23 रमज़ान 1445 में (1)

देश के ओहदेदारों से मुलाक़ात में रहबरे इन्क़ेलाब की तक़रीर

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा, चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर बाक़ी बची उनकी आख़िरी निशानी पर।

आप सब का स्वागत है, प्यारे भाइयों और बहनों, सम्मानीय अधिकारियों और मुल्क के अहम ओहदेदारों का। मैं सब से पहले तो मोहतरम राष्ट्रपति जनाब रईसी की तक़रीर पर उनका शुक्रिया अदा करता हूं, उन्होंने बड़ी अच्छी बातें कहीं। अल्लाह से दुआ है कि वह इन्हें सवाब भी दे और उनकी मदद भी करे, उन्हें ताक़त भी दे और तौफ़ीक़ दे कि वह इस राह पर इसी तरह से आगे बढ़ते रहें।

     मैं कुछ बातें रमज़ान के बारे में कहता चलूं क्योंकि अब बस कुछ ही दिन बाक़ी हैं और हमें रमज़ान के महीने की क़द्र करना चाहिए, उसके बाद मुल्क के कुछ मौजूदा मुद्दों पर चर्चा करुंगा।

     रमज़ान का महीना, सही अर्थों में, मुबारक महीना है। यह जो “ मुबारक महीना” कहा जाता है वह यूं ही नहीं है, बल्कि सही अर्थों में यह महीना, मुबारक है, यानि विभिन्न पहलुओं से, यह महीना, इन्सान के अंदर रूहानी योग्यताओं को बढ़ावा देता है, उन्हें बेहतर बनाता है। इन्सान को, व्यक्ति को, इन्सानियत में, दीनदारी में बेहतर बनाता है। समाज के लोगों में विकास, ख़ुद समाज के विकास का कारण बनता है, इसमें कोई शक नहीं। यह जो हमने कहा कि विभिन्न पहलुओं से तो उसका मतलब यह है कि यह महीना इन्सान को रोज़े के हिसाब से, क़ुरआने मजीद की तिलावत के सिलसिले में, कि जिसपर इस महीने में बहुत ज़ोर दिया गया है और कहा गया है कि इस महीने में तिलावत का कई गुना ज़्यादा सवाब मिलता है, इसी तरह अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाने और दुआ मांगने और मुनाजात के सिलसिले में, शबे क़द्र के लिहाज़ से जो एक बेहतरीन और गैर मामूली अवसर है कि जो “हज़ार रातों से बेहतर है” (2) और इसी तरह विभिन्न पहलुओं से यह महीना मुबारक है। मिसाल के तौर पर रोज़े के लिहाज़ से, रमज़ान के महीने में रोज़ा, अंदरुनी इच्छाओं के मुक़ाबले में इन्सान के संयम की शक्ति को बढ़ाता है, यह, बहुत अहम चीज़ है। अदंरुनी इच्छाएं, अनंत होती हैं, कभी ख़त्म नहीं होतीं, इन इच्छाओं को इन्सान जितना पूरा करता जाए, उतनी ही उसकी ख़्वाहिश व इच्छा बढ़ती जाएगी। इन इच्छाओं पर लगाम रखने की क्षमता इन्सान में होनी चाहिए और रोज़ा, इन्सान को वही क्षमता दे देता है, इरादे को मज़बूत करने, रूह को ताक़तवर बनाने और मन की कभी न ख़त्म होने वाली इच्छाओं पर लगाम कसने की प्रैक्टिस है रोज़ा। यह ख़ुद को बेहतर बनाने का एक साधन है।

     जो लोग क़ुरआने मजीद में सोच विचार करते हैं उनके लिए क़ुरआने मजीद की तिलावत, इस्लामी शिक्षाओं व ज्ञान के असीम सागर से जुड़ने जैसा है। हमारी हमेशा की यही ज़रूरत है कि हम अपने दिल में इलाही इल्म व ज्ञान को बढ़ा सकें और अपनी मालूमात को ज़्यादा करें। यह जो आयत है “उसकी तरफ़ ही पाक़ीज़ा बात जाती है” (3) तो उसमें “पाक़ीज़ा बात” का एक हिस्सा वही ज्ञान है जो क़ुरआने मजीद की वजह से इन्सान के अंदर पैदा होता है। यह जो दुआएं रमज़ान के महीने में पढ़ने को कही गयी हैं, सहरी के वक़्त, रमज़ान की रातों में, रमज़ान के दिनों में, ख़ास तौर पर रमज़ान के पहले दिन और इसी तरह और दिनों में, वह इन्सान के दिल को अल्लाह की याद में डुबा देती हैं अगर इन्सान पूरे ध्यान से इन दुआओं को पढ़े तो इन्सान के अंदर अल्लाह की तरफ़ ध्यान सही तौर पर पैदा हो जाता है। “और बेशक अल्लाह की याद सब से बड़ी है” (4) इस आयत की बुनियाद पर नमाज़ की सब से बड़ी ख़ूबी, अल्लाह की याद है, उसकी याद है जो कामयाबी, तरक़्क़ी, विकास की वजह है और जिससे इन्सान गुनाहों से दूर होता है।

     शबे क़द्र, क़िस्मत की रात है। रमज़ान के महीने में, इन्सान, शबे क़द्र की धारा में बह कर अपनी क़िस्मत पर असर डाल सकता है, यह बहुत बड़ी बात है, बहुत अहम बात है, अगर सच में तलब हो, क्योंकि इन रातों में जो चीज़ सब से ज़्यादा ज़रूरी है, वह तलब की हालत है, तलब की तड़प है। यह यक़ीनी बात है कि साल भर की रातों में, शबे क़द्र का अलग मक़ाम है, वैसे रमज़ान की दूसरी सभी रातें भी थोड़ा कम ज़्यादा, इसी तरह की हैं।

     यह वह चीज़ें हैं जो इन्सान की अक़्ल व दिमाग़ को और दिल को भी आबाद कर देती हैं, उनमें नूर भर देती हैं और उन्हें चमका देती हैं। यह सब ख़ूबियां जब इन्सान में पैदा होती हैं तो उसका असर पूरे समाज पर पड़ता है। समाज की सम्पूर्ण पहचान, समाज के लोगों की पहचान और समाज पर उनके असर से होती है। अगर हम ख़ुद को सुधारने में कामयाब हो गये तो समाज में हमारा असर भी उसी तरह का होगा, नफ़्स और ख़ुद को अंदर से मज़बूत इस तरह से किया जाता है।

     जी हां, तो यह सब शुरुआत में व्यक्तिगत पहलु हैं और फिर समाजी हो जाते हैं, लेकिन इनके अलावा, रमज़ान का महीना सामाजिक महीना है, दूसरों की मदद करने का महीना है, नेकी करने का महीना है, दूसरों पर दया करने का महीना है, इफ़्तार कराने का महीना है, इसी लिए इतना ज़ोर देकर कहा गया है कि इफ़्तार पर लोगों को बुलाएं, यह नहीं कहा गया है कि सिर्फ़ ज़रूरत मंदों को बुलाएं। यही संपर्क, मदद करना, दुख बांटना, नेकी करना, इस रमज़ान के महीने की ख़ूबियां हैं।

     तो रमज़ान का महीना, सुधार के लिए एक असाधारण अवसर है। हम पूरे साल में अपनी रूह को, अपने वजूद को कई प्रकार के घाव लगाते हैं। हर गुनाह एक घाव बना देता है, जैसे जिस्म पर घाव लगता है, रूह पर भी इन्सान घाव लगाता है, जिससे बीमारी पैदा हो जाती है, रमज़ान का महीना, जो तौबा का महीना है,  साल भर लगने वाले इन घावों पर मरहम रखने और उन्हें ठीक करने का महीना है। हम में इतनी योग्यता होनी चाहिए अल्लाह ने चाहा तो कि हम इस महीने से जब बाहर निकलें तो हमारी रूह पूरी तरह से सेहतमंद होः “ अगर तूने रमज़ान के महीने के बीत जाने वाले दिनों में हमें माफ़ नहीं किया तो जो रमज़ान के महीने के बाक़ी बचे दिन हैं उनमें हमें माफ़ कर दे”। यह महीना तौबा का महीना है।

     यह जो तौबा और गुनाहों की माफ़ी मांगने का मामला है वह इस्लामी शिक्षाओं में एक बहुत अहम सच्चाई है। सिर्फ़ व्यक्तिगत मुद्दों में ही नहीं, ज़ाती और व्यक्तिगत गुनाहों के लिए तौबा एक बात है, समाजिक मामलों में गुनाह दूसरा मुद्दा है। क़ुरआने मजीद में कहा गया है कि “ तो अपने पैदा करने वालों की दरगाह में तौबा करो...” (5) यह समाजिक गुनाह के लिए है। यानि जब समाजिक गुनाह होता है, तो समाज के लोग या वह लोग जिन्होंने यह गुनाह किया है, इस हालत के ज़िम्मेदार हैं, उन्हें तौबा करना चाहिए, उन्हें अपने गुनाह की माफ़ी मांगनी चाहिए। ज़ाहिर सी बात है यह तौबा घाव को ठीक करती है, यानि इन्सान को भी सुधारती है और समाज में भी सुधार पैदा करती है।  और हर विभाग में तौबा उसी विभाग के हिसाब से होना चाहिए। हम मिसाल के तौर पर हो सकता है कि किसी सांस्कृतिक मामले में, किसी राजनीतिक मुद्दे में, या किसी सैनिक क़दम में ग़लती कर बैठे हों, भूल हो गयी हो, या फिर लारवाही या कभी आलस्य और ध्यान न देने की वजह  से, वह काम नहीं किया जो हमें करना चाहिए था और जो हमारी ज़रूरी ज़िम्मेदारी थी, जब इस तरह से समाज में कोई घाव बन जाता है तो उसकी  माफ़ी का तरीक़ा यह है कि हम पहले तौबा करें और फिर वापस जाकर उस ग़लती को सुधारें। ग़ौर करें, क़ुरआन में कहा गया हैः “ सिवाए उनके जिन्होंने तौबा किया और सुधार किया”। (6) क़ुरआने मजीद में कई जगहों पर “तौबा किया” के बाद “ सुधार किया” का शब्द इस्तेमाल किया गया है, वैसे एक जगह “ सुधार किया” के बाद “ बयान किया” है (7) कहीं, “और थामे रहे” (8) है, मतलब तौबा जो है उसे वापसी और सुधार के साथ होना चाहिए। जब ग़लत काम हो जाए तो जब वह वापसी करें, माफ़ी मांगें, ख़ुदा से माफ़ी तलब करें, तो हमें यह कोशिश करना चाहिए कि उस ग़लती के असर को भी मिटाएं। ग़लती का मतलब, फ़िक़्ह में जो, जानबूझ कर किये जाने वाले काम के मुक़ाबले में ग़लती से किये जाने वाले काम के अर्थ में नहीं है, बल्कि इसका मतलब बुरा काम, ग़लत काम, जैसे इन्सान की अपनी भूल, मिसाल के तौर पर पीठ पीछे बुराई करना, झूठ बोलना, आरोप लगाना, एक ग़लती है, जब हम तौबा करते हैं तो हमें अपनी ग़लती से होने वाले नुक़सान की भरपाई भी करना चाहिए, सुधार करना चाहिए, उस ग़लती के असर को ख़त्म करना चाहिए, हमारी इस ग़लती की वजह  से कुछ नतीजा सामने आया है उसे ख़त्म करना चाहिए। सामाजिक मामलों में भी बिल्कुल यही स्थिति है। जैसा कि क़ुरआने मजीद में कहा गया हैः “अपने रब से गुनाहों की माफ़ी मांगों,फिर उससे तौबा मांगों ताकि वह आसमान से तुम पर ख़ूब बारिश भेजे और तुम्हारी ताक़त में और ज़्यादा ताक़त बढ़ा दे”। आप क्या नहीं कहते कि हमें मज़बूत मुल्क चाहिए, क्या आप नहीं कहते कि हमें मज़बूत होना है? अच्छी बात है, “वह तुम्हारी ताक़त को और ज़्यादा ताक़त से बढ़ा देगा” तौबा और गुनाहों की माफ़ी, आप को मज़बूत बनाएगी, यानि ग़लती में सुधार। ग़लती, कमज़ोरी की वजह है, ग़लती में सुधार ताक़त की वजह है, “तुम्हारी ताक़त को बढ़ा देगा”। हर जगह यही है, व्यक्तिगत मामले में भी ऐसा ही है, सामाजिक मामलों में यही दशा है। व्यक्तिगत मामले में भी इन्सान की रूह, तौबा करने से मज़बूत होती है और सामाजिक मामले में भी तौबा से समाज मज़बूत होता है। हम समाज के अधिकारी हैं न, आप मुल्क के अधिकारी हैं, हमारे मामले, हमारा रवैया, हमारे काम, हमारी बातें, हमारे रुख़, मुल्क के हालात पर असर डालते हैं, अगर कोई ग़लती हो जाए तो उसका यही रास्ता है, उसका रास्ता, तौबा है।

     यक़ीनी तौर पर तौबा का मतलब सिर्फ़ ज़बान से कह देना नहीं है और यह स्पष्ट बात है, यानि यह बात साफ़ होनी चाहिए, यह नहीं है कि हम शबे क़द्र या फिर किसी और रात या नमाज़े शब में “ अस्तग़फ़िरुल्लाह रब्बी व अतूबो इलैह” कह दें, सिर्फ़ यही काफ़ी नहीं है। हमें ग़लती की पहचान करना चाहिए और हमें यह मालूम होना चाहिए कि ग़लती की है, जब हमें यह पता ही न होगा कि हमने ग़लती की है, तो ज़ाहिर सी बात है सही अर्थों में ग़लती की माफ़ी, सही अर्थों में तौबा नहीं होगी। ग़लतियों को पहचानें और यह मान लें कि यह ग़लती है और फिर यह फ़ैसला करें कि इस ग़लती को सुधारें और जो ग़लती हो गयी है उस पर अफ़सोस करें, ग़लतियों पर रब से माफ़ी का यह मतलब है, और अगर यह न हो तो फिर तौबा का कोई मतलब ही नहीं होता। जैसा कि शायर ने कहा हैः

     हाथ में तस्बीह, होंठों पर तौबा, दिल में गुनाह का शौक़ भरा है,

     गुनाह को भी हमारी तौबा पर हंसी आती है। (10)

      जी तो यह थी हमारी पहली बात। मेरे ख़्याल में, हम जो मुल्क के ज़िम्मेदार हैं, इन सब चीज़ों पर हमें ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है, हम सब को, चाहे जिस पोज़ीशन पर हों हमें ध्यान देने की ज़रूरत है, ग़लती नहीं करना चाहिए, भूल नहीं होनी चाहिए, यह जानना चाहिए कि हमारी ग़लतियों का असर, आम लोगों की ग़लतियों से अलग होता है।

     मैंने यहां मौजूद भाई बहनों के सामने कहने के लिए जो बातें नोट कर रखी हैं उनमें सब  से पहले अर्थ व्यवस्था और साल के नारे का मुद्दा है। (11) जी, प्रेसिडेंट साहब ने बड़ी अच्छी बातें कहीं और ख़ुदा का शुक्र है कि ज़्यादा और भरपूर कोशिश की जा रही है, सच में इसांफ़ यही है कि इन्सान को यह सब नज़र आ रहा है और सच में काम हो रहा है। जी लेकिन इसके साथ ही काम की ज़रूरत इस से ज़्यादा है, यानि हमें बहुत काम करना है तब जाकर उस सतह पर या उससे नज़दीक पहुंचेंगे जहां हम पहुंचना चाहते हैं।

     हमारे देश की अर्थ व्यवस्था की सच्चाई एक जैसी नहीं है, हमारे मुल्क की अर्थ व्यवस्था में कड़वी सच्चाई भी है, और मीठी सच्चाई भी है। अर्थ व्यवस्था की कड़वी सच्चाई, महंगाई है, बाज़ार में अस्थिरता है, मुल्क की करेंसी में गिरावट है, समाज के वर्गों में अंतर है, जी यह सब कड़वे पहलु हैं।

     अर्थ व्यवस्था के मैदान में अच्छी बातें, बुनियाद ढांचे के मैदान में किये जाने वाले बड़े बड़े काम हैं जो हो रहे हैं और जिनके नतीजे बहुत दिनों बाद नहीं, बल्कि कुछ दिनों बाद सामने आएंगे, जैसे पूरी तरह से आधी अधूरी गतिविधियों वाले कारख़ानों  की बड़ी तादाद को फिर से खोलने का काम है, जिससे पैदावार, रोज़गार बढ़ा है, जैसा कि मुझे रिपोर्ट दी गयी है उसके हिसाब से शायद 8 हज़ार से ज़्यादा कारख़ाने जो पूरी तरह से बंद से या फिर वहां थोड़ा बहुत काम हो रहा था, उन्हें फिर से चलाया गया , यह सब अच्छे पहलु हैं। नॉलिज बेस्ट कंपनियों के रूप में नयी नयी युनिटें, बहुत अच्छा काम है जो बढ़ रहा है, यानि हज़ारों नौजवान, जोश व जज़्बे के साथ, पूरी ताक़त से, और उम्मीद के साथ इन नॉलिज बेस्ट कंपनियों में काम कर रहे हैं, मेहनत कर रहे हैं, नयी नयी चीज़ें बना रहे हैं और इसके साथ नयी नसी सर्विसेज़ भी पेश कर रहे हैं, अर्थ व्यवस्था के मैदान में अच्छे पहलु यह हैं। यह सब चीज़ें धीरे धीरे हमारे मुल्क की हालत पर असर डालेंगी।

 

प्राइवेट सेक्टर में मज़बूत युनिटें हैं जिनके कुछ नमूने हम ने जनवरी में होने वाली नुमाइश में देखा था (12) सच में मज़बूत व लाभदायक कंपनियां हैं जिन्हें नयी सोच के साथ बनाया गया है और यह कंपनियां मुल्क में पैदावार और जेडीपी को बढ़ाने में अहम हैं और ज़ाहिर सी बात है इसा असर धीरे धीरे आम लोगों की ज़िंदगी पर पड़ेगा वैसे इस बारे में मैं बाद में कुछ और बातें भी कहूंगा। यह अच्छे पहलु हैं। लेकिन ज़ाहिर है जैसा कि मैंने कहा, हमें इससे ज़्यादा की उम्मीद है और इन्शाअल्लाह मौजूदा सरकार बहुत सी समस्याओं का समाधान करने में कामयाब होगी जिस तरह से वह कोशिश कर रही है।

            एक और चीज़ जो अर्थ व्यवस्था के मामले में हमेशा ओहदेदारों के दिमाग़ में रहना चाहिए वह यह है कि जनता को उम्मीद यह है कि अर्थ व्यवस्था के मैदान में देश के बड़े अधिकारी जो फ़ैसले करते हैं, उसका असर उनकी अपनी ज़िंदगी में साफ़ नज़र आए और उन्हें महसूस हो, यह जनता की उम्मीद है। हमें वह काम करना चाहिए जिससे जनता की यह उम्मीद पूरी हो जाए, यह सही उम्मीद है। यह जो हम कहते हैं कि यह “उम्मीद सही है” तो उसी वजह से है जिसका ज़िक्र प्रेसिडेंट साहब ने अभी अपनी तक़रीर में किया और कहा कि हमारे मुल्क में बेपनाह संभावनाएं हैं और मैंने उनमें से कुछ बातों को नोट किया है। मुझे जो रिपोर्ट दी गयी उसके हिसाब से तो आंकड़े ध्यान योग्य हैं, प्राकृतिक संसाधन भी और श्रम बल की योग्यता के भी।

            प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज़ से अगर हम बात करें तो हमारे मुल्क की आबादी लगभग दुनिया की कुल आबादी का सौंवा हिस्सा है लेकिन हमारे मुल्क में प्राकृतिक संसाधन दुनिया में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का 7 फ़ीसद हैं यानि हमारी आबादी के हिसाब से हमारे मुल्क के प्राकृतिक संसाधन, पूरी दुनिया के मुक़ाबले में 7 गुना ज़्यादा हैं, यह बहुत अहम मौक़ा है, तेल व गैस के अलावा भी, कि हमारे प्राकृतिक संसाधनों का एक अहम हिस्सा तेल व गैस है लेकिन सिर्फ़ तेल व गैस ही नहीं है, हमारे मुल्क में तांबे, सीसे, ज़िंक, कोयले जैसी 64 क़िस्म के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं और उनकी खदानों भी समृद्ध हैं और बहुत ज़्यादा हैं। इसके साथ ही कभी कभी हमारे मुल्क में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों के बारे में बड़ी दिलचस्प रिपोर्टें भी आती हैं जिन पर हमारे मुल्क के अधिकारी काम करते हैं।

            कृषि के मामले में जैसा कि मुझे रिपोर्ट दी गयी है, लगभग 37 मिलयन हेक्टर ज़मीन हमारे मुल्क में खेती बाड़ी के लायक़ है। 37 मिलयन हेक्टर कृषि योग्य ज़मीन बहुत है! कभी यह कहा जाता है कि मुल्क में पानी कम है, सही बात है, हमारे मुल्क में पानी बहुत ज़्यादा नहीं है लेकिन तरीक़े हैं जिन्हें आज़माया भी जा चुका है, उन तरीक़ों की मदद से यही जितना पानी है हमारे पास, उसी से मुल्क में खेती बाड़ी की तमाम ज़मीनों को इस्तेमाल किया जा सकता है, सींचा जा सकता है और कृषि को सच में विकसित किया जा सकता है, आगे बढ़ाया जा सकता है। मुल्क में एग्रीकल्चर का मुद्दा भी बहुत अहम है।

            इस वक़्त भी हम कुछ उत्पादों के सिलसिले में दुनिया में पहले नंबर पर और अच्छी पोज़ीशन पर हैं, सीमेंट की पैदावार में, फ़ौलाद की पैदावार में, जबकि दुनिया में हम पर इतनी सख़्ती है, पाबंदी है, प्रतिबंध और इस तरह की रुकावटें हैं। इन सब प्रतिबंधों की वजह से जिन लोगों ने हमारे मुल्क पर पांबदियां लगायी हैं उन्हें यह उम्मीद थी कि हमारे मुल्क में पैदावार या तो ख़त्म हो जाएगी या फिर ख़त्म होने जैसी होगी। यह नहीं हुआ, आज हमारे मुल्क में फ़ौलाद की पैदावार बहुत ज़्यादा है, ऊपर के 10 से कम मुल्कों में हम शामिल हैं, सीमेंट की पैदावार में भी यही है, दूसरे कई इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट में यही पोज़ीशन है। यह सब हमारे मुल्क के प्राकृतिक संसाधनों की वजह से है जो बहुत ज़्यादा हैं।

     मेरी नज़र में श्रम बल इससे भी ज़्यादा अहम है, यानि हमारी पोज़ीशन श्रम बल के लिहाज़ से बहुत अच्छी है। एक चीज़ तो ईरानी क़ौम की आम योग्यता है। मैंने यह बात बार बार कही है और इसका सुबूत भी हैः ईरानियों की आईक्यू का औसत, दुनिया में आईक्यू के औसत से बहुत ज़्यादा है, हमारे नौजवानों की योग्यताएं, हमारी योग्यताओं बहुत ज़्यादा हैं, यही वजह है कि हम दुनिया को विभिन्न मैदानों में, मिसाल के तौर पर फ़ौजी उत्पादों में हैरत में डाल देते हैं और लोग सोचने लगते हैं कि यह लोग इतनी परेशानियों के साथ, मिसाल के तौर पर यह जो पाबंदियां हैं, उनके साथ, इन प्रतिबंधों के बावजूद इस तरह का डिफ़ेंस का उत्पाद, आप मिसाल के तौर पर डिफ़ेंस में काम आने वाला कोई सिस्टम सोच लें जिस पर दुनिया आज कल बहुत ध्यान दे रही है, बना लेते हैं। एक मिसाल यही आईक्यू का औसत है। हमारे मुल्क में 15 से 40 बरस के 36 मिलयन युवा हैं कि जो एक बहुत बड़ी नेमत है, लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि हम इतनी बड़ी संख्या में मुल्क में मौजूद नौजवानों की तरफ़ से लापरवाही न करें, यक़ीनी तौर पर पिछले बरसों में हम ने थोड़ी लापरवाही की। लापरवाही नहीं करना चाहिए, हमें मुल्क की आबादी को बूढ़ा नहीं होने देना चाहिए। युवाओं की गतिविधियों को जो आगे रहने वाले हैं, हौसला देने वाले हैं, मुल्क में बनाए रखें। हमारे मुल्क में 14 मिलयन लोग उच्च शिक्षा वाले हैं, एक लाख से ज़्यादा एकादमिक बोर्ड के मेंबर हैं, इन्क़ेलाब के शुरु में उनकी संख्या लगभग 5 हज़ार थी। इन्क़ेलाब के शुरु में हमारे मुल्क की युनिवर्सिटियों में अकादमिक बोर्ड के सदस्यों  की संख्या उतनी थी और आज एक लाख से ज़्यादा है। डेढ़ लाख से ज़्यादा स्पेशलिस्ट डॉक्टा 30 लाख से ज़्यादा पढ़ रहे छात्र, इनमें दीनी मदरसों में पढ़ने वाले शामिल नहीं हैं जो एक अलग मुद्दा है, उनकी मालूमात व शिक्षा का नमूना कभी कभी नज़र आता है, सचम  खुदा का शुक्र है, बहुत से विभागों में, बहुत से विषयों में रिसर्च कर रहे हैं, काम कर रहे हैं। जी हां तो यह सब श्रम बल हैं। यह तो प्राकृतिक और मानव संसाधन की बात हुई।

     भौगोलिक स्थिति भी  जो हमारी है, हमारे मुल्क में जो मौसम हैं, यह जो इतने सारे मौसम हैं, यह सब अहम चीज़ें हैं। इस बुनियाद पर अर्थ व्यवस्थ के क्षेत्र में कभी कभी जो उम्मीद प्रकट की जाती है, वह ग़लत नहीं है, हमारे पास जो कुछ सुविधाएं हैं उनके मद्देनज़र हमारी आर्थिक स्थिति बेहतर होनी चाहिए।

     यक़ीनी तौर पर रुकावटें हैं, इन बाधाओं पर भी  ध्यान देना चाहिए। कुछ बाधाएं बाहरी हैं, जैसे यही प्रतिबंध, धमकियां, बहुत सारी सीमाएं जो हमारे चारों तरफ़ खींच दी गयी हैं, हमारे व्यापार की राह में जो कठिनाइयां पैदा की जाती हैं, पैदावार के लिए ज़रूरी साधनों के इंतेज़ाम में जो परेशानियां हमें होती हैं, सख़्ती है और बड़ी गंभीर सख़्तियां हैं। मैंने एक बार बताया था कि हमारे लिए एक अलग से विभाग बनाया जाता है जो यह देखता है कि ईरान कहां निवेश कर रहा है, ईरान किस के साथ व्यापार कर रहा है ताकि वहां जाकर बाधा डाली जाए, मतलब कई बरसों से इस तरह के काम हो रहे हैं। यह सब चीज़ें हैं। यक़ीनी तौर पर इन बाधाओं को भी कम किया जा सकता है, इनका असर भी कम किया जा सकता है। इन में से कुछ रुकावटें, नकारत्मक प्रभाव के साथ ही सकारात्मक प्रभाव भी रखती हैं।

     मुल्क में कारख़ानों के मालिक और रोज़गार पैदा करने वाले यहां आए, इस इमामबाड़े में उन्हों ने मुझ से मुलाक़ात की (13), कुछ लोगों ने 10-15 ने तक़रीर भी की, उनमें से कुछ ने खुल कर कहा कि अगर प्रतिबंध न होते तो हम इतनी तरक़्क़ी नहीं कर पाते, यह बात खुल कर कही, क्योंकि बाहर से हमें कुछ नहीं मिल रहा था, इस लिए हमने ख़ुद ही कुछ करने का सोचा, हमने अपनी योग्यताओं को परखा और यहां तक पहुंच गये, यानि इस बुनियाद पर कभी कभी, बाधाएं भी, अच्छा असर रखती हैं और मुल्क के लिए मददगार बन जाती हैं।

     लेकिन सच बात तो यह है कि कुछ बाधाएं हमारे ही मुल्क के अंदर हैं, हम सुस्ती करते हैं, मिसाल के तौर पर कहीं कहीं लापरवाही भी करते हैं, कहीं कहीं जज़्बे की कमी नज़र आती है, कभी हम व्यक्तिगत समस्याओं में फंस जाते हैं, अपनी मानसिक समस्याओं से घिर जाते हैं। ओहदेदार अगर शोहरत चाहने लगेगा, अगर लोगों की नज़रों में अच्छा बनना चाहेगा, काम को, और काम के महत्व पर ध्यान नहीं देगा तो फिर इससे नुक़सान होता है, इससे काम में बरकत ख़त्म हो जाती है। या यह कि हम बाद में मिलने वाले ओहदों के बारे में सोचने लगें। आज किसी ओहदे पर हैं, लेकिन कुछ इस तरह की हरकतें करें जिससे हम ज़्यादा बड़े ओहदे की तैयारी कर सकें, जी तो इससे नुक़सान पहुंचता है। इस तरह की सोच, इस तरह से काम करना, इस तरह की हरकत, नुक़सान पहुचांती है, काम से बरकत ही ख़त्म हो जाती है, यह भी हमारे काम की राह में बाधाओं में शामिल है।

     हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हम हर सेंकेड में जो काम करते हैं, अगर वह जनता के लिए हो, जनता की सुविधा के लिए हो, मुल्क की तरक़्क़ी के लिए हो, तो यह काम, इलाही काम है, यह नीयत, इलाही नीयत है। यह जो हम कहते हैं कि आप की नीयत, अल्लाह के लिए होनी चाहिए, उसका एक मतलब यही है कि आप यह नीयत करें कि हम यह काम इस लिए कर रहे हैं ताकि जनता की एक समस्या ख़त्म हो जाए तो यह इलाही नीयत हो जाएगी, और फिर अल्लाह आप के इस काम में बरकत देगा, अल्लाह आप के इस काम का आप को इनाम देगा। अल्लाह जो इनाम देता है उसकी उस फ़ायदे से तुलना ही नहीं की जा सकती जो मिसाल के तौर पर हमें दिखावा करके मिल सकता है। (14)

     जी एक और बाधा, मैं ज़रा इस बारे में कुछ बातें कहना चाहता हूं जो इस साल का नारा भी है और वह आर्थिक मामलों में सरकार का दख़्ल है। हम बरसों से इस पर बात कर रहे हैं। इस साल मैंनें जनता की भागीदारी की बात, नये साल के नारे में रखी है ताकि जनता की भागीदारी पर ज़्यादा ध्यान दिया जाए और जनता आर्थिक मैदान में सही अर्थों में उतरे। जनता यानि जनता की क्षमता, उनकी पूंजी, उनकी मानसिक योग्यता, उन में नयी राह तलाश करने की क्षमता, जनता की सोच मैदान में उतारी जायी। हमें फ़ायदा होगा।

     एक यह सोच है कि अगर जनता आर्थिक मैदान में उतर जाए और मैनेजमेंट हम जनता के हवाले कर दें तो इससे सरकार के हाथ बंध जाएंगे, सरकारी अफ़सर के हाथ बंध जाएंगे, यह ग़लत सोच है। सरकारी अफ़सरों, सरकारी ओहदेदारों और जनता के बीच रोल बांट देना चाहिए, अब हम जो सरकार की बात करते हैं तो उसमें सिर्फ़ सरकारी विभाग ही शामिल नहीं है बल्कि वह विभाग भी शामिल हैं जो सेमी गर्वमेंट हैं, लेकिन कोई फ़र्क नहीं है, वह भी सरकारी विभाग की ही तरह हैं। हमें अलग करना होगा, कुछ ज़िम्मेदारियां सरकार की हैं और कुछ जनता की।

     एक किसी रिपोर्ट में एक बात लिखी गयी तो जो अच्छी बात है उसमें कहा गया था” मैनेजमेंट का पहलु और प्रेटिकल पहलु”। आर्थिक मामलों में सरकार को मैनेजमेंट का रोल निभाना चाहिए, मार्गदर्शन करे, ज़मीन के मैनेजमेंट में, कहां किस तरह की आर्थिक गतिविधि हो, इन सब चीज़ों की सरकार निगरानी करे, यह देखें कि कहीं कोई ग़ैर क़ानूनी काम न होने पाए। काम करने वाली जनता हो। जनता आर्थिक काम करे, यानि सरकार और जनता की ज़िम्मेदारियों को अलग कर दिया जाए। आर्थिक मैदान में जनता के लिए रास्ता खोला जाना चाहिए , इस से मुल्क ताक़तवर होगा, इस से अर्थ व्यवस्था मज़बूत होगी। यक़ीनी तौर पर 44वीं धारा की नीतियां, इसी मामले का एक हिस्सा हैं और जिसे लागू करने के लिए कई बरस पहले सरकार के पास भेज दिया गया है। (15) यह नीतियां, संविधान से निकली हैं। यह कोई न सोचे कि इससे संविधान का उल्लंघन होता है, नहीं, यह नीतियां संविधान आधार पर ही बनायी गयी हैं और लागू करने का आदेश दिया गया है। तो अब उसे लागू किया जाना चाहिए, अतीत में इस मैदान में बहुत सी कमज़ोरियां थीं।

     एक और बात यह है कि आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि 8 फ़ीसद आर्थिक विकास सभंव है, जैसा कि सातवीं विकास योजना में (16) 8 फ़ीसद आर्थिक विकास की बात की गयी है। कुछ लोगों को कठिन लगता है कि यह हो भी पाएगा या नहीं ? आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि 8 फ़ीसद का आर्थिक विकास हो सकता है और अगर यह विकास जारी रहे, मतलब यह न हो कि एक साल रहे, और फिर गिर जाए, तो यक़ीनी तौर पर आम लोगों की ज़िंदगी में बेहतरी आएगी और अच्छा असर होगा। यक़ीनी तौर पर अकेल आर्थिक विकास ही काफ़ी नहीं है, यानि जनता और आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के जीवन में, उनकी आमदनी में, बदलाव लाने के लिए सिर्फ़ आर्थिक विकास काफ़ी नहीं है, बल्कि दूसरी चीज़ों की भी ज़रूरत होती हैः संसाधनों तक बराबर पहुंच, यह बहुत ही ज़रूरी कामों में से एक है, भागीदारी के लिए, संसाधन जो हैं उन्हें सही रूप से और न्याय के साथ सब तक पहंचना चाहिए। वैसे यह कोई आसान काम नहीं है, काफ़ी मुश्किल काम है, इसके लिए ट्रेनिंग की ज़रूरत है, सिखाने की ज़रूरत है। हमारे बहुत से नौजवान काम करना चाहते हैं, उन्हें ट्रेनिंग की ज़रूरत है। कोई विभाग होना चाहिए जो युवाओं को ट्रेनिंग दे कि जिसके बारे में मुल्क के बड़े ओहदेदार प्लानिंग कर सकते हैं, इस बारे में काम करना चाहिए उन्हें ताकि यह काम हो जाए।

     भागीदारी की राह जनता को दिखायी जानी चाहिए। हम कहते हैं “ जनता अर्थ व्यवस्था में भागीदारी करे” अच्छा तो कैसे करे? उन्हें भागीदारी की राह तो दिखायी जानी चाहिए। कुछ लोगों को बैठक पर ऐसी राहें निकालना चाहिए जिससे जनता की भागीदारी हो सके कि जिसका एक नमूना यही नॉलिज बेस्ट कंपनियां हैं जो कुछ युवाओं के लिए आर्थिक भागीदारी की एक राह है। कुछ लोग बैठ कर सोच विचार कर सकते हैं। मेरी नज़र में, सरकार और संसद को ऐसे एक्स्पर्ट बुद्धिजीवियों की ज़रूरत है जो बैठ कर सोचें, जनता की भागीदारी के विभिन्न रास्ते, जनता को दिखाएं। मुश्किल काम हैं, लेकिन पूरी तरह से व्यवहारिक हैं कि जिससे जनता कम पुंजी के साथ ही आर्थिक मैदान में भागीदारी कर सकती है।

      एक बात सातवीं विकास योजना के बारे में है। जी अब तब पांच वर्षीय 6 योजनाएं पूरी हो चुकी हैं। यानि 5  वर्षीय 6 विकास योजनाएं  पूरी हो चुकी हैं कि जिनमें से एक विकास योजना का समय भी बढ़ा दिया गया था। (17) अब यह साल, सातवीं विकास योजना का पहला साल है, मैं बल के साथ सिफ़ारिश करता हूं कि इस योजना पर ध्यान दिया जाए, बारीकी से काम किया जाए और विकास योजना को लागू किया जाए।

     जैसाकि मुझे रिपोर्ट दी गयी है, पिछली विकास योजनाओं  पर काम का फ़ीसद लगभग 35 है यानि इतनी मेहनत से विकास योजनाएं बनायी गयीं, उन्हें क़ानून में बदला गया, लागू करने का आदेश भी दे दिया गया, लेकिन पिछले बरसों में इन विकास योजनाओं पर पूरी तरह से अमल नहीं हुआ, जी तो यह मुल्क के लिए नुक़सान है। यह कोशिश की जाए कि विकास योजनाओं पर पूरी तरह से अमल हो। ख़ुशक़िस्मती से सरकार, बड़ी सक्रिय है, यानि सरकार में जो लोग हैं वह सच में काम कर रहे हैं, एक्टिव हैं, सोच विचार करते हैं, मेहनत करते हैं कि कुछ ऐसा कर दें जिससे इस विकास योजना को लागू किया जा सके। विकास योजना, काम करने का तरीक़ा है, काम करने का रास्ता दिखाने वाला एक अच्छा कार्यक्रम है, अच्छे तरीक़े से काम करने के रास्ता बताती है विकास योजना, सिर्फ़ अर्थ व्यवस्था में ही नहीं बल्कि इस योजना के सारे हिस्सों बहुत अच्छे कार्यक्रम बनाए गये हैं।

     एक और अहम बात, समय है। प्यारे भाइयो! प्यारी बहनो! विभिन्न विभागों से प्रमुखो! समय बड़ी तेज़ी से गुज़र रहा है, जा रहा है और हमारे हाथ  से निकल रहा है, समय की तरफ़ से लापरवाही न करें। आज का काम कल पर न टालें, एक दिन भी अहम है, कभी एक घंटा भी अहम होता है। इस बड़ी पुंजी को ख़र्च करने में जिसे समय कहा जाता है, बहुत ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है, समय बीतने न दें। विभिन्न काम, अलग अलग विभागों  के लिए विभिन्न प्रोग्राम और समय निर्धारित करें, टाइम टेबल बनाएं और उस टाइम टेबल पर जमे रहें कि अमुक कार्यक्रम को अमुक तारीख़ तक हर हाल में पूरा हो जाना है, यानि समय पर इस तरह से ध्यान दें और इस तरह से ख़्याल रखें।

            वैसे मैं यह भी कह दूं कि आर्थिक मामले में, कूटनीति और विदेश नीति बहुत ज़्यादा अहम और प्रभावशाली है, हमारे आस पास बहुत से मुल्क हैं और हम कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों का हिस्सा हैं और हम इन सब से फ़ायदा उठा सकते हैं, आर्थिक मैदान में एक असाधारण कूटनीतिक क़दम बहुत ज़रूरी है। आर्थिक विषय पर हमारी बात यही थी जो ख़त्म हो गयी।

     एक और बात जो मैं करना चाहता हूं कि वह हमारे मुल्क में “ हिजाब” का विषय है जिसे ज़बरदस्ती एक मुद्दा बना दिया गया है। हिजाब अब एक चैलेंज बन गया है और हमारे मुल्क पर इसे मुद्दा बना कर थोप दिया गया है, इसे ज़बरदस्ती हमारे लिए मुद्दा बनाया गया है। कुछ लोगों ने बैठ कर प्लानिंग की, कार्यक्रम बनाया कि ईरान में हिजाब को एक मुद्दा बना दिया जाए, जबकि हमारे मुल्क में यह कोई मुद्दा था ही नहीं, लोग अलग अलग तरह से ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। मैं इस बारे में अपना ठोस नज़रिया बयान करता हूं कि इस विषय पर दीन व फ़िक्ह के लिहाज़ से नज़र डालनी चाहिए और क़ानूनी लिहाज़ से भी उसे देखना चाहिए और इसी तरह कुछ दूसरे विषयों पर भी ध्यान देकर इसे देखना चाहिए। जी तो दीनी और फ़िक्ही लिहाज़ से, हिजाब एक माना हुआ दीनी हुक्म है, यानि महिलाओं के लिए चेहरा और हाथ के पंजों के अलावा पूरा बदन छुपाना वाजिब है, यह वह चीज़ है जिसे नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता। हमारी जनता मुसलमान है, दीन पर अमल करते हैं, दीन के हुक्म को मानते हैं, हमारी महिलाओं दीन पर अमल करती हैं, उन्हें इस पर ध्यान देना चाहिए और यह शरीअत का हुक्म है। एक दूसरा पहलु क़ानूनी है, क़ानून पर अहम करना ज़रूरी होता है और इस बारे में क़ानून है, क़ानून पर अमल करना सब के लिए ज़रूरी है। चाहे वह हो जिसे दीन पर ईमान है चाहें वह लोग हों जिन्हें दीन व शरीअत में यक़ीन नहीं है, उन सब को मुल्क के क़ानून पर अमल करना चाहिए।

     दूसरे विषयों के लिहाज़ से एक बात यह है कि विदेशी इसे मुद्दा बना रहे हैं। आज यह जो आज कल हमारे मुल्क में यह विषय एक मुद्दा बना हुआ है, हिजाब का मुद्दा, तो उसमें विदेशियों का हाथ पूरी तरह से स्पष्ट था, साफ नज़र आ रहा है। बाहर से यह जो मीडिया है, और तरह तरह के संचार माध्यम हैं उनके ज़रिए बाहर से यह मुद्दा देश में उठाया गया। यक़ीनी तौर पर मुल्क के अंदर भी कुछ लोगों ने इस में मदद की लेकिन अस्ल में बाहर से इसे उठाया गया, इस की प्लानिंग की गयी, और उस पर काम किया गया, इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ख़ुद हमारी महिलाएं, हमारे मुल्क की समझदार औरतें, इस बात पर ध्यान दें कि इस मुद्दे को दुश्मन बाहर से उठा रहा है। भरोसेमंद रिपोर्टों में जो हमें बताया गया है उसके हिसाब से कुछ लोगों को इस बात का पैसा दिया जाता है कि वह समाज लोगों के सामने गलत अंदाज़ में निकलें और हिजाब के सम्मान ख़त्म कर दें। जी तो हमारे मुल्क की औरतों को और इस मामले में सोच विचार करने वालों और इस बारे में बात करने वालों को इन सब बातों पर ध्यान देना चाहिए। जब हम देख रहे हैं कि किसी मामले में विदेशी हाथ हैं तो फिर हमारा रुख़ भी उसी हिसाब से होना चाहिए ताकि विदेशी ताक़त की मदद न करें हम।

     एक और पहलु यह है कि आज महिलाओं के हिजाब को हटाने की कोशिश की जा रही है लेकिन यह तो शुरुआत है, यह आख़िरी क़दम नहीं है, मक़सद यह नहीं है। दुश्मन का मक़सद यह है कि मुल्क के हालात को, इन्क़ेलाब से पहले की तरह, शाही सरकार के दौर की तरह बना दें, वैसे ही शर्मनाम हालात फिर से मुल्क में बना दें। अब शायद आप लोगों में से कुछ ने देखा हो, याद हो आप लोगों को, लेकिन आप में से बहुत से लोगों ने वह हालात नहीं देखे हैं। सही अर्थों में, महिलाओं की स्थिति, उनका व्यवहार, उनका रवैया और जिस तरह से समाज में वह सामने आती थीं वह सब शर्मनाम था। आज वैज्ञानिक लिहाज़ से, मैनेजमेंट की योग्यता के लिहाज़ से, मुल्क को चलाने के लिए संवेदनशील विभागों में काम के लिहाज़ से, मुल्क में दुनिया में, हमारी महिलाएं बहुत ऊंचे दर्जे पर पहुंच गयी हैं, बहुत से मुल्कों की औरतों से काफ़ी आगे हैं, हिजाब के साथ, पर्दे का ख़्याल रखते हुए। उस दौर में ऐसा नहीं था, महिलाओं में शिक्षा का स्तर, उनके ज्ञान का स्तर और उनमें मैनेजमेंट की यह ताक़त नहीं थी, इस लिहाज़ से वह कमज़ोर थीं, लेकिन पहनावे के लिहाज़ से और समाजी तौर तरीक़े के हिसाब से बहुत बुरी हालत में थीं, सच में शर्मनाम हालत थी। दुश्मनों का मक़सद यह है कि वही स्थिति धीरे धीरे फिर पैदा कर दें। यह शुरुआत है, इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

     एक दूसरा भी मुद्दा यह है कि मैं ने कहा कि मुझे यक़ीन है कि हमारे मुल्क की औरतें, यहां तक कि वह भी जो हिजाब के सिलसिले में थोड़ी लापरवाही कर जाती हैं, वह सब, इस्लाम से लगाव रखती हैं, मुल्क के सिस्टम से लगाव रखती हैं, हमने यह बात बारम्बार कही है। हमारी औरतों पर इस नज़रिया से देखा जाना चाहिए। लेकिन बहरहाल पर्दे का ख़्याल रखना चाहिए, सब को इसका ख़्याल रखना चाहिए।

      मेरा यह मानना है कि सरकार पर, न्यायपालिका पर, विभिन्न विभागों पर, इस बारे में ज़िम्मेदारी है और उन्हें अपनी दीनी व क़ानूनी ज़िम्मेदारियों पर अमल करना चाहिए। ख़ुद हमारी औरतों पर इस बारे में सब से ज़्यादा ज़िम्मेदारी है, उन्हें इस्लामी हिजाब पर ध्यान देना चाहिए। यह भी एक मुद्दा था।

     आख़िरी मुद्दा, ग़ज़्ज़ा का विषय है। ग़ज़्ज़ा उन मुद्दों में शामिल है जिनको विश्व जनमत से दिमाग़ से निकलने नहीं देना चाहिए। यह मामला, बहुत अहम मामला! ग़ज़्ज़ा में जो अपराध हो रहे हैं, जहां तक हमें हालिया इतिहास के बारे में पता है, अब वह बहुत ज़्यादा पुरानी बातों के बारे में नहीं पता, उसकी मिसाल नहीं मिलती, इस तरह से अपराध करना, इस तरह से जनसंहार, नस्ली सफ़ाया, महिलाओं पर हमला, बच्चों पर हमला, बीमारों पर हमला, अस्पतालों पर हमला, अस्पतालों में जो भयानक अपराध किये गये हैं, वह सच में बहुत अजीब है। हालत यह हो गयी है कि पश्चिमी सभ्यता में पले बढ़े लोग, युरोप के लोग और ख़ुद अमरीका में भी लोग बाहर निकलने हैं और नारे लगा कर इस हालत पर आपत्ति करते हैं जबकि ख़बरें बहुत अच्छी तरह से उन तक पहुंच भी नहीं पातीं लेकिन जितना उन्हें पता चलता है उस पर भी वह एतेराज़ के लिए निकल जाते हैं। अपराध इतना भयानक है। जी तो यह मामला इस लिहाज़ से बहुत अहम है।

     यह मामला एक और पहलू से बहुत ज़्यादा अहम है और वह पहलु यह है कि ज़ायोनी शासन ने इस बार ग़ज़्ज़ा के मामले में दो तरह की हार का बुरी तरह से सामना किया है। एक तो हार 7 अक्तूबर को हुई थी, अलअक़्सा तूफ़ान के दिन की हार, और मैंने उसी वक़्त कहा था कि इस हार की भरपाई नहीं की जा सकती। (18) और सच में ऐसा ही है, अब तक उसकी भरपाई नहीं की जा सकी है और की भी नहीं जा सकेगी। वह हुकूमत जो बारीकी से सूचना रखने पर, फ़ौजी काम और ताक़त की बातें करती है और यह दावा करती है कि उड़ती चिड़िया पर भी उसकी नज़र होती है, सीमित संसाधनों के साथ एक रेसिस्टेंट ग्रुप के सामने इंटेलिजेंस के लिहाज़ से इतनी बड़ी हार का सामना करती है! यह ज़ायोनी शासन की पहली हार थी। इस हार की अभी तक भरपाई नहीं हो पायी है और होगी भी नहीं। ज़ायोनी शासन की इज़्ज़त मिट्टी में मिल गयी।

     दूसरी हार, इन 6 महीनों में मिलने वाली हार है। यह लोग जब पहले ही दिन ही मैदान में उतरे तो अपनी पहली हार को मिटाने के लिए उन्होंने कुछ मक़सद का एलान किया थ कि जिनमें से एक एक भी मक़सद इन 6 महीनों में पूरा नहीं हुआ। तरह तरह के हथियारों और तरीक़ों से इन्होंने 6 महीनें तक जंग की है वह भी अमरीका की तरफ़ से मिलने वाले असीमित मदद के साथ जिसने हथियारों से मदद की, पैसे से मदद की, राजनीतिक मदद भी की, कई बार प्रस्तावों को वीटो कर दिया और यह हालिया प्रस्ताव भी जिसे कई वजहों से वह वीटो नहीं कर पाया तो उसके बारे में कहा जाता है कि उस पर अमल करना ज़रूरी नहीं है! यह झूठ है और उस पर अमल हो भी नहीं रहा है, अमरीका की इतनी मदद और ख़ुद उनके पास जो ताक़त थी उन सब के बावजूद वह कुछ कर नहीं पाए, यहां तक कि जिन उद्देश्यों का उन्होंने एलान किया था कि उन्हें पूरा करना है उनमें से एक मक़सद भी पूरा नहीं कर पाए। वह रेसिस्टेंट मोर्चे ख़ास तौर पर हमास को तबाह करना, ख़त्म करना चाहते थे, लेकिन यह नहीं कर पाए, हमास भी और इस्लामी जेहाद भी, ग़ज़्ज़ा का रेसिस्टेंट मोर्चा, पूरी ताक़त  से इतनी परेशानियां उठा रहा है, यह ग्रुप मेहनत भी कर रहे हैं और चोट भी पहुंचा रहे हैं।

     यही जो ज़ायोनी शासन महिलाओं और बच्चों को निशाना बना रहा है उसकी वजह भी यही है कि वह रेसिस्टेंट मोर्चे के जियालों के सामने लाचार हो गया है, अब जब ख़ुद को इस हद तक वह लोग मजबूर देख रहे हैं तो उन्हें ग़ुस्सा आ रहा है और इसी लिए निहत्थे बच्चों और औरतों को निशाना बना रहे हैं और 30 हज़ार से ज़्यादा लोगों को क़त्ल कर दिया है जिनमें से अक्सर, महिलाएं और बच्चे हैं। यह हार यक़ीनी तौर पर जारी रहेगी, और इस तरह की आलोचनीय कोशिशें भी, जैसे वह काम जो उन्होंने सीरिया में किया है (20) कि यक़ीनी तौर पर उसकी सज़ा भी उन्हें मिलेगी, उनके काम नहीं आएंगी और न ही उससे उनकी समस्या ख़त्म होने वाली है। वह ख़ुद अपने पैरों से चल कर दलदल में कूद पड़ें हैं, ख़ुद को ऐसे जाल में फंसा लिया है कि जिससे से बच निलकने का कोई रास्ता नहीं है और हर दिन यह ज़ायोनी शासन ज़्यादा कमज़ोर होता जा रहा है और तबाही व अंत से इन्शाअल्लाह क़रीब हो जाएगा और हमें यक़ी है कि हमारे आज के नौजवान, वह दिन देखेंगे जब बैतुलमुक़द्दस मुसलमानों के पास होगा और वह वहां पर नमाज़ पढेंगे और इस्लामी जगत, इस्राईल के अंत का इन्शाअल्लाह जश्न मनाएगा।

     ख़ुदा से हमारी दुआ है कि वह हमें अपनी अहम ज़िम्मेदारियों पर अमल में कामयाब करे, हमें उसके लिए ताक़त दे ताकि हम वह सब काम पूरा कर सकें जो हमारे ज़िम्मे हैं। इस्लामी इन्क़ेलाब की वजह से इस्लामी जगह को एक बड़ा अवसर मिला, इस अवसर से अब तक बहुत फ़ायदा उठाया गया, इन्शाअल्लाह इसके बाद भी इस्लाम व मुसलमानों के लिए इस अवसर से फ़ायदा उठाया जाता रहेगा। इस्लामी शासन हर दिन पहले से ज़्यादा इन्शाअल्लाह मज़बूत होगा और दुश्मन हर दिन कमज़ोर होते जाएंगे और क्षेत्रीस समीकरण, अलअक़्सा तूफ़ान के बाद से बदल जाएंगे अब वह पहली वाली हालत नहीं है। रेसिस्टेंट मोर्चे के फ़ैसले और इसी तरह दूसरे मोर्चों के फ़ैसलों में बदलाव आएगा जैसा कि बदलाव आ चुका है और इलाक़े में अब रेसिस्टेंट की स्थिति दूसरी हो गयी है लेकिन अभी इससे भी ज़्यादा बदलाव पैदा होगा और इस्लाम के, रेसिस्टेंट मोर्चे के और इस्लामी जुम्हूरिया के दुश्मन मजबूर हैं कि इस बदलाव को स्वीकार करें और यह जान लें कि इस इलाक़े में वह मुसलमानों पर अपना हुक्म नहीं चला सकते।

     मेरी दुआ है कि रमज़ान महीने के इन बाक़ी बचे दिनों में, हमें इस बात की तौफ़ीक़ दे कि हम इस माह की बरकतों से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठा सकें।

     इस साल का विश्व क़ुद्स दिवस, अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ अंतरराष्ट्रीय आंदोलन होगा। यानि अगर पिछले बरसों में क़ुद्स दिवस सिर्फ़ इस्लामी देशों में आयोजित होता था तो इस साल बहुत ज़्यादा उम्मीद है कि ग़ैर इस्लामी देशों में भी इन्शाअल्लाह, भव्य रूप से मनाया जाएगा। हमें यक़ीन है कि ईरानी क़ौम दूसरे सभी अवसरों की तरह इस बार भी इस दिन अपना रोल निभाएगी, रसूले ख़ुदा और उनकी संतान के सदक़े में।

     परवरदिगार! अगर अभी तक तूने हमें माफ़ नहीं किया, तो इसी वक़्त हमें माफ़ कर दे।

     परवरदिगार! मुल्क की, जनता की, व्यवस्था थी, इस्लाम की और इस्लामी उम्मत की सेवा का अवसर हम सब को दे। परवरदिगार! ईरानी क़ौम के दुश्मनों को ख़ुश न करे, ईरानी क़ौम को कामयाबी दे। परवरदिगार! इमाम ख़ुमैनी का हिसाब किताब कि जिन्होंने यह रास्ता बनाया, इस महान आंदोलन को पूरी दुनिया में शुरु किया, पैग़म्बर और अपने क़रीबों बंदों के साथ कर। परवरदिगार! हमारे शहीदों का हिसाब किताब, इस्लाम के आरंभिक दौर के शहीदों, अपने क़रीबी बंदों और मुहम्मद व आले मुहम्मद के साथ करना। परवरदिगार! सीरिया की हालिया घटना के शहीदों को अपने क़रीबी बंदों के साथ उठाना, हमारे ज़माने के इमाम को हम से ख़ुश रखना, हमें अपनी पूरी उम्र उनके सिपाहियों में रखना, अपनी रहमतें हम पर नाज़िल करना, हमारे अंजाम को इस्लामी अंजाम बनाना और हमारी ज़िदंगी का अंत भलाई से करना।

 

वस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू

 

  1. इस मुलाक़ात के शुरु में ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने तक़रीर की।
  2. सूरए क़द्र, आयत 3
  3. सूरए फ़ातिर, आयत 10
  4. सूरए अन्कबूत, आयत 45
  5. सूरए बक़रा, आयत 54
  6. सूरए बक़रा, आयत 160
  7. सूरए बक़रा, आयत 160
  8. सूरए निसाअ, आयत 146
  9. सूरए हूद, आयत 52
  10. क़ुद्सी मशहदी
  11. पैदावार में तेज़ तरक़्क़ी, जनता की भागीदारी से, नये साल की तक़रीर, (2024-03-20)
  12. इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुल्की पैदावार की नुमाइश (2024-01-29)
  13. कारख़ानों के मालिकों और व्यापारियों से मुलाक़ात (2024-01-30)
  14. नाम के लिए, मशहूर होने के लिए जो काम किया जाता है, उससे बहुत कम फ़ायदा मिलता है जबकि अल्लाह का इनाम बहुत की बड़ा फ़ायदा है।
  15. मुल्क की जनरल पॉलिसी पर अमल का आदेश (2005-05-22)
  16. सातवीं 5 वर्षीय विकास योजना (2022-09-12)
  17. छठीं 5 वर्षीय विकास योजनना
  18. कैडिट कॉलेज में तक़रीर (2023-10-10)
  19. ग़ज़्ज़ा में तत्काल युद्धविराम का प्रस्ताव ग़ज़्ज़ा की जनता के 6 महीनों तक जारी क़त्ले आम के बाद 25 मार्च 2024 में मंज़ूर किया गया जिसमें रमज़ान के महीने में तत्काल रूप से युद्ध विराम की मांग की गयी है ताकि बाद में स्थाई युद्ध विराम हो सके। सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में से 14 ने इस प्रस्ताव के समर्थन में वोट डाला लेकिन अमरीका ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
  20. पहली अप्रैल 2024 में ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों ने सीरिया की राजधानी दमिश्क़ में स्थित ईरानी कांसुलेट पर कई रॉकेटों से हमला किया जिसकी वजह से ईरान के 7 सैन्य सलाहकार शहीद हो गये जिनमें ब्रिगेडियर मुहम्मद रज़ा ज़ाहेदी, ब्रिगेडियर हाज रहीमी और उनके साथी शामिल हैं। इसके अलाव कई दूसरे घायल भी हुए।