मर्द या औरत होने का विषय दूसरे दर्जे पर है। इसका असर केवल ज़िंदगी के कामकाज और मामलों तक है। इंसानी कमाल और उत्थान के अस्ली सफ़र में, इससे कोई असर नहीं पड़ता। हमने जेहाद के दौरान, इंक़ेलाब की कामयाबी के दौरान आज़माया है, वो मुजाहेदीन कि जिनकी बीवियां थीं, जेहाद के दौरान भी मज़बूत क़दमों से डटे रहे और सही राह पर आगे बढ़ते रहे। बहुत सी महिलाएं हैं जो अपने शौहरों को बहिश्त का पात्र बना देती हैं, इसके विपरीत कुछ बीवियां हैं जो अपने शौहरों को जहन्नम में झोंक देती हैं। उनके अपने हाथों में है, अलबत्ता मर्द भी बिल्कुल इसी तरह की भूमिका निभाते हैं। इमाम ख़ामेनेई 4 जनवरी 2012
कीवर्ड्ज़