जिस तरह चौबीस घंटों में नमाज़ के वक़्त इस लिए रखे गये हैं कि इन्सान, कुछ देर के लिए दुनियावी चीज़ों से बाहर आ जाएं, उसी तरह साल में रमज़ान का महीना भी वह मौक़ा है।
हमारी क़ौम ने साम्राज्य के मुक़ाबले में झुकने के बजाए प्रतिरोध का रास्ता चुना, यही सही फ़ैसला था। जब हम दुनिया के हालात को देखते हैं तो महसूस होता है कि यह फ़ैसला बिल्कुल दुरुस्त था।
इंसानी कारवां के सफ़र के ख़त्म होने की जगह के बारे में आसमानी धर्मों का अक़ीदा और नज़रिया बड़ा उम्मीद बख़्श है। वाक़ई इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर का मुंतज़िर रहना, इस्लामी समाज के लिए उम्मीद का दरीचा है।
इमाम ख़ामेनेई की स्पीच का एक भाग
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पैदाइश का दिन अज़ीम दिन है। तीन शाबान की महानता को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की महानता की एक झलक के तौर पर देखने की ज़रूरत है।
इमाम ख़ामेनेई
12 जून 2013
वह पुलिस जिसने तौहीन की है, ख़ुद आकर माफ़ी मांगने पर और इस तस्वीर को शहर में कई जगहों पर दोबारा लगाने की लोगों की मांग मानने पर मजबूर हो जाती है। यह
मॉडल, आकर्षक है।
इमाम ख़ामेनेई
17 फ़रवरी 2022
इल्म, ताक़त है साइंस सच में ताक़त और वर्चस्व है। यह जो मश्हूर शेर है “जो इल्म वाला होगा वह ताक़तवर होगा” वह बिल्कुल सही है। ताक़तवर होगा जो आलिम होगा। साइंस किसी भी मुल्क के लिए ताक़त है, यह मुल्क को ताक़तवर बनाती है। हमने साइंस के बहुत से मैदानों में ऐसी तरक्क़ी की है जिसके बारे में हम इन्क़ेलाब के शुरु में सोच भी नहीं सकते थे।
इमाम ख़ामेनेई
17 फ़रवरी 2022
हज़रत अली (अ.स.) की शख़्सियत वह है कि अगर आप शिया हैं तब भी उनका एहतेराम करेंगे, अगर सुन्नी हैं तब भी उनका एहतेराम करेंगे, मुसलमान नहीं हैं तब भी अगर आप इस हस्ती से वाक़िफ़ हैं और उनकी ज़िंदगी के हालात से आगाही रखते हैं तो उनका एहतेराम करेंगे।
इमाम ख़ामेनेई,
20 सितम्बर 2016
बदलाव लाना दीन की सब से बड़ी ज़िम्मेदारी थी। आशूरा का पैग़ाम भी बदलाव और इन्क़ेलाब का पैग़ाम है। हमारे दौर में इस तरह के बदलाव का एक नमूना, ईरान का इस्लामी इन्क़ेलाब है। इस्लामी इन्क़ेलाब के अज़ीम, रहनुमा इमाम खुमैनी ने बदलाव के इस सिलसिले को आगे बढ़ाया और सिर्फ ईरान को ही नहीं बल्कि पूरी इस्लामी दुनिया को बदल कर रखा दिया।
अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) अपने चचा, भाई और चचेरे भाई के साथ बैठे और एक बाद का अहद किया कि हम इस राह में शहीद हो जाने तक बिना डरे आगे बढ़ते रहेंगे, शहीद हो जाने तक जेहाद करते रहेंगे। इसके बाद अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) फ़रमाते हैं, मेरे यह साथी मुझसे आगे निकल गए और मैं पीछे रह गया। ख़ुदा की क़सम मैं मुंतज़िर हूं।
हज़रत हम्ज़ा (अ.स.) वाक़ई पैग़म्बरे इस्लाम के मज़लूम सहाबी हैं। इस बड़ी हस्ती को आज तक सही तौर पर पहचाना नहीं गया। उनका नाम ज़्यादा नहीं लिया जाता। उनके बारे में बहुत ज़्यादा मालूमात नहीं है। वह वाक़ई मज़लूम हैं।
इस्लामी क्रांति की सफलता की 43वीं सालगिरह और इस उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले दस दिन के देश व्यापी जश्न की शुरुआत के अवसर पर इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई बहिश्ते ज़हरा नामक क़ब्रस्तान में स्थित इमाम ख़ुमैनी के पवित्र मज़ार पर पहुंचे और नमाज़ व क़ुरआन पढ़ कर, ईरानी राष्ट्र के महान नेता को श्रद्धांजली दी।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने 28 जून 1981 की घटना के शहीदों के मज़ारों पर उपस्थित हो कर अल्लाह से उनके दर्जों की बुलंदी की दुआ की।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई इसके बाद अन्य शहीदों के क़ब्रस्तान, गुलज़ारे शोहदा गए।
उनका तज़केरा तो क़ुरआने मजीद और मोतबर हदीसों ने किया है। उनकी बहुत सी फ़ज़ीलतों को बयान किया है कि जिन्हें समझने के लिए भी हमें बहुत ज़्यादा सोचने और ग़ौर करने की ज़रूरत है। यह जो रवायत है कि जिबरईल, पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.अ.) के पास आते थे, यह रवायत सही है।
इमाम ख़ामेनेई
23 जनवरी 2022
हज़रत ज़हरा पूरी रात इबादत और गिरया करती हैं। इमाम हसन अ.स. सवाल करते हैं कि आपने पूरी रात इबादत की और सिर्फ़ दूसरों के लिए दुआ की। हज़रत ज़हरा स.अ. कहती हैं कि बेटा पहले पड़ोसी फिर घर वाले।
इमाम ख़ामेनेई
15 फ़रवरी 2020
एनीमेशनः ‘इंतेक़ाम यक़ीनी है’ दरअस्ल शहीद सुलैमानी के क़त्ल का हुक्म देने वालों और इसे अंजाम देने वालों से इंतेक़ाम के इरादे और संकल्प को बयान करता है। पिछले साल इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता की वेबसाइट KHAMENEI.IR ने इसी शीर्षक के साथ एक पोस्टर प्रकाशित किया था।
हाल ही में वेबसाइट की तरफ़ से जनरल सुलैमानी के क़ातिलों से इंतेक़ाम के विषय में ‘चैंपियन’ के नाम से एक प्रतियोगिता रखी गई थी। इस प्रतियोगिता का विजेता एनीमेशन प्रकाशित किया जा रहा है।