कुछ लोग ख़याल करते हैं, “बेशक नमाज़ बेहायई और बुराई से रोकती है” (सूरए अन्कबूत, आयत-45) का मतलब यह है कि अगर नमाज़ पढ़ ली तो गोया बेहयाई और बुराई का अंत हो जाएगा, नहीं, इसका मतलब यह है कि जब नमाज़ पढ़ ली तो आपके भीतर मौजूद वह नसीहत करने वाला जज़्बा जो नमाज़ पढ़ने से सरगर्म हो जाता है, बार बार आपको बेहयाई और बुराई से रोकता रहता है। बुराई को स्पष्ट कर देता है और यह बार बार कहना और दोहराते रहना दिल में उतर जाता है और उसका असर होता है और दिल में विनम्रता की कैफ़ियत पैदा हो जाती है, इसलिए आप देखते हैं कि नमाज़ को बार बार पढ़ते रहने का हुक्म है। मुल्क के नौजवान वर्ग को दूसरों से ज़्यादा नमाज़ की ओर ध्यान व अहमियत देना चाहिए, नमाज़ के ज़रिए जवान का दिल रौशन हो जाता है और उम्मीद की किरण पैदा हो जाती है, आत्मा में शादाबी और ऊंचाई आ जाती है। ख़ुशी का एहसास होने लगता है। यह हालात आम तौर पर जवानों से तअल्लुक़ रखते हैं।
इमाम ख़ामेनेई
19 नवंबर 2008