम तौर पर नानख़ोर शुमार होता है, तो मेज़बान पर उसका फ़ितरा देना वाजिब है।

सवालः फ़ितरा अलग करने और अदा करने का क्या वक़्त है?

जवाबः माहे शव्वाल का चाँद साबित होने के बाद, फ़ितरा निकाल कर अलग रख सकते हैं, लेकिन जो शख़्स ईद की नमाज़ पढ़ता है, एहतियाते वाजिब की बिना पर ईद की नमाज़ से पहले अदा करे या अलग करके रखे और अगर ईद की नमाज़ नहीं पढ़ता तो ईदुल फ़ित्र के ज़ोहर तक अदा कर सकता है।

 

सवालः जो शख़्स पूरे साल अपने खाने में ज़्यादातर चावल का इस्तेमाल करता रहा क्या उसके लिए ज़रूरी है कि फ़ितरे में चावल या उसकी रक़म निकाले?

जवाबः फ़ितरा अगर गेहूं, जौ, खजूर, चावल वग़ैरा जैसी चीज़ों से निकाला जाए या उसकी क़ीमत दे दी जाए तो काफ़ी है। इस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उस व्यक्ति का असली आहार पूरे साल क्या रहा।