जब हमारे पास पाकीज़ा डिफ़ेंस के ज़माने जैसे नौजवान हों तो नतीजा यक़ीनी प्रगति के रूप में निकलता है। यानी दुनिया की सारी ताक़तें लामबंद हो गईं कि ईरान के टुकड़े कर देना है, मगर मुल्क की एक बालिश्त ज़मीन भी न ले सकीं। यह मामूली चीज़ है? यह छोटी कामयाबी है?
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 9 जनवरी 1978 को क़ुम के अवाम के तारीख़ी विद्रोह की सालगिरह पर इस शहर के अवाम से सोमवार की सुबह तेहरान में मुलाक़ात की। उन्होंने क़ुम के अवाम के 9 जनवरी 1978 के तारीख़ी विद्रोह की ओर इशारा करते हुए, इसे तारीख़ का रुख़ बदल देने वाली घटनाओं में क़रार दिया और इसकी याद को बाक़ी रखने पर ताकीद की।
इन लोगों ने इन सेंटरों को निशाना बनाया कि इन्हें बंद कर दें ताकि इल्म हासिल न किया जा सके। सेक्युरिटी न रहे, इल्म हासिल न हो सके। ये लोग कमज़ोर पहलुओं को ख़त्म नहीं करना चाहते थे, ये, मज़बूत कामों को ख़त्म करना चाहते थे।