तक़वे (अल्लाह से डरने) का मतलब हर इंसान इस बात का जायज़ा ले कि उसके लिए क्या करना ज़रूरी और वाजिब क़रार दिया गया है, उसे अंजाम दे और जो कुछ उसके लिए हराम क़रार दिया गया है, उसे छोड़ दे। क़ुरआन कहता हैः और अगर उन बस्तियों के बाशिन्दे ईमान लाते और परहेज़गारी अख़्तियार करते तो हम उन पर आसमान और ज़मीन की बर्कतों के दरवाज़े खोल देते। (सूरए आराफ़, आयत-96) यानी ईमान और तक़वे की ख़ासियत सिर्फ़ यह नहीं है कि लोगों के मन पाक हो जाते हैं बल्कि लोगों के हाथ और जेबें भी इसके ज़रिए भर जाती हैं। लोगों के दस्तरख़ान भी तरह तरह की नेमतों से सज जाते हैं और उनके बाज़ू ताक़तवर हो जाते हैं। ईमान और तक़वे में यह ख़ासियत पायी जाती है।
इमाम ख़ामेनेई
2/1/1998