इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने परमाणु विभाग के वैज्ञानिकों, माहिरों और अधिकारियों से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में उन्होंने परमाणु उद्योग के अनेक फ़ायदों और देश व विश्व स्तर पर इस उद्योग की अहमियत पर रौशनी डाली। 11 जून 2023 को अपने इस संबोधन में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने परमाणु समझौते और आईएईए से सहयोग के बारे में अहम बिंदुओं पर ज़ोर दिया। (1)
आयतुल्लाह ख़ामेनेई की स्पीचः
बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम
सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार हज़रत मोहम्मद और उनकी पाक नस्ल ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।
आप सब का स्वागत है मैं सच में उन सभी साइंटिस्टों और ओहदेदारों का शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने आज इस अच्छी एग्ज़ीबिशन और इस अच्छी मुलाक़ात का इंतज़ाम किया, बड़ी अच्छी प्रदर्शनी थी, दिल को खुश करने वाली, हौसला देने वाली और ख़ुशख़बरी देने वाली प्रदर्शनी थी। मैंने आप लोगों से कहने के लिए कुछ बातें सोची हैं तो वह कहना चाहता हूं।
सबसे पहली बात तो एटॉमिक इंडस्ट्री की अहमियत के बारे में है। यक़ीनी तौर पर आप सबको पता है और इस इंडस्ट्री की अहमियत के बारे में आप ख़ुद जानते हैं लेकिन आम लोगों में बहुत से लोगों को मालूमात नहीं है और उन्हें एटॉमिक इंडस्ट्री की अहमियत, उसके अलग अलग पहलू और लोगों के जीवन और मुल्क की तरक़्क़ी में इस इंडस्ट्री के रोल के बारे में सही से पता नहीं है। मैंने लिख रखा है और अपनी बातों में उसका ज़िक्र भी करूंगा। इसी तरह मैंने इस प्रदर्शनी में भी कई बार अपने इन भाइयों से कहा है कि ग़लती आप लोगों की है जो आप जनता से बात नहीं करते और पब्लिक को नहीं बताते कि क्या कर रहे हैं और इस आर्गनाइज़ेशन ने कितने बड़े मिशन की तरफ़ बढ़ने का पक्का इरादा किया है। आप सब को मालूम है, पब्लिक को नहीं मालूम, इस लिए मैं संक्षेप में कुछ कहना चाहता हूं।
मुख़्तसर तौर पर जो कहा जा सकता है वह यह है कि एटॉमिक इंडस्ट्री, तकनीक, इकॉनोमिक्स, हेल्थ जैसे उन सभी मैदानों में मुल्क की तरक़्क़ी और ताक़त के लिहाज़ से अहम है जो मुल्क की इज़्ज़त बढ़ाते हैं और लोगों की ज़िंदगी बेहतर करते हैं इसी तरह यह इंडस्ट्री मुल्क के लिए इन्टरनेशनल सतह पर पॉलिटिकल पोज़ीशन के लिहाज़ से भी अहम है यानी जब आप इस इंडस्ट्री के अलग अलग मैदानों में तरक़्क़ी करते हैं, काम कर रहे हैं, समस्याओं को ख़त्म कर रहे हैं तो दुनिया की ख़ुफ़िया एजेन्सियों, मीडिया, बहुत से राजनेताओं और शायद बहुत से साइंटिस्टों और पढ़ने लिखने में दिलचस्पी रखने वालों को भी इसकी जानकारी होती है और यह मुल्क की इज़्ज़त है, इस लिए एटॉमिक इंडस्ट्री में तरक़्क़ी इन्टरनेशल सतह पर मुल्क की पोज़ीशन और राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के लिहाज़ से भी अहम है। यह दो पहलू हुए। तीसरा पहलू यह है कि इससे अपने मुल्क पर ख़ुद पर भरोसा बढ़ता है। अब आप तो देख ही रहे हैं कि दुश्मन की तरह तरह की प्रोपगंडा मशीनें पूरी ताक़त से काम कर रही हैं ताकि यह दिखाया जा सके कि ईरान का कोई भविष्य नहीं है, ताकि नौजवानों को नाउम्मीद किया जा सके, यह सब कुछ सोशल मीडिया पर, टीवी चैनलों पर और राजनेताओं के बयानों में अच्छी तरह से देखा जा सकता है। आपका यह काम, दुश्मन की इन हरकतों के उलट है यानी यह काम, ईरानी क़ौम में उम्मीद जगाता है और ख़ुद पर भरोसा पैदा करता है। जनता, नौजवान और पढ़े लोगों की समझ में आता है कि कौनसे बुनियादी और अहम मैदानों को खोजा और वहां अपने झंडे गाड़े जा सकते हैं। तो यह तीन पहलू मैंने एटॉमिक इंडस्ट्री की अहमियत के लिहाज़ से बयान किए हैं। इन पलहुओं के मद्देनज़र सबको यह यक़ीन करना चाहिए कि एटॉमिक इंडस्ट्री मुल्क की ताक़त और इज़्ज़त व हैसियत का एक बुनियादी तत्व है। अगर आपको मज़बूत ईरान चाहिए, जो भी ईरान से मुहब्बत करता है, जो भी इस्लामी जुम्हूरिया को पसंद करता है, जो भी ईरानी क़ौम से मुहब्बत करता है और इस देश को ताक़तवर बनाना चाहता है, उसे चाहिए कि वह इस मैदान में किये जाने वाले कामों और रिसर्च को अहमियत दे और उसे अहम समझे। मैं तो यह कहता हूं कि यह जो दुश्मनों ने एटमी प्रोग्राम पर ही ध्यान केन्द्रित कर रखा है उसकी वजह भी यही है, वजह यही है कि आप देखते हैं कि 20 बरसों से हम तरह-तरह के चैलेंजों का सामना कर रहे हैं। हमारे सामने एटमी चैलेंज बीस बरस से हैं। दुश्मनों ने हमारे लिए इसे चैलेंज क्यों बना दिया? क्यों इतना इस मामले में रोड़ा अटकाते हैं? क्या इस पूरी दुनिया में सिर्फ़ हम एटमी मैदान में काम कर रहे हैं? हालांकि उनका कहना है कि वह इस बात से डरते हैं कि कहीं हम एटमी हथियार न बना लें लेकिन वह झूठ बोलते हैं, उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि हम एटमी हथियार नहीं बनाना चाहते। अमरीकी ख़ुफ़िया एजेन्सियों ने बार बार साफ़ तौर पर कहा है कि ईरान एटमी हथियारों की कोशिश में नहीं है। अभी कुछ महीने पहले ही शायद चार-पांच महीने पहले, दो बार यह क़ुबूल किया है कि ऐसा कोई सुबूत नहीं है जिससे यह पता चले कि ईरान एटमी हथियारों की तरफ़ बढ़ रहा है। (3) वह सही कह रहे हैं लेकिन हम जो एटमी हथियारों की तरफ़ नहीं जा रहा है वह इस लिए नहीं है कि हम उनसे डरते हैं और उनके लिए यह कर रहे हैं, बल्कि हमारा यही नज़रिया है। एटमी हथियार क़त्ले आम के लिए इस्तेमाल होता है, हम आम तबाही फैलाने वाले हथियारों के ख़िलाफ़ हैं, यह हमारे दीन के ख़िलाफ़ है, इस्लाम के ख़िलाफ़ है, चाहे एटमी हथियार हों, चाहे केमिकल हथियार हों या फिर किसी और तरह के आम तबाही फैलाने वाले हथियार, हम सबके ख़िलाफ़ हैं। इस्लाम के शुरुआती दौर में, पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली के ज़माने में होने वाली जंगों में यह कहा जाता कि ध्यान रहे, लोगों पर पानी बंद न किया जाए, उस वक़्त आम लोगों के ख़िलाफ़ बड़ा हथकंडा, पानी बंद कर देना था, उस वक़्त केमिकल हथियार वग़ैरा तो थे नहीं। हम इस्लाम की वजह से इस तरह के हथियारों की तरफ़ नहीं जाना चाहते वरना अगर ऐसा न होता और हम यह काम करना चाहते तो उनमें दम नहीं था कि वह हमें रोक लेते, जैसा कि वह लोग अभी तक हमारी एटमी तरक़्क़ी को नहीं रोक पाए और न ही रोक पाएंगे। अगर हम एटमी हथियार बनाना चाहते तो बना लेते, उन्हें भी यह मालूम है। इस लिए एटमी हथियारों का बहाना झूठ है, मामला यह नहीं है, बात कुछ और है। उन्हें मालूम है कि एटॉमिक इंडस्ट्री में आगे बढ़ना दर अस्ल मुल्क के विभिन्न मैदानों में तरक़्क़ी है, वह यही नहीं चाहते, हमारे दुश्मन नहीं चाहते कि हम विभिन्न मैदानों में ग़ैर मामूली और हौसला बढ़ाने वाली बड़ी तरक़्क़ी करें। ईरानी क़ौम जो भी तरक़्क़ी करेगी, जो भी सोचेगी, उसकी जो राह होगी, उसकी डेमोक्रेसी जो होगी वह सब दूसरी क़ौमों पर अपना असर डालेगी, दुश्मन यह नहीं चाहते, वह इसी से डरते हैं, उनका मक़सद, साइंस के एक बेहद अहम मैदान यानी एटमी मैदान में हमारी तरक़्क़ी को रोकना है।
तो यह वह चैलेंज है जिसका एटमी मैदान में हम अपने दुश्मनों की तरफ़ से 20 बरस से सामना कर रहे हैं, इससे कुछ सच्चाइयां भी सामने आयी हैं, 20 बरस से जारी इस विवाद ने कई सच्चाइयों को हमारे सामने ला दिया। सबसे पहली सच्चाई तो यह है कि इससे हमारे नौजवानों की असाधारण योग्यताओं का पता चल गया। आज यहां जो कुछ दिखाया गया वह सब - वैसे सच्चाई इससे कई गुना ज़्यादा है - पांबदियों के ज़माने में हुआ है, धमकियों और ख़तरों के बीच हुआ है। हमेशा हमारे सांइटिस्टों को धमकाया गया, हमारे साइंटिस्टों को क़त्ल किया गया, कुछ को क़त्ल किया गया, कुछ को क़त्ल की धमकी दी गयी, इन हालात में भी यह तरक़्क़ी हुई है। इस लिए हम ह्यूमन रिसोर्स के लिहाज़ से ग़ैर मामूली हैं। हम श्रम बल के लिहाज़ से दुनिया के बहुत से मुल्कों और दुनिया के औसत से बहुत ऊपर हैं, आगे हैं, और यह सच्चाई, दूसरे मैदानों में भी नज़र आयी है, एटमी मामले में, एटॉमिक इंडस्ट्री में पूरी तरह से यह सच्चाई सामने आयी है। यह एक सच्चाई है।
दूसरी सच्चाई जो नज़र आयी है, हमारे विरोधियों की निराधार, धौंस धांधली पर आधारित और इंसाफ़ से दूर लॅाजिक है। ज़ोर ज़बरदस्ती की की बात करते हैं, यानी दुनिया में जिस तरह के सेफ़गार्ड प्रोटोकोल्स का चलन है उनसे बहुत ज़्यादा की उम्मीद हमारे मुल्क से रखी जाती है और ज़बरदस्ती की बात करते हैं कि “यह काम करें, वह काम न करें, और अपने आर्गनाइज़ेशन के लिए जहां हैं वहीं रहें उससे आगे न बढ़ें, इधर उधर न जाएं” लेकिन क्यों? अगर आपके दिमाग़ में कीड़े नहीं हैं, आपका कोई ग़लत इरादा नहीं है, आप धमकी नहीं देना चाहते, तो क्यों इस बात से डरते हैं कि हम किसी बहुत ही सुरक्षित जगह अपना परमाणु प्रतिष्ठान बनाएं? उनकी ग़ैर इन्सानी और नाइंसाफ़ी पर आधारित लॉजिक खुल कर सामने आ गयी। यह भी एक सच्चाई है जो इस विवाद के दौरान नज़र आयी।
एक और सच्चाई, जो ज़ाहिर हुई वह यह थी कि हमारे दुश्मन और सामने वाले पक्ष अपने वादों में सच्चे नहीं हैं। इतने बरसों के दौरान - अब आपमें से जिन लोगों का ताल्लुक़ एटॉमिक इंडस्ट्री से पुराना है वह समझ रहे होंगे कि मैं किस तरफ़ इशारा कर रहा हूं - अलग-अलग मैदानों में चाहे वह सरकारें रही हों जिनसे हम बात चीत कर रहे थे, चाहे ख़ुद आईएईए, इन सबने बार-बार वादे किये लेकिन अपने उन वादों पर कभी अमल नहीं किया, कभी न पूरे होने वाले वादे, तो इस बुनियाद पर 20 बरस से जारी इस विवाद का एक नतीजा यह भी है कि हमारी समझ में यह आ गया कि इनके वादों पर, इन की बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, भरोसा न होना, यह अहम कामयाबी है, इसे आप अहम समझें। हमने बहुत से अवसरों पर इसी तरह के तर्कहीन भरोसे की वजह से चोट खायी है। अगर किसी मुल्क के ओहदेदारों और वहां की जनता को यह मालूम हो और उनकी समझ में यह आता हो कि कहां भरोसा करना चाहिए और कहां नहीं करना चाहिए तो यह बहुत अहम चीज़ है, हम यह समझ चुके हैं। हम इन 20 बरसों में समझ चुके हैं कि कौन भरोसेमंद है और कौन नहीं है। तो यह बात तो एटमी मामले की अहमियत के बारे में थी, मैंने कहा कि आप लोगों को शायद इन चीज़ों के बारे में हमसे ज़्यादा मालूम हो लेकिन मेरा दिल चाहता है कि जनता को भी इस बारे में मालूम हो।
दूसरी बात जो मैं करना चाहता हूं वह, हमारे मुल्क में एटॉमिक इंडस्ट्री में होने वाली तरक़्क़ी का ज़िक्र है। यक़ीनी तौर पर मैं तकनीकी आदमी नहीं हूं और इस बारे में उतनी मालूमात नहीं है कि मैं उस पर पूरी तरह से बात कर सकूं, यह आप लोगों का काम है कि आप सबको बताएं कि क्या तरक़्क़ी हुई है, मैं तो मोटे तौर पर कुछ बातों की तरफ़ इशारा करना चाहता हूं। सबसे पहले एक बात कहना चाहता हूं। हमारी राजनीतिक भाषा में “कमज़ोर किये गये लोग” और “कमज़ोर करना” जैसे लफ़्ज़ शामिल हो गये हैं और हम कहते हैं कि “फ़लां क़ौम, कमज़ोर की गयी है” या यह कि “हम इन्क़ेलाब से पहले एक कमज़ोर की गयी क़ौम थे।“ यह जो “मुस्तज़अफ़” यानी “कम़जोर किया गया” का लफ़्ज़ है इसके बहुत गहरे अर्थ हैं। “मुस्तज़अफ़” का क्या मतलब है? इसका मतलब “वह आदमी जिसे कमज़ोर रखा गया हो” “कमज़ोर“ और “कमज़ोर रखा गया” में फ़र्क़ है। “कमज़ोर” यानी जो कमज़ोर हो, लेकिन “मुस्तज़अफ़” यानी वह जिसे “कमज़ोर रखा गया हो।“ कमज़ोर रखा गया होना जो अस्ल में “मुस्तज़अफ़” का अर्थ है वह दो तरह का होता है। कभी यह होता है कि कोई एक ताक़त आती है और किसी क़ौम के सिर पर सवार हो जाती है, उस पर क़ब्ज़ा कर लेती है, और उसे हमेशा कमज़ोर ही रखती है, जैसे साम्राज्यवादी ताक़तें थीं जिन्हें उन मुल्कों को कमज़ोर रखा जिन पर उनका क़ब्ज़ा हुआ था। अग्रेज़ों ने बरसों तक इंडियन सबकॉन्टिनेंट के मुल्कों को कमज़ोर रखा। अगर आप हिंदुस्तान के भूतपूर्व प्राइम मिनिस्टर नेहरू (4) की, जो एक जानकार और पढ़े लिखे इन्सान थे, किताब ग्लिंप्सेज़ ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री पर नज़र डालें तो आप देखेंगे कि वह बताते हैं कि अंग्रेज़ों के आने से पहले हिंदुस्तान क्या था और अंग्रेज़ों के आने के बाद क्या हो गया, कितना पीछे चला गया, कितना ग़रीब हो गया, साम्राज्यवाद यह है। इस बुनियाद पर एक तरह का “कमज़ोर करना“ तो यह है कि एक ताक़त किसी क़ौम को पीछे रखे जो बुरा काम है, ख़तरनाक बात है। लेकिन उससे ज़्यादा ख़तरनाक, इस तरह से कमज़ोर रखने की दूसरी क़िस्म है और वह यह है कि किसी क़ौम को यह यक़ीन हो जाए कि वह कमज़ोर है, वह मान ले कि उससे कुछ नहीं होगा, वह यह यक़ीन कर ले कि वह कुछ नहीं कर सकती, यह बहुत ख़तरनाक है।
आप लोगों में से अक्सर ने ईरान में इन्क़ेलाब से पहले के हालात नहीं देखे हैं, उन में ज़िदंगी नहीं गुज़ारी है, लेकिन हमने बरसों उस दौर में गुज़ारे हैं, इस लिए उस वक़्त के बारे में हमें अच्छी तरह से पता है। आप लोग भी आज उन चीज़ों का पता कर सकते हैं, अगर स्टडी करें, ग़ौर करें, तो आप यह समझ सकते हैं कि उस दौर में क्या होता था। मैं आप लोगों से खुल कर कह रहा हूं कि हम इन्क़ेलाब से पहले के दौर में दोनों क़िस्मों की कमज़ोरी का शिकार थे। पहले तो यह कि हमें कमज़ोर रखा गया था यानी इन्हीं नौजवानों की तरह रज़ाई नेजाद, (5) शहरयारी, (6) और फ़ख्रीज़ादे, (7) की तरह के लोग जो इन्क़ेलाब के दौर में उभरे उन की तरह के नौजवान इन्क़ेलाब से पहले के दौर में भी थे लेकिन इतने ऊपर तक नहीं पहुंच पाते थे क्योंकि उन्हें पहुंचने नहीं दिया जाता था, ईरानी क़ौम की बेइज़्ज़ती की जाती थी और उसकी तरक़्क़ी की राह में रुकावट पैदा की जाती थी। उसी दौर में एक जगह संयोग से हमारी एक ऐसे आदमी से मुलाक़ात हो गयी जो सरकारी ओहदेदार था क्योंकि हमारा उनसे कोई ताल्लुक़ नहीं था, मतलब एक बैठक में हम थे और वहां संयोग से वह भी मौजूद था, मैंने बहुत सी चीज़ों पर तन्क़ीद और टिप्पणी शुरू कर दी, मैं जवान था और बात करने व बहस करने के लिए जोश व जज़्बा था लेकिन मेरी इन बातों पर उसका जवाब यह थाः “जनाब! यह आप कैसी बातें कर रहे हैं? हम यहां आराम से बैठे हैं, यूरोप के लोग, दूसरे लोग नौकर की तरह हमारे लिए काम कर रहे हैं, वह सामान लाते हैं, वह चीज़ें बनाते हैं और हम उन्हें इस्तेमाल करते हैं।“ लॉजिक देख रहे हैं? लॉजिक यह थी कि वह बनाते हैं, हम इस्तेमाल करते हैं, तो वह हमारे नौकर हुए। यूरोप वाले हमारा तेल ले जाते थे, हमारे बाज़ारों पर उनका क़ब्ज़ा था, हमारे मुल्क की पॉलिटिक्स में बहुत ज़्यादा दख़ल देते थे लेकिन वह बेवक़ूफ़ जिससे हम बात कर रहे वह इसे ईरानी क़ौम के लिए फ़ख्र समझता था। “पीछे रखे जाने“ की यह एक क़िस्म है। एक क़िस्म यह है।
दूसरी क़िस्म यह थी कि जनता को, नौजवानों को, यह यक़ीन दिला दिया गया था कि हमसे नहीं होने वाला। मुसद्दिक़ के दौर में तेल के राष्ट्रीयकरण के दौरान उस दौर की संसद में इस पर चर्चा हुई कि चलें तेल की इंडस्ट्री को नेशनलाइज़ कर लिया जाए, अंग्रेज़ों के हाथ से इसे ले लें, शाही सरकार के प्रधानमंत्री, हाज अली रज़्मआरा ने, जो एक फ़ौजी जनरल था, संसद में आकर, जहां तक मुझे याद है, यह बात कही, मेरे दिमाग़ में है कि उसने पार्लियामेंट में आकर यह कहाः “यह आप लोग तेल के राष्ट्रीयकरण और आबादान की रिफ़ायनरी को चलाने के बारे में कैसी बातें कर रहे हैं? क्या यह हमारे बस का है? ईरानी तो एक मिट्टी का लोटा तक बना नहीं सकते।“ आप लोगों ने मिट्टी का लोटा नहीं देखा होगा, उसके बारे में नहीं जानते होंगे। यह मिट्टी से बना एक लोटा होता है। आपने आम लोटा देखा होगा जिसे लोहे के पतरे या फिर तांबे से बनाया जाता था लेकिन एक और तरह का लोटा होता था जिसे दूर दराज़ के इलाक़ों में इस्तेमाल किया जाता था, मैंने देखा है, वह मिट्टी से बनाया जाता था यानी इन्सानों के हाथ से बनने वाली बहुत ही मामूली और छोटी चीज़। उसका कहना था कि ईरानी, वह मिट्टी का लोटा तक नहीं बना सकते, मतलब ज़्यादा से ज़्यादा वह यही बना सकते हैं, मतलब इस तरह से क़ौम को समझाया जाता था। “कमज़ोर रखना“ इसे कहते हैं, वह यह यक़ीन दिलाना चाहते थे कि तुम ईरानियों के बस का कुछ नहीं है, फ़ालतू में क्यों ज़िद करते हो, क्यों इस तरह की कोशिश कर रहे हो। यही वजह है कि पहलवी तानाशाही दौर में, आख़िरी बरसों में जब सोवियत संघ से भी संबंध अच्छे हो गये थे तो अमरीका से गेहूं ख़रीदा जाता और रूसी, साइलो गोदाम बनाते! मतलब साइलो गोदाम तक बना नहीं सकते थे, बांध, हाईवे और इस तरह की चीज़ों की तो बात ही छोड़ें, मतलब हालत इस तरह की थी।
अस्ल में उस दौर के पश्चिमवादियों और वेस्ट से लगाव रखने वालों की लॉजिक यह थी कि ईरानी कुछ नहीं कर सकता, उसके बस का नहीं है, ईरानियों से कुछ न होने वाला। अब उस नज़रिये की आज जो सच्चाई है उससे तुलना कीजिए। उन कामों से जो हमारे नौजवान इसी एटॉमिक इंडस्ट्री के मैदान में जिसके बारे में आप सबको अच्छी तरह से मालूम है, मिलाएं और देखें। दूसरे मैदान भी हैं, दूसरे मैदानों में भी इसी तरह की कामयाबी मिली है। बहुत सारे मैदानों में। डिफ़ेंस के मैदान में, नैनो के मैदान में, दूसरे और बहुत से सांइस के मैदानों में इसी तरह की तरक़्क़ी हुई है। यह जो आज का जज़्बा है, यह आज की जो उम्मीद है, यह काम का जो आज शौक़ है, और आज सामने आने वाली इन योग्यताओं की तुलना उस दौर की हालत से करें। उस दौर में वेस्ट से लगाव रखने वाले, ईरानी क़ौम को बेइज़्ज़त करते थे। आज हमारी क़ौम, वेस्ट से लगाव रखने वालों को बेइज़्ज़त कर रही है। आज हमारी क़ौम, उन लोगों को बेइज़्ज़त कर रही है जो इस तरह की सोच और ख़्याल में रहते हैं। किस तरह से बेइज़्ज़त कर रही है? इन्ही मशीनों के ज़रिए जो आप लोगों ने हमें यहां दिखायी है, यह दर अस्ल पश्चिम से लगाव रखने वाले और पश्चिमवादियों की बेइज़्ज़ती है, यह दर अस्ल उस ग़लती की निशानदही है जिसके तहत वह यह यक़ीन दिलाने की कोशिश कर रहे थे कि ईरानी क़ौम में क्षमता ही नहीं है। 20 बरसों से वेस्ट हमारी एटमी ताक़त को रोकने के लिए काम कर रहा है लेकिन आज हमारी एटमी तरक़्क़ी और संसाधन, यानि हमारी एटमी पूंजी, 20 साल पहले की तुलना में 100 गुना से भी ज़्यादा है यानि आज हमारे पास सन 2003 के मुक़ाबले में जब एटमी मामले में वेस्ट से हमारा विवाद शुरु हुआ, एटमी पूंजी 100 गुना से ज़्यादा है और यह सब ऐसे हालात में हुआ कि हम पर एक के बाद एक पाबंदी भी लगायी जाती रही है। जो लोग इस मैदान के हैं उन्हें अच्छी तरह से मालूम है और वह इन सब चीज़ों की रौशनी में फ़ैसला करते हैं। यह हमारे मुल्क की सच्चाई है। यक़ीनी तौर पर उन लोगों ने हमारी इस तरक़्क़ी को रोकने के लिए जो कुछ उनके बस में था किया, जुर्म भी किया, क़त्ल भी किया, भयानक जुर्म करके हमारे इन साइंटिस्टों को हम से छीन लिया। उन्हें लगा कि अगर शहरयारी और अली मुहम्मदी (8) और इन जैसे दूसरे साइंटिस्टों को हम से छीन लेंगे तो सारे काम ठप्प हो जाएंगे, लेकिन कुछ रुका नहीं, कोई फ़ासेला भी नहीं हुआ। ख़ुदा का शुक्र है कि काम आगे बढ़ा, यानि हमारे नौजवानों और हमारे साइंटिस्टों ने यह साबित कर दिया कि एटॉमिक इंडस्ट्री, घरेलू हो चुकी है, ईरानी क़ौम की हो चुकी है और अब इसे ईरानी क़ौम से छीना नहीं जा सकता। इस बात को तो वे लोग अब ख़ुद ही क़ुबूल करते हैं।
यहां पर मैं एक अलग बात कहता चलूं जो अलग है लेकिन अहम है। देखें वेस्ट में जिस घटना को “रीनेसन्स” कहा जाता है और जो वेस्ट में लाइफ़ स्टाइल में बदलाव के लिए जानी जाती है, उसे लगभग 500 बरस का समय बीत चुका है, रीनेसन्स में, सबसे बुनियादी जो नज़रिया था वह साइंस और धर्म के बीच टकराव का था, यानि वह यह कहना चाहते थे कि अगर आप सांइस में आगे बढ़ना चाहते हैं तो धर्म व रूहानियत और इस तरह की चीज़ों को अलग हटा दें, यह वेस्ट में रीनेसन्स के दौरान वहां के लोगों का सबसे अहम या एक अहम और बुनियादी नज़रिया था जिसे अब 500 साल गुज़र चुके हैं। आज इस्लामी जुम्हूरी ईरान में जो रूहानीयत का मुल्क है और “इस्लामी गणराज्य” है बड़े बड़े इल्मी व साइंटिफिक काम हो रहे हैं और वह भी उनके मुक़ाबले में जो बरसों से साइंस के विभिन्न मैदानों में काम कर रहे हैं। कौन लोग यह सब कुछ कर रहे हैं? ईमान रखने वाले नौजवान, नमाज़े शब पढ़ने वाले फ़ख़्रीज़ादे और शहरयारी जैसे लोग, ये सब यह काम कर रहे हैं, यानि साइंस और धर्म इस तरह से एक दूसरे में घुल मिल गया है। यह एक अहम बात है जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
तीसरी बात जो मैं कहना चाहता हूं जबकि वक़्त भी ख़त्म हो गया है, वह दर अस्ल कुछ सिफ़ारिशें हैं। पहली सिफ़ारिश जो मैंने यहां लिख रखी है लेकिन इस प्रदर्शनी में जो बातें मुझे बतायी गयीं उनसे पता चला कि ख़ुशक़िस्मती से इस तरफ़ ध्यान दिया जा रहा है, वह यह है कि एटमी मैदान में जो कामयाबियां मिली हैं उन्हें आम लोगों की ज़िंदगी में बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। एटमी तकनीक, इंडस्ट्री, हेल्थ, एग्रीकल्चर, इन्वाइरन्मेन्ट, खारे पानी को मीठा करने और बीमारियों के इलाज जैसे समाज के हर काम के लिए फ़ायदेमंद है। ख़ुशक़िस्मती से, एटॉमिक एनर्जी के इदारे में यह काम हो रहा है और सिर्फ़ एटमी एनर्जी पर ही काम रोक नहीं दिया गया है यह बुनियादी और अहम काम भी हो रहे हैं और मैं ज़ोर दे रहा हूं और आग्रह कर रहा हूं कि इसे अहमियत दी जाए, आगे बढ़ाया जाए और एटमी मैदान में तरक़्क़ी का फ़ायदा आम लोगों तक पहुंचाया जाए।
मेरी दूसरी सिफ़ारिश यह है कि यही बातें यानि ये जो फ़ायदे हैं उससे लोगों को आगाह करें। आम लोगों को एटमी एनर्जी के बारे में क्या मालूम है? एटमी एनर्जी से उनकी समझ में बस एनर्जी ही आती है, वह यह समझते हैं कि आप मिसाल के तौर पर आप यह चाहते हैं कि बिजली पैदा करने या एनर्जी पैदा करने का एक बिजलीघर बनाएं। बात यह नहीं है, मुद्दा यह है कि एटमी एनर्जी आम लोगों की ज़िंदगी के हर मैदान में असर और फ़ायदा पहुंचा सकती है। यह बात लोगों को बताएं ताकि लोग इस इंडस्ट्री की क़द्र करें और यह जो कहा जाता है कि “हमारा परम सिद्ध अधिकार है” तो सच में उन्हें पता चले कि यह हमारा बुनियादी हक़ है। इस काम में यक़ीनी तौर पर आईआरआईबी का रोल है, इसी तरह विभिन्न इदारों का भी रोल है लेकिन काम तो ख़ुद आप कर रहे हैं, इसलिए आप भी अलग अलग तरीक़ों से लोगों को बताएं।
एक और सिफ़ारिश यह है कि एटमी प्रोडक्ट्स और सर्विसेज़ को कमर्शियल बनाया जाए हालांकि मुझे जो रिपोर्ट दी गयी है उनमें बताया गया है कि कुछ प्रोडक्ट्स को कमर्शियल बनाया गया है, इस काम को बढ़ाने की ज़रूरत है। हमारी इन कामयाबियों का दुनिया में बड़ा बाज़ार है और इसे हम मुल्क की इकॉनमी के लिए और आमदनी के लिए सच में हम इस्तेमाल कर सकते हैं। जिन मुल्कों से हमारे अच्छे संबंध हैं और इस मामले में वह हमारे मुक़ाबले में नहीं खड़े हैं उनके साथ इस मैदान में सहयोग किया जाए। वैसे इन रिपोर्टों में बताया गया है कि सहयोग हो रहा है या फिर कुछ मुल्कों ने हमसे मांग की है या कुछ मुल्कों से हमने मांग की है। इस पर भी काम होना चाहिए, सहयोग किया जाए और जहां तक हो सके दुनिया में मौजूद संसाधनों से फ़ायदा उठाया जाए, दुनिया में साइंस के मैदान में होने वाली तरक़्क़ी से हमें फ़ायदा उठाना चाहिए।
एक और बात 20 हज़ार मेगावॉट की बात है कि जिसके बारे में हमने कई बरस पहले कहा था कि इसे गंभीरता से लें।(9) मिसाल के तौर पर आप यह समझें कि इस वक़्त हम लगभग 1000 मेगावॉट एटमी बिजली इस्तेमाल कर रहे हैं और प्लानिंग इससे ज़्यादा की भी है लेकिन अस्ल मक़सद 20 हज़ार मेगावॉट है जो दर अस्ल वह 80-90 हज़ार मेगावॉट बिजली का हिस्सा होगा जिसकी अगले बरसों और दशकों में हमारे मुल्क को ज़रूरत होगी, तो इसमें से 20 हज़ार मेगावॉट बिजली, एटमी बिजली घर से होनी चाहिए क्योंकि उस पर ख़र्च भी कम आता है और पर्यावरण के लिए भी अच्छी होती है। इस पर गंभीरता के साथ और पूरी प्लानिंग से काम किया जाए और यहां पर मैंने नोट किया है और ऊपर भी(10) दोस्तों से कहा कि छोटे बिजलीघरों पर काम किया जाए क्योंकि 1000 मेगावॉट से ज़्यादा बिजली पैदा करने वाले बिजलीघरों पर काम हुआ है और तजुर्बा हासिल हो गया है जिसे अब छोटे बिजलीघरों को बनाने में इस्तेमाल किया जाना चाहिए, सुना है अब दुनिया में यही चलन है ज़्यादातर छोटे बिजलीघर बनाए जाते हैं, 200 मेगावॉट, 100 मेगावॉट बल्कि 100 मेगावॉट से भी कम के बिजलीघर बनाए जा रहे हैं। तीन चार साल पहले मैंने इस टेक्नॉलोजी के मालिक एक मुल्क से कहा कि आपके पास 30 मेगावॉट के बिजलीघर हैं, (टेक्नॉलोजी) हमें दे दें, उन्होंने कहा कि नहीं हमारे पास नहीं है, मैंने कहा कि क्यों नहीं, मेरे पास रिपोर्ट है कि आपके मुल्क में यह तकनीक है, उनके मिनिस्टर भी वहीं बैठे थे, उन्होंने अपने मिनिस्टर से पूछा तो उसने कुछ कहा, जिसका मतलब मैं समझ गया कि वह मान रहे हैं कि उनके पास वह तकनीक है, लेकिन देंगे नहीं, मतलब वह तकनीक देना उनके लिए कठिन है। हमें अलग अलग जगहों के लिए इस तरह के छोटे बिजलीघरों की ज़रूरत है, इस पर काम किया जाए।
ह्यूमन रिसोर्स का मुद्दा मेरी अगली सिफ़ारिश है। ह्यूमन रिसोर्स बहुत अहम मुद्दा है। जो स्टूडेंट्स इस मैदान में काम कर रहे हैं वह बहुत कम हैं, मैं गिन कर बताना नहीं चाहता, लेकिन जितने हैं उनसे कम से कम दस गुना ज़्यादा होना चाहिए। कम होने की वजह भी साफ़ है, कठिनाइयां हैं, ख़ास परेशानियां हैं, जिनके लिए कुछ रास्ता निकालना चाहिए। जो साइंटिस्ट मौजूद हैं उनसे ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाया जाना चाहिए, उनकी सुरक्षा पर गंभीरता के साथ ध्यान दिया जाना चाहिए। बहरहाल इस इंडस्ट्री में ह्यूमन रिसोर्सेज़ की इज़्ज़त और उनकी हिफ़ाज़त बहुत अहम है। यक़ीनी तौर पर एटमी एनर्जी की एजेन्सी की तरफ़ से एक्सपर्ट्स का सहयोग लेने और इस बेहद अहम ह्यूमन रिसोर्स को सही तौर पर इस्तेमाल करना भी अहम है, ह्यूमन रिसोर्स को कैसे संभाला जाए और कई पलहुओं से उनका कैसे जायज़ा लिया जाए यह भी अहम काम है, क्योंकि दुश्मन इस मैदान में कोशिश कर रहा है, जिसका नतीजा आप सबने देखा और हमारे दोस्तों ने दुश्मनों से चोट खायी है, कहीं कहीं वह घुसपैठ करते हैं, तबाह करते हैं, और उन्होंने यह सब किया है जो हम सबने देखा भी है।(11) भरपूर तरीक़े से ख़्याल रखना चाहिए। ह्यूमन रिसोर्स बहुत अहम हैं, उनकी हिफ़ाज़त करें, और उनकी सलाहियतों का अंदाज़ा करने में भी बहुत ज़्यादा बारीकी से काम लें।
एक और सिफ़रिश एटमी एनर्जी की एजेन्सी के सामने मौजूद चैलेंजों के बारे में है, मिसाल के तौर पर आईएईए के साथ संबंध के सिलिसले में मैं ज़ोर दे कर यह सिफ़ारिश कर रहा हूं कि आईएईए के साथ संबंध बनाए रखें यानि इन्टरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेन्सी के साथ कोआपरेशन और उसके साथ काम करने का सिलसिला जारी रखें, हां सेफगार्ड के नियमों के दायरे में, यानि ज़्यादा की मांग के आगे न झुकें, बल्कि सेफगार्ड के क़ानूनों के मुताबिक जो करना ज़रूरी है वह करें। शुरु से ही इन 20 बरसों में एटमी विभाग में जो ओहदेदार आए गये, उन सबसे मेरी यही सिफ़ारिश रही है, हमने कहा है कि आईएईए के साथ सहयोग किया जाए।
पार्लिमेंट के क़ानून ने जो रेखा खींची है, उससे आगे न बढ़ा जाए, यह मेरी अगली सिफ़ारिश है। संसद ने एक क़ानून बनाया है।(12) जो हमारे फ़ायदे में है, मुल्क के फ़ायदे में है और एटॉमिक इंडस्ट्री के फ़ायदे में है। कुछ लोगों को लगता है कि इस क़ानून से मुल्क के लिए समस्याएं पैदा होती हैं, वह ग़लत समझते हैं। यह क़ानून अच्छा है और फ़िर क़ानून है, क़ानून पर अमल करना होता है, इस पर कोई बात ही नहीं होनी चाहिए, क़ानून से आगे नहीं बढ़ना चाहिए। चाहे वह दूसरों को दी जाने की अनुमति का मामला हो चाहे दूसरों को दी जाने वाली मालूमात की बात हो, हर मामले में इस क़ानून पर अमल किया जाना चाहिए।
कभी कभी ग़लत दावे किये जाते हैं और धौंस व धमकी की बुनियाद पर मांगें रखी जाती हैं, पीछे न हटें। एटमी एनर्जी की एजेन्सी ज़ोर ज़बरदस्ती की बुनियाद पर की जाने वाली मांगों के सामने सिर न झुकाए, अपने रुख़ पर जमे रहें। जो कर्तव्य है उसका पालन करें, लेकिन ज़ोर ज़बरदस्ती की बुनियाद पर वे लोग जो आपसे चाह रहे हैं वह न मानें। कभी कभी ऐसे दावे करते हैं जो सच्चाई से दूर होते हैं, इस तरह के दावों को क़ुबूल न करें: “उस मौक़े पर आप लोगों ने यह काम किया है” नहीं, ग़लत दावे न मानें। पिछले मार्च के महीने में कुछ बातें तय हुई थीं (13) और मैंने जो रिपोर्ट देखी है जो दर अस्ल नयी रिपोर्ट है, उसके मुताबिक़ दूसरे पक्ष ने अपने वादों पर अमल नहीं किया, हमने अमल किया, इसमें दूसरा पक्ष आईएईए है, सुना है कि उसने अपने वादों पर अमल नहीं किया, इन सब चीज़ों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
एक और अहम सिफ़ारिश यह है कि मुल्क में एटॉमिक इंडस्ट्री के इंफ़्रास्ट्रक्चर को हाथ न लगाया जाए। इतने बरसों के दौरान मुल्क के ओहदेदारों और इस मैदान के एक्सपर्ट्स ने बहुत काम किये हैं। अहम इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाया है, आप किसी मामले में समझौता करना चाहें, कोई प्रॉब्लम नहीं, समझौता करें, लेकिन इंफ़्रास्ट्रक्चर को नुक़सान नहीं पहुंचना चाहिए, यह ख़राब न हों, यह दूसरों की मेहनत का फल है। (14)
जी तो तकबीर भी लगा ली आप लोगों ने, अल्लाह आप सबको कामयाबी अता करे। हम तो इस प्रदर्शनी का 45 मिनट जायज़ा लेने की तैयारी के साथ आए थे, मुझे इस तरह से बताया गया था, लेकिन यह वक़्त दोगुना हो गया, यानि हमने डेढ़ घंटा यहां गुज़ारा और अब आपकी ख़िदमत में हैं, अल्लाह आप सबको कामयाब करे और आप सबको तौफ़ीक़ दे।
पालने वाले! मुहम्मद व आले मुहम्मद के वास्ते, हमारे नौजवानों को, हमारे मुल्क के अच्छे ओहदेदारों को और इस इंडस्ट्री में काम करने वालों को अपनी अमान में रख और उन पर लुत्फ़ व मेहरबानी कर, और उन सबको दुनिया व आख़ेरत में इज़्ज़त दे। पालने वाले! हम जो भी कहें और जो भी करें उसके पीछे हमारी नीयतों को पाक बना दे और हमसे यह अमल क़ुबूल कर।
वस्सलामो अलैकुम व रहतुमल्लाहे व बरकातुहू।
(1) इस मुलाक़ात की शुरुआत में एटमी एनर्जी एजेन्सी के हेड जनाब मुहम्मद इस्लामी ने एक रिपोर्ट पेश की।
(2) इस मुलाक़ात से पहले सुप्रीम लीडर ने इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में लगने वाले एटमी प्रदर्शनी का जायज़ा लिया।
(3) पिछले मार्च में सीआईए के प्रमुख ने सीबीएस टीवी चैनल के साथ एक इंटरव्यू में कहा कि “जहां तक हमें मालूम है, उसकी बुनियाद पर हम यह नहीं मानते कि ईरान के नेता एटमी हथियारों के उस प्रोग्राम को फिर से शुर कर चुके हैं जिसे उन्होंने सन 2003 में रोक दिया था।” इसी तरह पिछले महीने अमरीकी विदेशमंत्रालय की तरफ़ से जारी होने वाली एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ईरान ने एटमी हथियार बनाने की तरफ़ कोई क़दम नहीं उठाया है।
(4) जवाहर लाल नेहरू
(5) शहीद दारयूश रज़ाई नेजाद को 23 जूलाई 2011 में शहीद कर दिया गया
(6) एटमी साइंटिस्ट शहीद मुहम्मद शहरयारी को 29 नवंबर सन 2010 में शहीद कर दिया गया
(7) एटमी साइंटिस्ट और डिफेंस व रिसर्च एजेन्सी के हेड शहीद मोहसिन फ़ख्रीज़ादे को 27 नवंबर सन 2020 में शहीद कर दिया गया।
(8) एटमी सांइटिस्ट शहीद मसऊद अली मुहम्मदी को 12 जनवरी सन 2010 में शहीद कर दिया गया।
(9) इसी तरह का एक बयान जो सुप्रीम लीडर ने यज़्द की युनिवर्सिटियों के स्टूडेंट्स से मुलाक़ात में दिया था। (3/1/2008)
(10) एटमी मैदान में कामयाबियों की नुमाइश का जायज़ा लेते वक़्त
(11) मार्च 2021 में नतन्ज़ एटमी प्रतिष्ठान में आतंकवादी हमला
(12) 2 दिसंबर 2020 को पांबदियों को ख़त्म करने और ईरानी क़ौम के हितों की रक्षा के लिए संसद में एक क़ानून पास हुआ था जिसे लागू कर दिया गया है।
(13) ईरान की एटमी एनर्जी एजेन्सी और आईएईए ने 4 मार्च सन 2023 में एक समझौते पर दस्तख़त किये, जिसमें ईरान ने अपनी मर्ज़ी से अधिक निगरानी की इजाज़त दी थी।
(14) लोगों ने अल्लाहो अकबर के नारे लगाए।