तक़रीर पेश हैः

बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार और हमारे नबी हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा और उनकी सबसे नेक, सबसे पाक, मासूम नस्ल, उनके चुने हुए सहाबियों और क़यामत तक अच्छाई से उनकी पैरवी करने वालों पर।

मैं आप सब का स्वागत करता हूं, यहां मौजूद सब लोगों का, मुल्क के ओहदेदारों का, मेहमानों का आप सब का जो आप यहां तशरीफ़ लाए। आज बहुत बड़ी ईद है, बड़ा नूरानी और मुबारक दिन है, पैग़म्बरे इस्लाम और इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम का जन्म दिन है।

पैग़म्बरे इस्लाम के बारे में हम जैसे लोगों की ज़बानें उनके बारे में बयान करने और हम जैसे लोगों के दिलो व दिमाग़ उनकी हस्ती को समझने की ताक़त नहीं रखते, यह एक सच्चाई है। मैं आज पैग़म्बरे इस्लाम की फ़ज़ीलतों की मोटी किताब से एक लफ़्ज़ संक्षेप में बयान करूंगा और वह यह है कि पूरी दुनिया को रौशनी देने वाला यह सूरज, हर इन्सान पर हक़ रखता है, मैं यही बात करना चाहता हूं। हर इन्सान पर उनका एहसान है चाहे वह इस्लाम को मानता हो या किसी और दीन को, उस पर पैग़म्बरे इस्लाम का एहसान है और सही अर्थों में उनके दीन का एहसान है सब पर, लेकिन क्यों? पूरी इंसानियत पर जो पैग़म्बरे इस्लाम का हक़ है वह क्या है? वह यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने इन्सानों के सभी दुखों का इलाज, इन्सानियत को बताया है, यह एक सच्चाई है। अल्लाह क़ुरआने मजीद में कहता है “वह किताब है जिसे हमने तुम पर इस लिए नाज़िल किया है ताकि तुम लोगों को अंधेरों से निकाल कर उजाले में ले जाओ” (2) अंधेरा क्या है? अंधेरा वह सब चीज़ें हैं जो पूरी तारीख़ में इन्सानों की ज़िंदगियों में अंधेरे भरती रही हैं, उनकी ज़िदंगी में कड़वाहट और ज़हर भरती रही हैं, यह अंधेरे हैं। जेहालत अंधेरा है, ग़रीबी अंधेरा है, ज़ुल्म अंधेरा है, भेदभाव अंधेरा है, ख़्वाहिशों में डूब जाना, अंधेरा है, नैतिक भ्रष्टाचार, सामाजिक बुराइयां, यह सब अंधेरे हैं। यह वो अंधेरे हैं जिनसे पूरी तारीख़ में इन्सानियत ने तकलीफ़ें उठायी हैं। ईमान न होना अंधेरा है, लक्ष्यहीनता न होना अंधेरा है, यह इन्सानियत की गहरी तकलीफ़ें हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम ने इन तकलीफ़ों का इलाज, रूहानी इलाज और व्यवहारिक यानी अमल से किया जाना वाला इलाज इन्सानियत के सामने पेश किया है। अगर इन दुखों से छुटकारा हासिल करना चाहते हैं, तो उसका तरीक़ा यह है। यह पैग़म्बरे इस्लाम की शरीअत और क़ुरआने की तालीम, इन्सानियत के दुखों का इलाज है, इसे पैग़म्बरे इस्लाम ने इन्सानियत के सामने पेश किया है। इसी लिए अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के बारे में कहते हैं कि “वह एक माहिर हकीम हैं जिन्होंने बेहतरीन मरहम तैयार किये हैं और दाग़ने का सामान भी तैयार कर रखा है” (3) मरहम तो वह होता है जिसे घाव पर लगाया जाता है ताकि वह ठीक हो जाए, इसी तरह पुराने ज़माने में जब कोई घाव, मरहम से ठीक नहीं होता था तो उसे (गर्म धातु से) दाग़ दिया जाता था तो वह ठीक हो जाता था। उनके पास दोनों है, मरहम भी है और गर्म करने का साधन भी है, यह सब क़ुरआन में इन्सानियत के लिए पेश किया गया है। अगर अच्छी ज़िदंगी गुज़ारनी है तो इस तरह का काम करें।

दुनिया भर के बुद्धिजीवियों की नज़र में, इन्सानों का एक दूसरे पर जो हक़ होता है उनमें सब से बड़ा अधिकार, ज़िंदगी बचाने का हक़ होता है। जब आप अपने ऊपर किसी के एहसान को बढ़ा चढ़ा कर पेश करना चाहते हैं और यह कहना चाहते हैं कि उस का आप पर हक़ है तो मिसाल के तौर पर यह कहते हैं कि इन्होंने मुझे ज़िंदगी दे दी। ज़िंदगी के हक़ का क्या मतलब है? मतलब यह है कि मिसाल के तौर पर आप डूब रहे थे उसने आप को बचा लिया, आप के ऊपर मकान का मल्बा गिरने वाला था उसने आप को बचा लिया, यानी यह जो दुनिया की ज़िदंगी आप से छिन रही थी उसे आप को वापस लौटा दिया, यह ज़िंदगी का हक़ है, यह सब से बड़ा एहसान और हक़ है। आप सब लोगों को देखें या रिसर्च करें तो आप को नज़र आएगा कि लोग इसे सब से बड़ा हक़ समझते हैं और कहते हैं कि यह मुझे ज़िंदगी देने वाले हैं। लेकिन यह जो ज़िंदगी आप को लौटायी गयी है वह कब तक रहने वाली है? सीमित भी है और अधूरी भी है और कमज़ोर भी है, हो सकता है दूसरे दिन ही हार्ट अटैक या कैंसर या फिर किसी और बीमारी की वजह से यह जीने का हक़ इन्सान से छीन लिया जाए। अल्लाह ने फ़रमाया है कि “हे ईमान लाने वालो!  अल्लाह और उसके रसूल की आवाज़ पर लब्बैक कहो जबकि वो (रसूल) तुम्हें बुलाएं उस चीज़ की तरफ़ जो तुम्हें (रूहानी) ज़िंदगी बख़्शने वाली है”।(4) ज़िंदगी, पैग़म्बरे इस्लाम आप को देते हैं। यह ज़िंदगी, वह ज़िदंगी नहीं है, यह वह ज़िंदगी है जिसमें दुनिया में भी कामयाबी है, आप के दिल भी आबाद रहते हैं, आप की रूह नूरानी होती है, इस से आप की ज़िंदगी भी मधुर हो जाती है और यह वह ज़िंदगी है जो हमेशा बाक़ी रहती है। यह ज़िदंगी ख़त्म होने वाली नहीं है, इसे कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकता, हमेशा रहने वाली ज़िंदगी है। जो ज़िंदगी इस्लाम, दीन और पैग़म्बरे इस्लाम इन्सानियत को देते हैं, उसकी अहमियत, उस ज़िंदगी देने से हज़ारों गुना बेहतर है जो मिसाल के तौर पर हमें मलबे से निकाल कर या डूबने से बचा कर दी गयी हो। यह, पैग़म्बरे इस्लाम का हक़ है। हम सब पर पैग़म्बरे इस्लाम का हक़ है।

अब कुछ लोगों को यह मौक़ा नहीं मिला कि वह पैग़म्बरे इस्लाम के दीन को जान पाएं यानी वो लोग जो मुसलमान नहीं हैं, तो इन लोगों के सामने एहसान चुकाने का रास्ता बंद है, अब जहां तक इस बात का सवाल है कि अल्लाह उनके साथ क्या करेगा तो यह हमारा विषय नहीं है लेकिन यह लोग क़र्ज़ अदा नहीं कर सकते।  लेकिन जो इस्लाम में यक़ीन रखते हैं वो यह एहसान चुका सकते हैं, वो यह क़र्ज़ अदा कर सकते हैं, वो यह काम कर सकते हैं, इसका रास्ता उन्हें बताया गया हैः “और अल्लाह की राह में जेहाद करो जैसा कि जेहाद करने का हक़ है। उसने तुम्हें मुन्तख़ब किया है और दीन के मामले में उसने तुम्हारे लिए कोई तंगी नहीं रखी। अपने बाप (पूर्वज) इब्राहीम (अ) की मिल्लत की पैरवी करो। उसी (अल्लाह) ने इससे पहले भी तुम्हारा नाम मुसलमान रखा।”(5) यह “अल्लाह की राह में जेहाद” इस लिए था क्योंकि अल्लाह के हुक्म के आगे सिर झुकाने वाले हैं, यह एहसान उतारने का एक तरीक़ा है। अगर आप पैग़म्बरे इस्लाम का क़र्ज़, इस बहुत बड़े हक़ को अदा करना चाहते हैं तो उसका रास्ता यह हैः “अल्लाह की राह में जेहाद करो जैसा कि जेहाद करने का हक़ है” भरपूर जेहाद। जेहाद का मतलब सिर्फ़ तलवार, आरपीजी या यही सब चीज़ें नहीं हैं, जेहाद हर मैदान में होता है। जेहाद इल्म व साइंस के मैदान में, राजनीति के मैदान में जेहाद, दीन की आगाही हासिल करने की राह में जेहाद, अख़लाक़ व व्यवहार की राह में जेहाद कि जिसकी हमें बहुत ज़्यादा ज़रूरत है। हम सब को अख़लाक़ और अच्छे व्यवहार की ज़रूरत है, हम सब को इल्म व साइंस की ज़रूरत है, जेहाद करना चाहिए। हम जेहाद कर सकते हैं, अगर हम अल्लाह के इस हुक्म की कि “अल्लाह की राह में जेहाद करो जैसा कि जेहाद करने का हक़ है” पैरवी करते हैं तो उस वक़्त हम यह कह सकते हैं कि हमने अपनी ताक़त भर पैग़म्बरे इस्लाम के हक़ को अदा कर दिया है। हमें इस्लाम की राह में जेहाद करना चाहिए।

आज कल इस्लाम के ख़िलाफ़ दुश्मनी किसी भी दौर से ज़्यादा खुल कर सामने आ रही है, पहले भी इस्लाम से दुश्मनी बरती जाती रही है लेकिन आज खुल कर सामने है कि जिसका एक जाहिलाना नमूना क़ुरआने मजीद का अनादर है जिसके दौरान आप देखते हैं कि एक जाहिल व बेवक़ूफ़ आदमी, यह काम करता है और एक सरकार भी उसका साथ देती है, यह इस बात का सुबूत है कि मामला सिर्फ़ यही क़ुरआने मजीद की तौहीन का नहीं है। इस सिलसिले में मेरी बात किसी भी तरह से उस जाहिल व मूर्ख आदमी के बारे में नहीं है जो यह काम करता है, वह तो पर्दे के पीछे सक्रिय खिलाड़ियों का मक़सद पूरा करने के लिए ख़ुद को सबसे बड़ी सज़ा, मौत की सज़ा का हक़दार बना रहा है। मुझे उससे कोई मतलब नहीं है। बात उन लोगों की है जो पर्दे के पीछे रहते हैं और पीछे रह कर इस क़िस्म के अपराधों और घृणित कामों की प्लानिंग करते हैं। यह लोग यह समझते हैं कि इस तरह की हरकतों से क़ुरआने मजीद को कमज़ोर कर देंगे, ग़लत फ़हमी है उनकी, वह ख़ुद की इज़्ज़त उतार रहे हैं, अपना अस्ली चेहरा बेनक़ाब कर रहे हैं।

क़ुरआने मजीद हिकमत व ज्ञानपूर्ण बातों की किताब है, पहचान की किताब है, लोगों को इन्सान बनाने की किताब है, जो क़ुरआन का दुशमन होता है वह आगाही का दुश्मन होता है, सूझबूझ का दुश्मन होता है, लोगों को इन्सान साज़ी का दुश्मन होता है। क़ुरआन ज़ुल्म व अत्याचार के ख़िलाफ़ है। क़ुरआन, इन्सानों को ज़ुल्म से मुक़ाबले का हौसला देता हैः न तो ज़ुल्म करो न ज़ुल्म सहो (6) क़ुरआन मजीद लोगों को जगाने वाला है, जो क़ुरआन का दुश्मन होता है वह इन्सानों को जगाने के ख़िलाफ़ होता है, ज़ुल्म के ख़िलाफ़ जंग का दुश्मन होता है। वह लोग इन हरकतों से ख़ुद को ही बे इज़्ज़त करते हैं। क़ुरआने मजीद हर रोज़ ज़्यादा से ज़्यादा नूरानी हो रहा है, यह नूरानी किताब, दुनिया में हर रोज़ ज़्यादा से ज़्यादा मशहूर हो रही है और होती रहेगी, पहले से बहुत ज़्यादा।

क़ुरआन यक़ीनी तौर पर भ्रष्ट ताक़तों के लिए ख़तरा है, जैसा कि मैंने कहा, क़ुरआन ज़ुल्म करने से भी रोकता है और इसी तरह ज़ुल्म सहने वाले इन्सान को भी सरज़निश करता है कि उसने ज़ुल्म सहना गवारा क्यों किया। यह ज़ुल्म करने वाली ताक़तों के लिए ख़तरनाक शुमार होता है। जी हां, क़ुरआने मजीद में उनके लिए यह ख़तरा है, इस तरह का ख़तरा है उनके लिए। यह लोग जो फ़्रीडम ऑफ स्पीच के नाम पर यह बार बार दोहराए जाने वाले झूठे दावे करके इस काम को सही ठहराने की कोशिश करते हैं वो दरअस्ल दुनिया वालों के सामने अपनी इज़्ज़त मिट्टी में मिलाते हैं। क्या उन मुल्कों में जहां क़ुरआन की तौहीन करने की इजाज़त दी जाती है, ज़ायोनियों के प्रतीकों को निशाना बनाने की इजाज़त दी जाएगी? इस से बेहतर कौन सा तरीक़ा और कौन सी ज़बान है जिसके ज़रिए यह साबित किया जा सकता है कि इन लोगों पर दुनिया को लूटने वाले लुटेरे और अवैध क़ब्ज़ा करने वाले ज़ालिम ज़ायोनियों का असर है, चाहे वो ज़ायोनी हों जो अवैध क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में रहते  हैं, चाहे वो हों जो दूसरीं जगहों पर रह रहे हैं। तो यह पैग़म्बरे इस्लाम के बारे में कुछ बातें थीं।

इस मुलाक़ात और इस हफ़्ते (एकता सप्ताह) का मक़सद मुसलमानों के बीच एकता है। ज़ाहिर सी बात है कि मुसलमानों में एकता और यूनिटी के बारे में बहुत बातें हुई हैं, हम ने भी की हैं और दूसरों ने भी कही हैं, सब ने इस बारे में बात की है। मैं इस बारे में एक छोटी सी बात आज कहना चाहता हूं। एकता का दुश्मन कौन है? इस पर ध्यान दिया जाए। कौन है जिसे मुसलमानों की एकता से नुक़सान पहुंचेगा? इस पर सोचें। मुसलमानों के बीच एकता के दुश्मन वे लोग हैं जिन्हें अगर इस्लामी सरकारें और इस्लामी मुल्क एक हो जाएं तो नुक़सान पहुंचेगा, हस्तक्षेप नहीं कर पाएंगे, लूट-मार नहीं कर पाएंगे, नोच-खसोट नहीं कर पाएंगे, कठिनाई में पड़ जाएंगे, मुसलमानों के बीच एकता के दुश्मन वही लोग हैं। यक़ीनी तौर पर इस्लामी मुल्कों का दायरा बहुत बड़ा है। मैं अभी यहां सिर्फ़ अपने इलाक़े यानी पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ़्रीक़ा की बात कर रहा हूं। अगर इसी इलाक़े के मुल्क एक हो जाएं तो कौन की बड़ी ताक़त फिर ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं कर पाएगी, चोरी नहीं कर पाएगी, इन मुल्कों के अंदरूनी मामलों और विदेश नीति में दख़ल नहीं दे पाएगी? वो कौन सी ताक़त है? अमरीका, बिल्कुल ज़ाहिर सी बात है।

अगर ईरान, इराक़, सीरिया, लेबनान, जैसे मुल्क या परशियन गल्फ़ के तटीय मुल्क, सऊदी अरब, मिस्र, जार्डन, यह सारे मुल्क अपने बुनियादी मामलों में समन्वित रुख़ अपनाएं तो बड़ी ताक़तें उन के अंदरुनी मामलों में या इन की विदेश नीतियों में दख़ल नहीं दे सकतीं, इस वक़्त दख़ल दे रही हैं। इस वक़्त अमरीका आर्थिक नुक़सान पहुचांता है, राजनीतिक चोट पहुंचाता है, सीरिया का तेल चुरा कर ले जाता है, ख़ूंखार आतंकवादी दाइश को अपने कैंपों में रखता है, उन्हें बचा कर रखता है उस दिन के लिए कि जब फिर उनकी ज़रूरत हो तो उन्हें बाहर लाकर किसी भी मुल्क की जान मुसीबत में डाल दे, यह सब किया जा रहा है। इलाक़े की सरकारों की विदेश नीतियों में दख़ल देते हैं कि “यह काम करो वह काम न करो” यहां तक कि कुछ मुल्कों के तो अदंरुनी मामलों में भी दख़ल देते हैं। अगर हम एक साथ मिल जाएं, एक रुख़ अपनाएं, तो अमरीका यह सब नहीं कर पाएगा, आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पाएगा। इस मुद्दे पर विचार करने की ज़रूरत है, मुल्कों के ज़िम्मेदार, नेता, बुद्धिजीवी और पढ़े लिखे लोग इस मुद्दे पर विचार करें, इसके फ़ायदे देखें। यक़ीनी तौर पर कोई भी मुल्क यह पसंद नहीं करता कि कोई बाहरी ताक़त, उसके मुद्दों में, उसकी सरकार में, उसके रुख़ में उसपर हुक्म चलाए कि “यह करो यह न करो”, यह तो साफ़ है लेकिन मजबूर होकर यह सब मानना पड़ता है। क्यों? क्योंकि वह अकेला होता है। अगर एक दूसरे का हाथ थामे रहें, सरकारें एक दूसरे के साथ खड़ी रहें, एक साथ रहें और मिल कर आगे बढ़ें तो फिर अमरीका जैसी ताक़तों को दख़ल देने और “यह करो वह न करो” का हुक्म देने से रोका जा सकता है, रुकावट पैदा की जा सकती है, यह काम किया जा सकता है।

यक़ीनी तौर पर यह साफ़ है और हमने बार बार कहा है कि हम किसी को जंग और फ़ौजी कार्यवाही के लिए नहीं उकसाते, लेकिन हम कहते हैं कि हमें एक साथ रहना चाहिए ताकि अमरीका की ओर से जंग भड़कायी न जा सके, वह जंग भड़काते हैं। यह इलाक़े की जो जंगें हैं इनमें से लगभग सभी में बाहरी हाथ है, एक सरहदी झगड़े और इस तरह के मामले से इस तरह की जंगें नहीं हो सकतीं जो हमने हालिया कुछ बरसों में अपने इलाक़े में देखी हैं, भड़काया गया, दख़ल दिया गया, पैसे ख़र्च किये गये और बेगुनाह व निहत्थे आम लोगों के लिए आतंकवादियों को भेजा गया। विभिन्न मुल्कों के पढ़े लिखे लोगों को, ओहदेदारों को, राष्ट्राध्यक्षों को, इस मुद्दे पर वाक़ई सोचना चाहिए। यह हर मुल्क के लिए अहम मुद्दा है, बहुत अहम बात है। कोई भी मुल्क एकता से कुछ नहीं खोएगा बल्कि बहुत कुछ हासिल करेगा।

लेकिन ज़ायोनी सरकार का मामला अलग है, यह भी हमारे इलाक़े की एक समस्या है, हमने अभी तो अमरीका की बात की है। ज़ायोनी शासन, दुश्मनी और ग़ुस्से से भरा है, सिर्फ़ हमारे ख़िलाफ़ नहीं हम तो उसे अहमियत ही नहीं देते, इस्लामी जुम्हूरिया के ख़िलाफ उसकी दुश्मनी साफ़ है लेकिन दूसरे मुल्कों के बारे में भी वह इसी तरह का है। यह नहीं है कि ज़ायोनी शासन अपने आस पास के सारे मुल्कों से बड़ा ख़ुश है। नहीं! ज़ोयनी, मिस्र के भी दुश्मन हैं, सीरिया के भी दुश्मन हैं, इराक़ के भी दुश्मन हैं, क्यों? क्योंकि उनका मक़सद, “नील नदी से फ़ुरात नदी” तक पहुंचना था, वो कामयाब नहीं हो पाए। इन मुल्कों में अलग अलग दौर में अलग अलग वजहों से यह होने नहीं दिया गया। इस लिए उन के दिल में दुश्मनी भरी है, ग़ुस्से से उबल रहे हैं, यक़ीनी तौर पर क़ुरआन का कहना हैः “कहो ग़ुस्से से मर जाओ” (7) जी हां ग़ुस्से में रहो और इसी ग़ुस्से में मर जाओ, और यही होगा वो मर रहे हैं। अल्लाह की मदद से यह यह “अपने ग़ुस्से से मर जाओ” की जो बात है वह ज़ायोनी शासन के बारे में सच हो रही है। तो एकता की बात यहां पर भी बहुत असर रखती है।

आज फ़िलिस्तीन, इस्लामी दुनिया का सब से पहला मुद्दा है। कई दशको से पहला मसला है, आज कल की बात नहीं है, कई दशकों से फ़िलिस्तीन का मुद्दा, सही अर्थों में, इस्लामी दुनिया का सब से पहला मुद्दा है। एक क़ौम को उसके अपने घर से निकाल दिया गया है, हड़प लिया गया है, क़ब्ज़ा कर लिया गया है, उनके हज़ारों लोगों को मार दिया गया, टार्चर किया गया है, जेल में डाला गया है, बेघर कर दिया गया है, यह कोई मामूली बात नहीं है। इस्लामी दुनिया का सब से बड़ा मुद्दा, फ़िलिस्तीन का मुद्दा है।

इस्लामी जुम्हूरिया ईरान का तयशुदा नज़रिया यह है कि वह सरकारें जो, ज़ायोनी शासन के साथ संबंध बनाने का जुआ खेल रही हैं वह ग़लती कर रही हैं, नुक़सान उठाना होगा, हार उनका इंतेज़ार कर रही है, यूरोप वालों की ज़बान में वो हारने वाले घोड़े पर शर्त लगा रही हैं। आज कल ज़ायोनी शासन की जो पोज़ीशन है वह ऐसी नहीं है कि उसे देख कर उससे करीब़ होने की प्रेरणा मिले। यह ग़लती नहीं करनी चाहिए। अवैध सरकार, जाने वाली है। आज फ़िलिस्तीनी आंदोलन हमेशा से इन बीते 70 बरसों में सब से ज़्यादा तेज़ और ताक़तवर है। आप देख ही रहे हैं कि आज फ़िलिस्तीनी नौजवान, फ़िलिस्तीनी आंदोलन, अवैध क़ब्ज़े, ज़ुल्म और ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ आंदोलन, हमेशा से ज़्यादा ताक़तवर और जोश से भरा है और इंशाअल्लाह यह आंदोलन नतीजे तक पहुंचेगा और जैसा कि इमाम ख़ुमैनी ने ज़ायोनी शासन को कैंसर कहा है(8) इसी तरह यह कैंसर अल्लाह की मदद से ख़ुद फ़िलिस्तीनियों के हाथों और रेसिस्टेंस मोर्चे के ज़रिए पूरे इलाक़े से जड़ से साफ़ हो जाएगा, इंशाअल्लाह।

      मुझे यक़ीन है कि अल्लाह इस्लामी उम्मत का सिर ऊंचा रखेगा और उसे बुलंदी व इज़्ज़त से नवाज़ेगा ताकि वह अपनी बेपनाह क़ुदरती नेमतों और इन्सानी योग्यताओं से पूरा फ़ायदा उठा पाए।

      वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहू

  1. इस मुलाक़ात के शुरु में ईरान के प्रेज़ीडेंट सैयद इब्राहीम रईसी ने तक़रीर की।
  2. सूरए इब्राहीम आयत 1
  3. नहजुल बलाग़ा, ख़ुत्बा 108
  4. सूरए अनफ़ाल, आयत 24
  5. सूरए हज, आयत 78
  6. सूरए बक़रह, आयत 279
  7. सूरए आले इमरान, आयत 119
  8. सहीफ़ए इमाम, जिल्द 15, पेज 519