मुख़्तलिफ़ मामलों में, चाहे बातचीत में ‎शामिल दूसरी सरकारें हों या ख़ुद आईएईए हो, बहुत बार वादे किए गए लेकिन उन वादों को पूरा नहीं ‎किया गया। इसलिए इस बीस साल से जारी विवाद का एक नतीजा यह भी है ‎कि हमें पता चल गया कि उनके वादों पर और उनकी बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

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