हम इंसानों की मुश्किल यह है कि हम अपनी ग़लतियों को भुला देते हैं। सुधार के लिए ज़रूरी मामलों की ओर से लापरवाही, अपने भीतर सुधार की ओर से लापरवाही है। अगर ये लापरवाहियां ख़त्म हो जाएं और इरादा वजूद में आ जाए तो हर चीज़ में सुधार हो जाता है। “तुम पर लाज़िम है कि अपनी जानों की फ़िक्र करो, जो गुमराह है वो तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकता” (सूरए मायदा, आयत-105) सभी कोशिशें और सभी जद्दोजेहद इसी लिए हैं कि हम अल्लाह को ख़ुद से राज़ी रख सकें और उस कमाल तक ख़ुद को पहुंचा सकें जो हमारी पैदाइश में हमारे लिए मद्देनज़र रखा गया है। इमाम ख़ामेनेई 30/10/2005
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