वैश्विक मामलों में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के अनुभव के मद्देनज़र वे हमेशा इस बात पर ज़ोर देते हैं कि विदेश नीति में हमेशा संतुलन का मार्ग अपनाना चाहिए, यानी इस्लामी गणराज्य ईरान की स्वाधीनता, संप्रभुता व अखंडता की रक्षा के लिए “न पूरब, न पश्चिम” की नीति पर भी अमल करना चाहिए और दुनिया के सभी इलाक़ों से संबंधों की भी रक्षा करनी चाहिए।

21वीं सदी, एशिया की सदी

निश्चित रूप से 21वीं सदी एशिया की सदी है। इस्लामी गणराज्य ईरान ने हमेशा एशिया पर ख़ास ध्यान दिया है। एशिया में और रूस, चीन, भारत, पाकिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया व उपमहाद्वीप के देशों में भी अभी ऐसी अहम और अनजान क्षमताएं व संभावनाएं हैं जिनसे हम एशिया के इस इलाक़े साथ अपनी समानताओं के मद्देनज़र, लाभदायक सहयोग कर सकते हैं।

जैसा कि इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता भी ज़ोर देते हैं, हम विदेश नीति में अपने देश के राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए पूरब को पश्चिम पर और पड़ोसी को दूर के देशों पर प्राथमिकता देते हैं। यह बात स्पष्ट है कि इन देशों से संबंध, जिनके साथ हमारे साझा हित है, उन देशों से संबंधों पर प्राथमिकता रखते हैं जिनके हित, संभव है कि हमारे हितों से टकरा जाएं।

ईरान के रणनैतिक संबंधों पर वाइट हाउस के परिवर्तनों का कोई असर नहीं पड़ेगा

ईरान की संसद मजलिसे शूराए इस्लामी के स्पीकर का रूस का दौरा भी कुछ भूमिकाओं के साथ हुआ। देश की 11वीं संसद का शुरू होने के पहले हफ़्ते में मिस्टर वियाचिस्लाव वूलवोदिन ने, जो राष्ट्रपति पुतीन के क़रीबी लोगों में से एक और रूसी संसद के स्पीकर हैं, अपने विशेष दूत को ईरान की नई संसद का काम शुरू होने की बधाई देने के लिए तेहरान भेजा। उनके पास स्पीकर के रूस के दौरे का सरकारी निमंत्रण पत्र था।

पुतीन के रूस और सोवियत संघ के रूस में बुनियादी अंतर है

पुतीन का रूस, सोवियत संघ और कम्यूनिज़म का पूर्वी ब्लॉक नहीं है। पुतीन का रूस, पुतीन से पहले वाले रूस से भी काफ़ी अलग है। रूस जैसे देशों से सहयोग को बढ़ा कर और उसे मज़बूत बना कर हमें निश्चित तौर पर फ़ायदा हासिल होगा। ईरान व रूस के संबंधों की गुमशुदा कड़ी, इन दोनों देशों के लोगों की क़रीब से पहचान न होना है। दोनों देशों की अहम सांस्कृतिक विशेषताएं और दोनों समाजों की सही पहचान, आर्थिक व व्यापारिक क्षेत्रों और इसी तरह अन्य मैदानों में आपसी सहयोग को मज़बूत बनाने की राह समतल कर सकती है। कोरोना से मुक़ाबले में अनुभवों के आपसी लेन-देन और वैकसीन की तैयारी से लेकर आर्थिक, व्यापारिक, फ़िशरीज़, प्रतिरक्षा व सुरक्षा, राजनीति, सड़क व रेलवे, यहां तक कि बिजली घरों के निर्माण तक में दोनों देश एक दूसरे से सहयोग कर सकते हैं जो कि ईरान व रूस के बीच नया व अहम सहयोग होगा।