आप सभी प्यारे नौजवानों से मेरी सिफ़ारिश, आत्म-निर्माण की है। आत्म-निर्माण बहुत अहम है, व्यक्तिगत पहलू से भी और सामाजिक पहलू से भी। क़ुरआन से लगाव, क़ुरआन के साथ संपर्क, नमाज़ में ध्यान, नमाज़ को वक़्त पर पढ़ना, दुआओं पर ध्यान, ये सब चीज़ें मेरी नज़र में आत्म-निर्माण के लिए ज़रूरी हैं। ये ग़लतियों के वक़्त आपको सही सलामत गुज़रने में मदद करती हैं। डर लड़खड़ाने की एक मंज़िल है, संदेह लड़खड़ाने की एक मंज़िल है, कमज़ोरी का एहसास लड़खड़ाने की एक मंज़िल है, अनुचित प्रेरणा लड़खड़ा जाने की एक मंज़िल है, ग़लतियों और बहकने के बहुत से अवसर हमारी राह में पाए जाते हैं ख़ास तौर पर सामाजिक मामलों में काम करने वालों के लिए। इसलिए इन लोगों को आत्म-निर्माण की ज़्यादा ज़रूरत है और वो इस बात के ज़रूरतमंद हैं कि अपनी आत्मिक व मानसिक बुनियादों को मज़बूत करें। मेरी नज़र में जब आपकी आत्मिक व मानसिक बुनियादें मज़बूत होंगी तो वैचारिक मैदान में भी, फ़ैसले करने के मैदान में भी और व्यवहारिक मैदान में भी आप अपने भीतर ज़्यादा ताक़त व क्षमता पैदा कर लेंगे और हमें अपनी नौजवान नस्ल में इन चीज़ों की ज़रूरत है।
इमाम ख़ामेनेई
17/05/2020