निश्चित तौर पर असत्य पर चलने वाले गिरोहों का लक्ष्य 'अय्यामुल्लाह' पर पर्दा डालना या इस तरह के वाक़यात के रंग को फीका बना देना है। यह क़ुरआन मजीद की शिक्षाओं के ख़िलाफ़ है। क़ुरआन ने इस तरह के दिनों की याद और ज़िक्र को बाक़ी रखने का हुक्म दिया है। "ऐ पैग़म्बर! इस किताब में मरयम का ज़िक्र कीजिए जब वो अपने घरवालों से अलग होकर (बैतुल मुक़द्दस) के एक पूर्वी मक़ाम पर गयीं" (सूरए मरयम, आयत-16) "और क़ुरआन में इब्राहीम का ज़िक्र कीजिए" (सूरए मरयम, आयत-41)। "और किताब (क़ुरआन) में मूसा का ज़िक्र कीजिए"(सूरए मरयम, आयत-51)। "और हमारे बंदए (ख़ास) अय्यूब को याद कीजिए"(सूरए साद, आयत-41)। "और हमारे बंदे दाऊद को याद कीजिए जो क़ूव्वत वाले थे" (सूरए साद, आयद-17)। "ऐ रसूल! क़ौमे आद के भाई (जनाब हूद) का ज़िक्र कीजिए जब उन्होंने अपनी क़ौम को मक़ामे अहक़ाफ़ (रेत के टीलों वाली बस्ती) में डराया था"(सूरए अहक़ाफ़, आयत-21) शायद दस से ज़्यादा बार क़ुरआन में इस तरह आया हैः 'याद करो, याद करो...' यह क़ुरआन का तरीक़ा है।
इमाम ख़ामेनेई
09/01/2023