01/01/2024
औरत जैसे बहुत ही अहम व निर्णायक विषय पर पश्चिमी सभ्यता की नीति व नज़रिया दो लफ़्ज़ों में सीमित हैः मुनाफ़ा कमाना और लज़्ज़त उठाना।
15/05/2023
बीवी के रोल में औरत सबसे पहले तो सुकून की प्रतीक है। और उसी (की जिन्स) से उसका जोड़ा क़रार दिया ताकि ‎‎(उसके साथ रहकर) सुकून हासिल करे। (सूरए आराफ़ 189) क्योंकि ज़िंदगी में उतार चढ़ाव होता है। मर्द ज़िंदगी के ‎समंदर में कामों और थपेड़ों से रूबरू होता है। जब घर आता है तो उसे सुकून और चैन की ज़रूरत होती है। घर में ‎यह सुकून औरत पैदा करती है। ‎ इमाम ख़ामेनेई 4 जनवरी 2023
14/01/2023
औरत इस्लामी माहौल में तरक़्क़ी करती है और उसकी औरत होने की पहचान बाक़ी रहती है। औरत ‎होना औरत के लिए फ़ख़्र की बात है। यह औरत के लिए फ़ख़्र की बात नहीं है कि हम उसे ज़नाना ‎माहौल, ज़नाना ख़ुसूसियतों और ज़नाना अख़लाक़ से दूर कर दें और गृहस्थी को, बच्चों की परवरिश ‎को, शौहर का ख़्याल रखने को उसके लिए शर्म की बात समझें। इमाम ख़ामेनेई 12 सितम्बर 2018
07/01/2023
आप अपने इल्म और स्पेशलाइज़ेशन के ज़रिए, समाजी, सियासी और काम के मैदानों में अपनी सेवा ‎के ज़रिए, माँ के किरदार को जो सबसे पाक और अच्छा रोल है, अपने ज़िम्मे लेकर, बच्चों की ‎तरबियत और परवरिश करके, अपनी आगे की ज़िन्दगी में मुल्क के भविष्य और इन्क़ेलाब की सबसे ‎बड़ी ख़िदमत कर सकती हैं। इमाम ख़ामेनेई 23 सितम्बर 1986‎
09/12/2022
वरिष्ठ धर्मगुरू हुज्जतुल इस्लाम नासिर रफ़ीई आली की स्पीच का एक भाग हुज्जतुल इस्लाम नासिर रफ़ीई ने तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में अपनी तक़रीर में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के महान किरदार को बयान किया और इस्लाम में अलग अलग मंचों पर महिलाओं के आदर्श योगदान के बारे में बताया। साथ ही इसकी शर्तों पर भी प्रकाश डाला।
07/11/2022
वतन को बचाने के लिए मोर्चे पर जाने वाले मुजाहेदीन की बीवियां दुखी हुयीं और वे रोईं कि वह ‎क्यों जंग के मैदान में नहीं जा सकतीं, उन्होंने सब्र किया और अपने घरों में बैठी रहीं और मोर्चे के ‎पिछले हिस्से को संभाल लिया, फिर जब वह मुजाहिद शहीद हो गया तो उन्होंने शुक्र अदा किया और ‎अपने शहीद की शहादत पर फ़ख़्र किया! यह वह चीज़ है जिससे किसी तहरीक का शोला मुसलसल ‎जलता रहता है। इमाम ख़ामेनेई 1 जनवरी 1992‎
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