इस सालाना मुलाक़ात के आग़ाज़ में उन्होंने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के शुभ जन्म दिवस और इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के जन्म दिवस की मुबारकबाद पेश की और अलहाज शहीद क़ासिम सुलैमानी को श्रद्धांजलि दी। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने "तशरीह व बयान के जेहाद" यानी सत्य बात को सामने लाने के जेहाद को हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की नुमायां ख़ूबियों में से एक क़रार दिया और कहा कि वैचारिक पुख़्तगी, ठोस तर्क, मज़बूत अलफ़ाज़, शानदार ज़बान और साहित्यिक ख़ूबियों की वजह से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के आत्मज्ञान से भरे ख़ुतबे, नहजुल बलाग़ा के सबसे अच्छे ख़ुतबों के बराबर नज़र आते हैं, जो वाकपटुता में माहिर लोगों को हैरत में डाल देते हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे दौर में इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने सत्य बात को सामने लाने के जेहाद का परचम उठाया और दिल में उतर जाने वाली अपनी ज़बान और तर्क सहित क़ौम को जागृत कर नस्लों से चली आ रही तानाशाही में डूबी भ्रष्ट राजशाही सरकार को हटाकर, लोकतंत्र पर आधारित इस्लामी सरकार क़ायम की और यह ऐतिहासिक वाक़या, सत्य बात को सामने लाने के जेहाद की अभूतपूर्व अहमियत व सलाहियत को उजागर करता है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने सॉफ़्ट पावर को, हार्ड पावर से ज़्यादा प्रभावी बताते हुए कहा कि यही वजह है कि अमरीका अपने आधुनिक हथियारों के बावजूद, मीडिया, आर्ट, साहित्य और फ़िल्म जैसे मैदानों में सबसे ज़्यादा पूंजीनिवेश करता है। उन्होंने हार्ड पावर के असर को सामयिक और ख़त्म हो जाने वाला बताया और अफ़ग़ानिस्तान से अमरीका के रुसवाई के साथ फ़रार और वाइट हाउस से इराक़ी अवाम की गहरी नफ़रत की ओर इशारा करते हुए कहा कि हार्ड पावर इन दो मुल्कों में अमरीका की मौजूदगी को न तो बाक़ी रख सका और न ही कामयाब बना पाया लेकिन सॉफ़्ट पावर ने, फ़िलिस्तीनी अवाम को जो ज़ाहिरी तौर पर एक छोटा समूह नज़र आते हैं, पूरी दुनिया के ध्यान का केन्द्र बना दिया और यह चीज़ फ़िलिस्तीनी अवाम की मज़लूमियत, सब्र, दृढ़ता और प्रतिरोध की वजह से है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने सॉफ़्ट पावर पर इस्लामी गणराज्य के विश्वास को पिछले 45 साल से मुल्क की मूल स्ट्रैटिजी बताया और कहा कि मुल्क की ज़रूरत के मुताबिक़ आधुनिक तथा दुश्मन की क्षमता के मुक़ाबले में प्रभावी हथियार रखने पर हम पूरा यक़ीन रखते हैं लेकिन हमारा ईमान यह है कि सॉफ़्ट पावर यानी ठोस वैचारिक, ज़बानी और तार्किक हथियार ज़्यादा प्रभावी हैं और उन्हें ज़्यादा बढ़ावा मिलना चाहिए। उन्होंने ज़ाकिरों, ख़तीबों, मद्दाहों और शायरों को हदीस की किताबों, नहजुल बलाग़ा के प्रेरणा देने वाले इल्मी ख़ुतबों और सहीफ़ए सज्जादिया की दुआओं के ज़्यादा अध्ययन और उनसे लगाव रखने की सिफ़ारिश की और कहा कि सहीफ़ए सज्जादिया में, जो अहलेबैत के विचारों का हैरतअंगेज़ संग्रह है, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम, इस्लाम के सरहदी रक्षकों के लिए दुआ करते हैं और आज इस्लामी जगत की सरहद ग़ज़ा है और इस्लामी जगत का दिल ग़ज़ा में धड़क रहा है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ग़ज़ा के अवाम के प्रतिरोध व दृढ़ता की ओर इशारा किया और कहा कि ग़ज़ा के अवाम आज न सिर्फ़ ज़ायोनी सरकार बल्कि कुफ़्र और सरकश ताक़तों, साम्राज्यवाद और अमरीका के मुक़ाबले में खड़े हुए हैं और यह जो अमरीकी राष्ट्रपति खुलकर कह रहा है कि मैं ज़ायोनी हूं, इसका मतलब वही ज़ायोनियों के घटिया लक्ष्य हैं जिसके पीछे वो भी लगा हुआ है। उन्होंने मुजाहिदों की एक ज़िम्मेदारी ग़ज़ा के मसले और दुश्मनों की दुश्मनी सहित मौजूदा मसलों की पहचान और उसकी सत्यता को सामने लाना बताया और कहा कि हमें इस्लाम और इस्लामी दुनिया के ख़िलाफ़ अमरीका और उसके पिट्ठुओं के झूठे प्रोपैगंडों के ख़िलाफ़ डट जाना चाहिए।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इसी तरह आगामी चुनावों को सत्य को सामने लाने के जेहाद का एक और अहम मैदान बताया और धार्मिक लोकतंत्र को व्यवहारिक बनाने की राह की हैसियत से चुनाव को कमज़ोर करने की कुछ लोगों की कोशिशों की ओर इशारा करते हुए कहा कि चुनाव, एक फ़रीज़ा है और जो भी चुनाव का विरोध करता है, उसने इस्लामी गणराज्य और इस्लाम की मुख़ालेफ़त की है। इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में सभा में मौजूद लोगों में से 8 लोगों ने अहलेबैत की शान में शेर व क़सीदे पढ़े।