हमें पूरे वजूद के साथ इस्लाम की राह में क़दम बढ़ाते जाना चाहिए, हमको अपना यह लक्ष्य नहीं भूलना चाहिए क्योंकि प्रतिरोध का मतलब है गुमराह न होना, अपने रास्ते को न भूलना और सीधे रास्ते को गुम न करना। यह बात इस क़द्र गंभीर व अहम है कि अल्लाह अपने पैग़म्बर को उनकी इतनी महानता के बावजूद यही नसीहत करता हैः "तो ऐ रसूल! जिस तरह आपको हुक्म दिया गया है, आप ख़ुद भी और वे लोग भी जिन्होंने (कुफ़्र व नाफ़रमानी से) तौबा कर ली है और आपके साथ हैं (सीधे रास्ते पर) साबित क़दम रहें।" (सूरए हूद, आयत-112) पूरे ध्यान के साथ राह पर डटे रहें, रास्ता गुम न करें और ग़लतफ़हमी का शिकार न हों।
इमाम ख़ामेनेई
05/12/1990