इंसान को अपना ईमान उस हद तक मज़बूत करना चाहिए कि वो ख़ुद को सुरक्षित महसूस करे। जब इस तरह का ईमान होगा तो इंसान अपनी ज़िन्दगी के किसी भी चरण में मायूसी व निराशा का शिकार नहीं हो सकता। वो चीज़ जो इंसान को मूल रूप से तबाह करती है, नाउम्मीदी व निराशा है। इमाम ख़ामेनेई 26 जुलाई 1999
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