''हमारा नज़रिया यह है कि इन्क़ेलाब, पैग़म्बरे इस्लाम के मिशन की एक कड़ी है।''

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई के इस जुमले को, ईरान के इस्लामी इन्क़ेलाब के बारे में सबसे सही परिभाषा कहा जा सकता है। वह इन्क़ेलाब जिसमें ईरान की क़ौम, इमाम खुमैनी जैसी बड़ी हस्ती के पीछे खड़ी हो जाती है। यह इंक़ेलाब इलाक़े की सब से अहम जगह यानि ईरान में कई हज़ार साल की दक़ियानूसी बादशाहत की इमारत को गिरा देता है और उसकी जगह पर एक शानदार इस्लामी इमारत खड़ी कर देता है, तो इस तरह का इन्क़ेलाब यक़ीनी तौर पर पैग़म्बरे इस्लाम के मिशन की ही एक कड़ी है। ''पैग़म्बर के मिशन की दो बुनियादें हैं एक उसका दीनी होना और दूसरे तानाशाही के ख़िलाफ़ संघर्ष।''

यहां यह समझना ज़रूरी है कि 'तानाशाह' कौन है? ''हमारा इन्क़ेलाब और हमारा सिस्टम, बुनियादी तौर पर अमरीका के खिलाफ वजूद में आया है।''

यह सही है कि ईरान के इस्लामी इन्क़ेलाब ने पहलवी बादशाहत को समेट दिया लेकिन यह लड़ाई, सिर्फ पहलवी बादशाहत के खिलाफ नहीं थी, बल्कि यह, अमरीका की दख़लअंदाज़ी और रसूख़ के खिलाफ़ भी थी जो ईरानी कौम की रीढ़ की हड्डी तक घुसा हुआ था।

इस बुनियाद पर कि तानाशाही का मतलब अमरीका है जब हम यह कहते हैं कि इन्क़ेलाब, पैग़म्बरी मिशन का सिलसिला है तो इसका मतलब यह होता है कि ईरानी क़ौम का इन्क़ेलाब, दीनी पहलु और अमरीका की मुख़ालेफ़त के पहलु पर आधारित था। क्योंकि अमरीका हमारे मुल्क में फिरऔन बना बैठा था तभी ज़माने के मूसा ने आकर इस फिरऔन के तख़्तोताज और उसके पिछलग्गुओं का बोरिया बिस्तर समेट दिया। इस तरह हमारी क़ौम ने अमरीका को इस मुल्क से खदेड़ दिया।

अगर हम सन 1953 से सन 1978 के बीच अमरीका की कार्यवाहियों पर ग़ौर करें तो यह हक़ीक़त सामने आएगी कि इन 25 बरसों के दौरान ईरानी क़ौम की सभी मुसीबतों, निर्वासन, टार्चर, सज़ाए मौत, लूट-मार और ट्रेजडियों के पीछे अमरीका का हाथ रहा है। सीधे या किसी और तरीक़े से उसका कोई न कोई रोल ज़रूर रहा। हालांकि इन्क़ेलाब, पहलवी शाही सरकार के ख़िलाफ़ था लेकिन इस सरकार के पीछे अमरीकी खड़े थे, वह शाही सरकार को मज़बूत कर रहे थे और इस सरकार के सहारे पूरे मुल्क पर क़ब्ज़ा किये हुए थे। यानि ईरान पूरी तरह से अमरीका की मुट्ठी में था। मुल्क का हर अहम डिपार्टमेंट, अमरीका की मर्ज़ी से चलता था। यहां तक नौबत पहुंच गयी थी कि अमरीकी बड़े मामले सीधे तौर पर अपने हाथों में लेने लगे और सन 1954 में उन्होंने इमाम खुमैनी को मुल्क से निकाल दिया।

लेकिन जो चीज़ ईरान के इन्क़ेलाब के अमरीका के ख़िलाफ़ होने की बात को साबित करती है वह यह सच्चाई है कि क़ुम के लोगों के सड़कों पर निकलने से लगभग एक हफ्ता पहले, उस वक़्त के अमरीका के प्रेसीडेंट जिमी कार्टर ने तेहरान में पहलवी हुकूमत और मुहम्मद रज़ा का साथ देने का एलान किया और उसी के बाद ईरान के लोगों ने अमरीका और साम्राज्यवाद के खिलाफ पूरे ईरान में जारी मिशन को चोटी तक पहुंचा दिया और एक साल पूरा होते होते उन सब का ईरान से सफाया कर दिया।

अमरीका ईरानियों का दुश्मन क्यों है?

इन्क़ेलाब के बाद ईरानियों से अमरीका की दुश्मनी की वजह भी यही है। सुप्रीम लीडर कहते हैं कि “इस्लामी हुकूमत के ख़िलाफ़ दुश्मनी की वजह यह है कि इस्लामी हुकूमत ने आकर ईरान से अमरीका को  बाहर निकाल दिया सारी वजह यही है। इन्हें ग़ुलाम चाहिए होते हैं, इस्लामी हुकूमत ने इन्हें अपनी ताक़त दिखायी जिसे यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। ईरानियों से उनकी दुश्मनी की वजह यह है कि ईरानी इस्लाम और इस्लामी सिस्टम की हिफ़ाज़त के लिए डटे हुए हैं। इस लिए अमरीकियों और उनके साथियों की ओर से जो कुछ भी किया जा रहा है वह ईरानियों को घुटने टेकने पर मजबूर करने के लिए है। ईरानियों को बेइज़्ज़त करने के लिए है।“

इसके अलावा भी “अमरीकियों को, इस्लामी हुकूमत से हट कर मुल्कों के अपने पैरों पर खड़े होने से भी परेशानी है।“ इसका सब से खुला नमूना, ईरान का ऑयल नेशनलाइज़ेशन मूवमेंट था। इस मूवमेंट का मक़सद, मुल्क को अपने पैरों पर खड़ा करना था लेकिन उसे अमरीकियों की ओर से की जाने वाली बग़ावत से कुचल दिया गया।

 

इन्क़ेलाब को बदलने की कोशिश

दूसरी तरफ कुछ लोगों का यह ख्याल है कि हम ईरानियों के ख़िलाफ़  जो दुश्मनी है उसकी वजह यह है कि हमने झगड़ा किया। यह गलत सोच हिस्ट्री से नावाक़ेफ़ियत का नतीजा है। ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका की दुश्मनी की तारीख और ईरानी क़ौम के तजरुबे से पता चलता है कि जब ईरान का अमरीका से कोई झगड़ा ही नहीं था तब भी वह ईरान के ख़िलाफ़ साज़िशों में लगा हुआ था। ईरानी कौम से अमरीका की दुश्मनी की गहरायी बताने वाला एक बेहद कड़वा तारीखी तजरुबा यह था कि, इस्लामी इन्क़ेलाब की कामयाबी के शुरुआती महीनों में ही, अमरीकी सीनेट ने इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के ख़िलाफ़ एक कड़ा बयान जारी किया और एक बिल मंज़ूर किया और इस तरह से अमरीका ने खुल कर दुश्मनी ज़ाहिर कर दी यह उस वक़्त की बात है जब ईरान में अभी अमरीकी एंबेसी खुली हुई थी।  

वेस्ट से मुहब्बत करने वाले गलत राह पर चलते हुए यह भी समझते हैं कि अमरीका की दुश्मनी से बचने का एकलौता रास्ता, उससे ताल्लुक़ात और दोस्ती है जबकि ईरानी कौम के इन्ही तारीखी तजरुबों  से पता चलता है कि अमरीका से दोस्ती ईरान और इस्लामी जुम्हूरिया से उनकी दुश्मनी को कम नहीं कर सकी। “जो लोग यह समझते हैं कि अमरीका से रिलेशन और उससे दोस्ती, अमरीका की दुश्मनी और उससे होने वाले नुकसान से बचा लेगी उन्हें इस कड़वे तारीखी तजरुबे के बारे में पढ़ना चाहिए।“

   

अमरीकी क़ौम अमरीका के ख़िलाफ़ लड़ाई के अगले मोर्च पर डटी है

इस तरह के कुछ लोगों की सोच के सामने ईरान की क़ौम, अमरीका के ख़िलाफ़ अपने मज़बूत इरादे पर डटी हुई है और उसका मानना है कि इन्क़ेलाब के दौरान वेस्ट और अमरीका के ख़िलाफ़ उसकी राय की बुनियाद एक सही तजरुबा, एक सही राय और सही सोच है।“ईरानी क़ौम, इन्क़ेलाब से पहले वाली लड़ाई  की अपनी राह पर जमी हुई है और इसी राह पर आगे बढ़ रही है। चूंकि इन्क़ेलाब, एक जारी रहने वाली चीज़ है, हमेशा बाक़ी रहने वाली सच्चाई है, कभी ख़त्म नहीं होती, इस लिए ईरानी क़ौम की अमरीका के ख़िलाफ़ लड़ाई भी, तानाशाही और सब से बड़े शैतान के खिलाफ मुकम्मल जीत तक जारी रहेगी।