इस्लाम ने मर्द को देखभाल करने वाला और औरत को ख़ुशबू‏ ‏क़रार दिया है। यह न तो औरत की शान में ‎गुस्ताख़ी है और न ही‏ ‏‎मर्द की शान में। यह न तो औरत को हक़ से महरूम करना है और न मर्द का हक़ ‎पामाल करना है। तराज़ू पर भी अगर रख दें तो दोनों बराबर हैं। यानी हम जब औरत को उसकी नज़ाकतों और ‎ज़िंदगी के माहौल में उसकी आध्यात्मिक सुंदरता और सुकून व चैन लाने वाली हस्ती की हैसियत से तराज़ू के ‎एक पलड़े में रखते हैं और मर्द को प्रबंधक और औरत के लिए भरोसेमंद मुहाफ़िज़ की हैसियत से तराज़ू के ‎दूसरे पलड़े में रखते हैं तो दोनों आपस में बराबर नज़र आते हैं। किसी एक को दूसरे पर तरजीह हासिल नहीं है। ‎ इमाम ख़ामेनेई ‎12 मार्च 2000