इस्राईल का अंतः लोकतांत्रिक हल से लेकर सशस्त्र रेज़िस्टेंस की स्ट्रैटेजी तक
इस्राईल ख़त्म होना चाहिए
क़ाबिज़ व ग़ैर क़ानूनी ज़ायोनी सरकार के ज़रिए फ़िलिस्तीन पर नाजायज़ क़ब्ज़े के सिलसिले में इस्लामी इंक़ेलाब और ईरानी क़ौम का स्टैंड बिल्कुल साफ़ और ज़ाहिर हैः “स्टैंड वही है जो इमाम ख़ुमैनी ने फ़रमाया हैः इस्राईल को ख़त्म होना चाहिए।” (4/2/1990) और यह इस्लामी जुमहूरिया ईरान का ऐसा लक्ष्य है जिसमें किसी प्रकार का शक नहीं है, जिसका एलान इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह और आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई की ओर से किया गया हैः “फ़िलिस्तीन के मामले में जो लक्ष्य है वो फ़िलिस्तीन की आज़ादी है, यानी इस्राईली सरकार का अंत” (4/2/1990) इसलिए इस मामले में इस्लामी जुमहूरिया की नीति पूरी तरह साफ़ हैः “फ़िलिस्तीन के मसले में हमारा नज़रिया साफ़ और ज़ाहिर है। हम इस्राईली सरकार के अंत को फ़िलिस्तीन का हल समझते हैं।” (19/8/1991)
अलबत्ता “इस्राईल का अंत”, बच्चों की क़ातिल नस्ल परस्त इस सरकार का अंत, यहूदी दुश्मनी की नीति नहीं है क्योंकि इस सिलसिले में इस्लामी गणराज्य का आधिकारिक स्टैंड, क़ाबिज़ ज़ायोनियो के हाथों फ़िलिस्तीन की सरज़मीन पर नाजायज़ क़ब्ज़े से संबंधित हैः “क़ाबिज़ सरकार के मामले में जमाल अब्दुल नासिर नारा लगाते थे कि हम यहूदियो को समुद्र में फेंक देंगे...इस्लामी जुम्हूरिया ने पहले दिन से इस तरह की कोई बात नहीं की।” (10/6/2018) “इस्लामी गणराज्य का स्टैंड, किसी को समुद्र में डुबोने का नहीं है।” (29/11/2023)
फ़िलिस्तीन के मसले के हल और इलाक़े में आतंकवाद व अशांति की जड़ अवैध ज़ायोनी सरकार के अंत के लिए इस्लामी जुमहूरिया ईरान ने दुनिया वालों के सामने एक साफ़ व प्रजातांत्रिक हल पेश किया हैः “तर्कपूर्ण हल, वह रास्ता है जिसे दुनिया के सभी बेदार ज़मीर वाले इंसान और दुनिया में आज के उसूलों पर भरोसा रखने वाले सभी लोग मानते हैं और इसे मानने पर मजबूर हैं...हल, ख़ुद फ़िलिस्तीनी अवाम की राय मालूम करना है, उन सभी लोगों की, जो फ़िलिस्तीन से बेदख़ल कर दिए गए, वो लोग जो फ़िलिस्तीन की सरज़मीन और अपने घरों को लौटना चाहते हैं और उन सभी लोगों की राय मालूम करना, जो सन 1948 से पहले, जो इस्राईल की अवैध सरकार के गठन का साल है, फ़िलिस्तीन में रहते थे, चाहे वो मुसलमान हों, चाहे ईसाई हों, चाहे यहूदी हों। ये लोग एक रेफ़्रेन्डम में यह तय करें कि फ़िलिस्तीन की सरज़मीन पर कौन सी सरकार हो। यह प्रजातंत्र है... वह सरकार गठित हो और वही उन लोगों के बारे में फ़ैसला करे जो सन 1948 के बाद फ़िलिस्तीन की सरज़मीन पर आए हैं।” (5/4/2002) इस्लामी जुमहूरिया ईरान इस्राईल के अंत की जो बात करता है, उसका मतलब यह है यानी रेफ़्रेन्डम के ज़रिए ग़ैर क़ानूनी व अवैध सरकार का अंतः “ये उसी अवैध व जाली ज़ायोनी सरकार का विनाश व अंत है जो आज सत्ता में है।” (15/6/2018) हक़ीक़त में “ज़ायोनी सरकार के अंत का मतलब हरगिज़ इस इलाक़े में यहूदियों का क़त्ले आम नहीं है...यानी रेफ़्रेन्डम कराया जाए, इस इलाक़े में कौन सी सरकार आएगी, यह रेफ़्रेन्डम तय करेगा, लोग तय करेंगे, ज़ायोनी सरकार के अंत का यह मतलब है, तरीक़ा यह है।” (23/7/2014)
अलबत्ता यहाँ एक मूल बिन्दु यह है कि “ज़ायोनी सरकार ने साबित कर दिया है कि वह ताक़त की ज़बान के अलावा कोई और ज़बान नहीं समझता। उससे एक क़ौम की ताक़त और पूरी दुनिया में एक मुसलमान मिल्लत की ताक़त की ज़बान के अलावा किसी और ज़बान में बात नहीं की जा सकती।” (19/10/1991) इसलिएः “फ़िलिस्तीनी क़ौम का व्यापक संघर्ष, राजनैतिक संघर्ष, सैन्य संघर्ष, नैतिक व सांस्कृतिक संघर्ष जारी रहना चाहिए ताकि फ़िलिस्तीन पर नाजायज़ क़ब्ज़ा करने वाले, फ़िलिस्तीनी क़ौम की राय के सामने सिर झुकाने पर मजबूर हो जाएं...तब तक जारी रहना चाहिए और जारी रहेगा।” (5/6/2019) इस सिलसिले में क़ब्ज़ा करने वालों के ख़िलाफ़ सशस्त्र संघर्ष और प्रतिरोध की स्ट्रैटेजी, फ़िलिस्तीन के मसले के हल के लिए डेमोक्रेटिक हल के व्यवहारिक होने का रास्ता समतल कर रही हैः “जब तक यह अवैध सरकार बाक़ी है और खत्म नहीं हुयी है, चारा क्या है? चारा इस सरकार के ख़िलाफ़ ठोस सशस्त्र प्रतिरोध है, ज़ायोनी सरकार के मुक़ाबले में, फ़िलिस्तीनियों की ओर से ताक़त का प्रदर्शन होना चाहिए।” (23/7/2014) अस्ल में चूंकि इस्राईल डेमोक्रेटिक हल को नहीं मानता इसलिए “यह संकल्प व इरादा उस पर हावी कर दिया जाना चाहिए और अगर इस प्लान को आगे बढ़ाया गया, जो इंशाअल्लाह बढ़ाया जाएगा और अगर प्रतिरोध की इकाइयों ने पूरी गंभीरता के साथ अपने इरादे व संकल्प पर काम किया दो यह टार्गेट हासिल हो जाएगा।” (29/11/2023)
अलअक़सा फ़्लड रुकने वाला नहीं है
यहाँ एक मूल बिन्दु यह है कि इस्लामी प्रतिरोध की दिन ब दिन बढ़ती ताक़त की वजह से आज क्षेत्र में ताक़त का संतुलन क़ौमों के पक्ष में और क़ाबिज़ों व जायोनियों के ख़िलाफ़ होता जा रहा है। अलअक़सा फ़्लड ने इस्राईल को ऐसी चोट लगायी है जिसकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती और बहुआयामी शिकस्त दी है और यह चीज़ क्षेत्र के अमरीका के वजूद से पाक होने का सबब बनी हैः “क्षेत्र से अमरीका को दूर करने की एक साफ़ व ज़ाहिर निशानी, अलअक़सा फ़्लड का इतिहास बनाने वाला वाक़या है, जो अगरचे ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ था लेकिन अस्ल में अमरीका के वर्चस्व को मिटाने की ओर केन्द्रित है क्योंकि इसने इलाक़े के संबंध में अमरीकी योजनाओं को तितर बितर कर दिया है और अगर यह ऑप्रेशन जारी रहा तो क्षेत्र से संबंधित अमरीकी योजनाएं पूरी तरह फ़ेल हो जाएंगी।” (29/11/2023) क्षेत्रीय बदलाव की इस स्थिति में इस ऐतिहासिक मसले का हल, फ़िलिस्तीनी क़ौम के हक़ में अवैध व ग़ैर क़ानूनी सरकार का अंत हैः “अलअक़सा फ़्लड रुकने वाला नहीं है।” (29/11/2023) और “फ़िलिस्तीन का मसला अल्लाह की तौफ़ीक़ से हल की ओर यानी फ़िलिस्तीन की पूरी सरज़मीन पर, फ़िलिस्तीनियों की सरकार के गठन की ओर बढ़ रहा है।” (29/11/2023)
(आयतुल्लाह ख़ामेनेई की तक़रीरों से चुने गए भागों पर आधारित)