सवालः सबसे पहले तो मैं आप, फ़िलिस्तीन की महान क़ौम और उसके साहसी रेज़िस्टेंस की सेवा में क़ाबिज़ ज़ायोनी सेना से टकराव में अल्लाह की ओर से जीत के व्यवहारिक होने पर बधाई पेश करता हूँ। आपने और आपके साथ आए प्रतिनिधिमंडल ने इमाम ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में किन बातों पर विचार विमर्श हुआ और इस संवेदनशील मौक़े पर और ज़ायोनी सेना पर फ़तह के बाद इस मुलाक़ात की आप किस तरह समीक्षा करते हैं?

जवाबः यह मुलाक़ात, फ़िलिस्तीन के मूल मुद्दों पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से बातचीत के लिए एक बड़ा मौक़ा था, वह भी ऐसे वक़्त जब फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस ने एक बड़ी फ़तह हासिल की है, दुश्मन की साख को मिट्टी में मिला दिया है और उसे उसकी औक़ात समझा दी है। दुश्मन इस जंग में अपना कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं कर सका। न तो वह हमास को ख़त्म कर सका, न अपने क़ौदियों को रिहा करा सका और न ही ग़ज़ा में बाक़ी रह सका। आख़िर में वह हार मानकर पीछे हटने पर मजबूर हो गया और बेघर होने वाले अपने घरों को लौट आए। ग़ज़ा कामयाब और मज़बूत बाक़ी रहा, फ़िलिस्तीन कामयाब और मज़बूत बाक़ी रहा। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात, क्षेत्र में रेज़िस्टेंस मोर्चे को मज़बूत बनाने के लिए एक अवसर थी क्योंकि उन्होंने हमेशा फ़िलिस्तीन के मुद्दे और मज़लूमों के मसलों का सपोर्ट किया है। उन्होंने इस मुलाक़ात में अपनी ओर से फ़िलिस्तीनी क़ौम का भरपूर सपोर्ट करने और फ़िलिस्तीन के मसले के न्यायपूर्ण हल और इसी तरह फ़िलिस्तीनी और क्षेत्रीय रेज़िस्टेंस का सपोर्ट करने पर बल दिया। इस मुलाक़ात से हमें बहुत ख़ुशी हुयी है और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने हमेशा और सभी मौक़ों पर हमें यह याद दिलाया है कि वो इस रेज़िस्टेंस के सबसे बड़े सपोर्टर हैं और अल्लाह के हुक्म से हम एक दूसरे के साथ, इंशाअल्लाह कामयाब होंगे। 

सवालः अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन को क़रीब डेढ़ साल हो चुके हैं। हमने इस मुद्दत में देखा कि रेज़िस्टेंस को बहुत ज़्यादा चुनौतियों और दबाव का सामना करना पड़ा। फ़िलिस्तीनी क़ौम और रेज़िस्टेंस ने इस्लाम की राह में क़रीब 50 हज़ार शहीदों और लाखों घायलों का नज़राना पेश किया। दुश्मन ने अवाम के घरों को ढा दिया और रेज़िस्टेंस के नेताओं और उसके नायकों को क़त्ल किया। इन सब बातों के मद्देनज़र, युद्धविराम के बाद आप ग़जा के लोगों के जज़्बे को किस तरह देखते हैं और इस फ़तह के बाद दुनिया और इस्लामी जगत के लिए ग़ज़ा के अवाम का पैग़ाम क्या है?

जवाबः सबसे पहले तो हम सभी शहीद कमांडरों और अपनी क़ौम के शहीदों और घायलों पर दुरूद व सलाम भेजते हैं और घायलों के लिए शिफ़ा की दुआ करते हैं। हमारी क़ौम को बलिदान देने की आदत है। हमारी महान क़ौम को अपने लक्ष्य और अपनी सरज़मीन और वतन की आज़ादी की राह में क़ुर्बानी देने और बलिदाल देने की आदत है। ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनी क़ौम का जज़्बा बहुत ऊंचा है और उन लोगों में यह एहसास है कि उन्होंने दुश्मन के मुक़ाबले में और सभी पश्चिमी ताक़तों के मुक़ाबले में जो हम पर हमले का सपोर्ट कर रही थीं, एक बड़ी फ़तह हासिल की है। हम पहले ही दिन यानी 7 अक्तूबर को विजयी हो गए थे और हमने 15 महीनों तक रेज़िस्टेंस किया। यह कहा जाना चाहिए कि इस फ़तह में फ़िलिस्तीनी क़ौम का बड़ा हिस्सा है। इस फ़तह को हासिल करने में सबसे पहले फ़िलिस्तीनी क़ौम और फिर रेज़िस्टेंस की भूमिका है। इस जंग में फ़िलिस्तीनी क़ौम और रेज़िस्टेंस, दुश्मन का दबदबा तोड़ने के लिए एकजुट हो गए और उन्होंने अल्लाह के हुक्म से दुश्मन की साख और ताक़त को मिट्टी में मिला दिया। दुनिया के लिए फ़िलिस्तीनी कौम का पैग़ाम यह है कि रेज़िस्टेंस विजयी होगा और अल्लाह के हुक्म से फ़िलिस्तीनी क़ौम, बैतुल मुक़द्दस और मस्जिदुल अक़्सा को आज़ाद कराएगी। 

सवालः ग़ज़ा में रेज़िस्टेंस की फ़तह का सबसे अहम सबब क्या है? हमने देखा कि रेज़िस्टेंस ने दुश्मन के लक्ष्य पूरे नहीं होने दिए, वही लक्ष्य जिनका दुश्मन ने जंग की शुरूआत में एलान किया था। आख़िर में यह रेज़िस्टेंस मोर्चा ही था जो अपनी शर्तें दुश्मन से मनवाने में कामयाब रहा। दुश्मन को ऐसी शिकस्त हुयी कि जिसकी भरपाई मुमकिन नहीं है। आपके ख़याल में इस विषय की अहमियत क्या है?

जवाबः फ़तह का असली सबब, फ़िलिस्तीनी क़ौम का ईमान और उसका ठोस अक़ीदा है और इसी वजह से यानी अल्लाह पर ईमान और फ़तह के यक़ीन के सबब उसे फ़तह हासिल हुयी है। दूसरा सबब रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ और रेज़िस्टेंस की बहादुर ब्रिगेड्ज़ की तैयारी और जंगी उपकरणों की तैयारी थी जिसकी वजह से वह अपनी सरज़मीन  यानी ग़ज़ा में दुश्मन को शिकस्त देने में कामयाब हुयी। तीसरा सबब फ़िलिस्तीनी क़ौम की असाधारण और चमत्कारिक दृढ़ता है। जातीय सफ़ाया और तबाही के दौरान 15 महीनों तक दृढ़ता, इस क़ौम के लिए अल्लाह की ओर से एक चमत्कार है। 

सवालः हाल ही में हमने देखा कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ग़ज़ा के भविष्य और वहाँ रहने वालों के जबरन पलायन के बारे में कुछ भ्रामक बातें कर रहे हैं। क्या यह नई बात है? हमने इससे पहले भी इस तरह की योजनाओं को देखा है और उनका अंजाम भी देखा है। इस बयान के जवाब में हमने देखा कि ग़ज़ा के लोगों ने एक बड़ा क़दम उठाया और वे उत्तरी ग़ज़ा लौट आए। यह पहली बार हुआ है कि फ़िलिस्तीनी क़ौम को एक इलाक़े से बाहर निकाल दिया जाता है और रेज़िस्टेंस, ज़ायोनियों को पीछे हटने पर मजबूर कर देता है और फिर फ़िलिस्तीनी क़ौम उस इलाक़े में लौट आती है। ट्रम्प के इस बयान के सिलसिले में आपका क्या ख़याल है ख़ास तौर पर इसलिए कि इस वक़्त हम देख रहे हैं कि दुश्मन ने वेस्ट बैंक में पिछली हार के बावजूद, कुछ नए हमले शुरू किए हैं?

जवाबः ट्रम्प और उनकी सरकार का जवाब, वह काम है जिसे फ़िलिस्तीनी क़ौम ने एक दिन में अंजाम दिया। उन्होंने एक दिन में जबरन पलायन की बात की थी, एक दिन में या 48 घंटों में 5 लाख फ़िलिस्तीनी अपनी सरज़मीन पर वापस लौट आए; ऐसी जगह पर जहाँ न कोई घर था, न कोई ख़ैमा था और न ही कोई शरण स्थल। इसके बावजूद, वे लोग ऐसी स्थिति में जब उनके पास कुछ नहीं था, ज़मीन पर बैठ गए और ज़ैतून के पेड़ों की तरह अपनी सरज़मीन पर जमे रहे। यह ट्रम्प और उनकी योजनाओं का सबसे बड़ा जवाब था, उनकी योजना और प्रोजेक्ट्स फ़िलिस्तीन के अवाम और फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस की दृढ़ता के सबब अल्लाह के हुक्म से फ़ेल हो जाएंगे। 

सवालः आपके ख़याल में ज़ायोनी, वेस्ट बैंक में किस चक्कर में हैं?
जवाबः इस वक़्त वेस्ट बैंक पर बड़े पैमाने पर हमले हो रहे हैं और उसे आक्रामकता का निशाना बनाया जा रहा है। इसका लक्ष्य वेस्ट बैंक में रेज़िस्टेंस को ख़त्म करना है लेकिन ऐसा हरगिज़ नहीं होगा। वेस्ट बैंक में भी, बिल्कुल ग़ज़ा की तरह ही रेज़िस्टेंस की जड़ें मज़बूत हैं। ज़ायोनी, कभी भी वेस्ट बैंक में रेज़िस्टेंस मोर्चे को ख़त्म करने में कामयाब नहीं हुए और अल्लाह के हुक्म से वहाँ रेज़िस्टेंस जारी रहेगा और मज़बूती के साथ उसका दायरा फैलेगा। इंशाअल्लाह रेज़िस्टेंस, वेस्ट बैंक के शरणार्थी कैंपों और शहरों में ज़ायोनियों की साख को मिट्टी में मिला देगा। 
सवालः इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपने ख़ेताब के दौरान इस बात की ओर इशारा किया कि यहया सिनवार जैसे महान मुजाहिदों ने क्षेत्र का भविष्य बदल दिया। जैसा कि आप जानते हैं, क्षेत्र के हालात ज़ायोनी सरकार के साथ संबंध बहाल करने की दिशा में बढ़ रहे थे। अब युद्ध विराम के बाद संबंधों को सामान्य बनाने की बातें सुनायी दे रही हैं। आपके ख़याल में इन हालात में क्षेत्र की क़ौमों और सरकारों को ज़ायोनी दुश्मन से संबंध सामान्य करने की कोशिशों के संबंध में क्या करना चाहिए?

जवाबः अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन, जायोनी सरकार से संबंध सामान्य करने की प्रक्रिया में गले में कांटे की तरह बन गया है और जब 7 अक्तूबर का आप्रेशन हुआ तो ज़ायोनी सरकार से संबंध सामान्य करने की रेलगाड़ी, पूरी तरह रुक गयी। यह रेलगाड़ी 7 अक्तूबर को रोक दी गयी थी जो अब भी रुकी हुयी है और अल्लाह के हुक्म से इस्लामी जगत, ज़ायोनी सरकार से संबंध सामान्य करने की रेलगाड़ी के ख़िलाफ़ प्रतिरोध करने में कामयाब होगा, जैसा कि वह इससे पहले भी सफल हुआ था। वेस्ट बैंक में रेज़िस्टेंस का उभरना और ग़ज़ा के अवाम की दृढ़ता, ज़ायोनी सरकार से संबंध सामान्य करने की प्रक्रिया को रोकने का सबसे बड़ा सबब है और अल्लाह के हुक्म से मौजूदा अमरीकी राष्ट्रपति अपने किसी भी मंसूबे और प्रोजेक्ट्स को व्यवहारिक करने में कामयाब नहीं होंगे। 

सवालः रेज़िस्टेंस के नेताओं और कमांडरों की शहादत के बारे में आपका क्या ख़याल है? रेज़िस्टेंस ने शहीद इस्माईल हनीया, शहीद यहया सिनवार, शहीद नसरुल्लाह और उनसे पहले शहीद शैख़ अहमद यासीन और शहीद अय्याश जैसे बड़े शहीदों का नज़राना पेश किया है। आप क्या समझते हैं कि रेज़िस्टेंस किस तरह इन शहीदों की राह को जारी रखेगा?
जवाबः इस बात में कोई शक नहीं है कि रेज़िस्टेंस की फ़तह का एक बड़ा अहम सबब, उसके नेताओं और शहीदों का बलिदान है। आज उनके ख़ून की बर्कतें हमारे शामिले हाल हैं। रेज़िस्टेंस ने बड़े बड़े नेताओं और कमांडरों का नज़राना पेश किया है, जैसेः शहीद हनीया, शहीद यहया सिनवार, शहदी हसन नसरुल्लाह, शहीद सफ़ीयुद्दीन, शहीद सालेह अलआरूरी, शहीद मोहम्मद ज़ैफ़ और शहीद मरवान ईसा। ये सारे वे नेता और कमांडर हैं जिनके बलिदान एक के बाद एक जारी हैं और अल्लाह के हुक्म से फ़तह हासिल हुयी। इन शहीदों के ख़ून की बर्कत थी जिसने हमारे लिए फ़तह को व्यवहारिक बनाया। जब हमारे नेता शहीद होते हैं तो रेज़िस्टेंस की राह पर बाक़ी रहने और फ़तह हासिल करने और अपनी सरज़मीन की आज़ादी तक उनकी राह जारी रखने के लिए हमारा जज़्बा और संकल्प ज़्यादा मज़बूत हो जाता है। अबू इब्राहीम सिनवार यह शेर पढ़ने के बाद शहीद हो गएः 
सुर्ख़ आज़ादी के लिए एक दरवाज़ा है    जिसे ख़ून भरे हाथों से खटखटाया जाता है
मुल्क क़ुर्बानी के बिना निर्मित नहीं होते    और हक़ और हुक़ूक़ भी क़ुर्बानी के बिना हासिल नहीं होते

इसलिए शहादत और क़ुर्बानियां, सरज़मीनों का निर्माण करती और वतनों को नाजायज़ क़ब्ज़े से आज़ाद कराती हैं।

सवालः शहीद मोहम्मद ज़ैफ़, अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन के योजनाकार थे। वो एक बड़े मुजाहिद थे और दूसरे कमांडरों में उनकी मिसाल कम ही दिखाई देती थी। क्या आपके ज़ेहन में उनकी कोई याद है? आप शहीद ज़ैफ़ की शख़्सियत को किस तरह बयान करेंगे जिसने उन्हें रेज़िस्टेंस में एक लेजेन्ड कमांडर बना दिया था?

जवाबः इस बात में कोई शक नहीं है कि रेज़िस्टेंस की कमान में शहीद अबू ख़ालिद अज़्ज़ैफ़ की शख़्सियत असाधारण और बेमिसाल शख़्सियत थी। 30 साल से दुश्मन उनके पीछे लगा था और इस दौरान वह उन्हें क़त्ल करने में कभी भी कामयाब नहीं हो सका। शहीद ज़ैफ़ पर 7 बड़े क़ातेलाना हमले हुए लेकिन दुश्मन उन्हें शहीद न कर सका और एक सख़्त जंग में उनकी शहादत से उनकी शख़्सियत पर कोई आंच नहीं आती। यह फ़िलिस्तीनी क़ौम के लिए बीसवीं सदी की सबसे बड़ी जंग थी। अबू ख़ालिद अज़्ज़ैफ़ ने कुछ नहीं खोया क्योंकि वो अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन के शहीदों के सरदार और ऐसे लीडर बन गए जिसने फ़िलिस्तीनी क़ौम और इस्लामी जगत को फ़तह का तोहफ़ा दिया और उसके बाद शहीद हो गए। शहादत, उनके लिए सबसे अच्छा अंजाम था। मैंने उन्हें जब आख़िरी बार देखा था तो वह भरपूर जवान थे। वह कई साल से 7 अक्तूबर जैसे आप्रेशन की योजना बना रहे थे। वह ऐसे ही किसी आप्रेशन की बात करते थे जैसा 7 अक्तूबर को हुआ। यह चीज़ उस मुलाक़ात के कई साल बाद हुयी। अबू ख़ालिद अज़्ज़ैफ़ और रेजिस्टेंस के दूसरे कमांडरों में यह जो संकल्प था, उसने फ़तह को व्यवहारिक बनाया। हम इन शहीदों के बाद भी अपने वतन की आज़ादी की राह पर चलते रहेंगे और इंशाअल्लाह हम सभी मस्जिदुल अक़्सा में नमाज़ अदा करेंगे, उन सभी भाइयों और बहनों के साथ जिन्होंने हमें सपोर्ट किया, इस्लामी गणराज्य से लेकर लेबनान, यमन और इराक़ में रेज़िस्टेंस के सभी बाज़ुओं तक। अल्लाह के हुक्म से हम सभी मिलकर आज़ादी और निश्चित फ़तह की ओर आगे बढ़ेंगे। 

सवालः आपने रेज़िस्टेंस के मोर्चों और अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन में एकता की ओर इशारा किया जो ज़ायोनी सरकार के साथ टकराव में उभरकर सामने आयी। ग़ज़ा में रेज़िस्टेंस को जो अल्लाह की ओर से फ़तह हासिल हुयी, उसमें इस एकता का क्या प्रभाव था?

जवाबः इस बात में शक नहीं कि अलअक़्सा फ़्लड की जंग ने रेज़िस्टेंस के सभी बाज़ुओं में एक वास्तविक सैन्य जज़्बा पैदा कर दिया जिस तरह से उसने अरब जगत, इस्लामी जगत और दुनिया के सभी आज़ादी प्रेमी इंसानों के बीच एक आध्यात्मिक और जज़्बाती एकता पैदा कर दी। इंशाअल्लाह भविष्य में, क्षेत्र में रेज़िस्टेंस के सपोर्टरों की कोशिशों की बर्कत से, जिनमें सबसे ऊपर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के नेतृत्व में इस्लामी गणराज्य ईरान है, यह एकता अल्लाह के हुक्म से ज़्यादा नुमायां होगी और इसका दायरा ज़्यादा फैलेगा।