स्पीच का अनुवादः

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ें कायनात के परवरदिगार के लिए हैं और दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार हज़रत मुहम्मद और उनकी पाकीज़ा औलाद ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत पर।

हमें आप दोस्तों और शायरों से होने वाली इस मुलाक़ात की बहुत याद आती थी। ख़ुदा का शुक्र है कि उसने करम किया और हम एक बार फिर आप सब से यहां मुलाक़ात कर रहे हैं और यह मौक़ा मिला है कि आप सब के ख़यालात और राय से जो बेहद क़ीमती हैं, सही अर्थों में फ़ायदा उठाया जाए और आनंद लिया जाए। कहने का मतलब यह है कि एक अच्छे शेर से जो आनंद मिलता है वह बेहतरीन आनंद और लुत्फ़ होता है।

अच्छी बात यह है कि हमारे मुल्क में शेर व शायरी का चलन बढ़ा है, शायरों की तादाद में भी बढ़ोत्तरी हुई है और सुनने वालों की संख्या भी बढ़ी है, यह एक मौक़ा है और इस मौक़े से फ़ायदा उठाया जाना चाहिए।

शेर मीडिया है, एक असरदार मीडिया है। एक दौर था जब दुनिया में यानी इस्लामी दुनिया में जहां तक हमारी मालूमात है और जिस इस्लामी दुनिया को हम जानते हैं वहां एकमात्र असरदार मीडिया, शेर था। शायर, शेर कहता था, यक़ीनी तौर पर जो बहुत अच्छा शेर होता था वह बड़ी तेज़ी के साथ फैल जाता था और लोग उस के शेरों को सुनते थे। देबल ने वह अपना मशहूर क़सीदा, ख़ुरासान में पढ़ा जिसके बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उन्हें वह कुर्ता दिया, इनाम के तौर पर।  वह फिर वहां से निकले और क़ुम पहुंचे तो क़ुम के लोगों ने उनसे कहा कि हमने सुना है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने आप को एक कुर्ता दिया है, वह हमें दे दीजिए। उन्होंने कहा नहीं, लोगों ने आग्रह किया और कहा कि एक टुकड़ा ही हमें दे दीजिए! लेकिन देबल एक टुकड़ा देने पर भी तैयार न हुए। एक क़ाफ़िले का साथ पकड़ा और क़ुम से निकल गये। रास्ते में एक लुटेरा मिला। वही लुटेरे जो क़ाफ़िलों को लूटा करते थे उन्ही में से एक आया और उन्हें रोक कर क़ाफ़िले वालों का सारा सामान लूट लिया। डाकुओं का सरदार ऊपर एक पत्थर पर बैठा था। गिरोह के लोग, एक एक सामान खोल रहे थे और आपस में बांट रहे थे। यही सब कर रहे थे तभी डाकुओं के सरदार ने अपने गिरोह के लोगों को देखते हुए यह शेर पढ़ा कि ...

माल दूसरों के हाथों बटते देख रहा हूं-और हाथों में अपने माल की बस हसरतें हैं। (2)

 

इस शेर का मतलब यह है कि मैं अपनी दौलत और अपने सामान को हाथों से जाते देख रहा हूं। यह सरदार कह रहा था, क़ाफ़िले वालों की तरफ़ से वही लोग जिन के हाथ अपने ही सामान से ख़ाली हो गये थे। (3) यानी उनके सामान दूसरों के हाथों में थे। यह दरअस्ल देबल के उसी क़सीदे का एक शेर है। देबल ने कहा कि जाओ और जाकर उससे पूछो कि यह जो तुमने अभी शेर पढ़ा है यह किसका है? एक आदमी सरदार के पास गया और उससे पूछा कि यह जो तूने अभी शेर पढ़ा है यह किस का है? डाकुओं के सरदार ने कहा कि यह शेर देबल का है तो उसने कहा कि देबल यहीं हैं। सरदार ने कहा कि कहां हैं? देबल को उस के पास ले जाया गया। देबल उसके पास गये और कहा कि हां यह मेरा शेर है, मैं देबल हूं। डाकुओं के सरदार ने हुक्म दिया कि जो कुछ लूटा गया है वह सब लौटा दिया जाए।

मैं यह कहना चाहता हूं कि मीडिया का मतलब यह है, मिसाल के तौर पर यह शेर, रजब के महीने में ख़ुरासान में कहा गया था, लेकिन शाबान में एक डाकू उसे याद भी कर लेता है और उसका एक हिस्सा पढ़ता है और उसकी मिसाल देता है। (4) शेर इस तरह से फैलते हैं, इस तरह से सब तक पहुंचते हैं, यह मीडिया था।

आज मीडिया अलग तरह के होते हैं लेकिन शेरों की अपनी अहमियत आज भी है, मीडिया की कोई भी क़िस्म, ख़ास अर्थों में शेर जैसा असर नहीं रखती। यक़ीनी तौर पर सिनेमा जैसे कुछ मीडिया, हो सकता है कि शेरों से ज़्यादा असर रखते हों, ख़ास तौर पर, विजुअल मीडिया, लेकिन उसका असर भी ख़त्म हो जाता है, लोग भूल जाते हैं। आप एक बार कोई फिल्म देखते हैं, दोबारा भी देखते हैं, और फिर सब ख़त्म हो जाता है लेकिन शेर बाक़ी रहता है और बाक़ी रह जाता है। एक हज़ार साल तक शेर बाक़ी रहता है। यह शेरों की ख़ूबी है। इस बुनियाद पर शेर, बाक़ी रहने वाला मीडिया है।

फ़ारसी शेरों के बारे में एक बात यह है कि फ़ारसी शेरों की एक ख़ूबी, रूहानी और आध्यात्मिक, पूंजी पैदा करना है। दूसरी ज़बानों के शेरों में ऐसा नहीं है कि इस तरह की बातें नहीं होतीं मगर जहां तक मेरी मालूमात है, फ़ारसी के शेरों की तरह इस तरह की रूहानी बातें इतनी ज़्यादा नहीं होतीं। यानी अगर हम फ़ारसी ज़बान के मशहूर शायरों पर नज़र डालें तो हमें या तो वो फ़लसफ़ियों की लिस्ट में नज़र आएंगे जैसे निज़ामी या हकीम फ़िरदौसी, फ़िरदौसी एक दार्शनिक हैं और शाहनामा हक़ीक़त में दर्शन की एक किताब है, या फिर वह इरफ़ान, अध्यात्मिकता और स्प्रिचुअलिटी के उस्ताद हैं या फिर क़ुरआन के हाफ़िज़ हैं या फिर सादी की तरह उनकी बातें, सच्चाई, इरफ़ान  और हिकमत का खज़ाना हैं। इस तरह आप ऊपर से नीचे तक नज़र दौड़ाते जाएं सादी तक देखें, हाफ़िज़ को देखें, जामी, साएब, बेदिल को देखें। यह सबके सब दार्शनिक हैं, उनके तमाम शेर, हिकमत हैं, यानी हमारे शेर, हमेशा से हिकमत और स्प्रिचुअलिटी से भरे रहे हैं। इन शेरों की मदद से हमारी स्प्रिचुअल पूंजी की हिफ़ाज़त की गयी और उसे बढ़ाया गया। यानी अगर आप मिसाल के तौर पर स्प्रिचुअलिटी के किसी ख़ास दर्जे पर हों तो जब आप मिसाल के तौर पर मौलाना की मसनवी पढ़ते हैं तो आप की रूहानियत में इज़ाफ़ा होता है यानी इस मसनवी से स्प्रिचुअलिटी पैदा होती है, यह पूंजी बढ़ती है, सिर्फ़ पूंजी की हिफ़ाज़त ही नहीं होती, फार्सी शेरों की यह ख़ूबी है।

अहम बात यह है कि पूंजी बढ़ाने और उसकी हिफ़ाज़त करने का यह काम, कठिन हालात में भी जारी रहा है, मिसाल के तौर पर मंगोलों के हमले के दौरान आप देखिए! उस दौर में हमारे पास अत्तार हैं, मौलवी हैं, सादी हैं, हाफ़िज़ हैं, यह सब मंगोलों और तैमूरी दौर के हैं। यानी उस दौर के हैं जब ईरान पर विदेशी, भयानक हमले और यहां लूट मार कर रहे थे, मुल्क के हर मैदान पर उसका असर पड़ रहा था लेकिन, आध्यात्म, शेरों और स्प्रिचुअलिटी का सिलसिला नहीं रुका। यह फ़ारसी शेर व लिट्रेचर की ख़ूबी है और हमें अपने फ़ारसी शेरों की इन ख़ूबियों की जानकारी होनी चाहिए।

हमारे शायर, मशहूर शायर जिनमें से कुछ का हमने नाम लिया है जैसे नासिर ख़ुस्रो, जैसे निज़ामी गंजवी जैसे ख़ाक़ानी जैसे ख़ुद मौलवी या सादी, यह सारे शायर दर अस्ल क़ुरआने मजीद की उस आयत के जीते जागते नमूने हैं जिसमें कहा गया हैः

सिवाए उन लोगों के जो ईमान लाए और नेक अमल किए और बहुत ज़्यादा अल्लाह का ज़िक्र किया।

यह सूरए शोअरा के आख़िर की आयतें हैं और इसमें कहा गया हैः  

और जो शायर हैं उनका अनुसरण गुमराह लोग करते हैं। क्या तुम नहीं देखते कि वो हर घाटी में हैरान  सरगर्दां फिरा करते हैं। और वो इस तरह की बातें कहते हैं जो करते नहीं हैं। सिवाए उन लोगों के जो ईमान लाए और नेक अमल किए और बहुत ज़्यादा अल्लाह का ज़िक्र किया और इसके बाद कि उन पर ज़ुल्म हुआ उन्होंने बदला लिया। (5)

यानी वो इसी आयत का जीता जागता नमूना हैं, सच में ऐसा ही है, हमारे बड़े शायर इसी आयत का नमूना हैं, यह हमारा अतीत है।

आज कल मेरी नज़र में मंगोलों के ज़माने में जो तबाही हुई थी, वह दोबारा हो रही है। बेशक इन नये मंगोलों की ओर की मचाई जा रही तबाही, जो सूट बूट पहने और टाई परफ़्यूम लगा कर चलते हैं, अतीत में मंगोलों की तबाही से अलग है लेकिन तबाही ही है। वो तबाह कर रहे हैं, किस तरह तबाह कर रहे हैं? यह तो ख़ुद हमने महसूस किया है, तारीख़ में इसे पढ़ने की ज़रूरत नहीं है। यक़ीनी तौर पर अगर कोई साम्राज्य की तीन चार सौ साल की तारीख़ पढ़ेगा तो उसे अच्छी तरह से यह पता चल जाएगा कि इन लोगों ने दुनिया के साथ क्या किया है। साम्राज्यवादियों ने एशिया के साथ, अफ़्रीक़ा के साथ, लैटिन अमरीका के साथ, अमरीका महाद्वीप के साथ क्या किया है! यह तो एक अलग ही सब्जेक्ट है, इन ताक़तों ने तो हमारे दौर में भी, सद्दाम जैसे पागल कुत्ते को हथियारों से लैस किया, जर्मनी की केमिकल फ़ैक्टरियां सद्दाम के हवाले कर दी गयीं ताकि वह हलब्चा, सरदश्त और मोर्चे पर हज़ारों लोगों का क़त्ल करके, भयानक अपराध करे। यह सब कुछ तो इन लोगों ने ईरान में किया है, तबाही फैलाना यही है। यह तबाही कई तरह से फैलायी जा रही है, एक तरह की नही है, उस तबाही की एक क़िस्म यह भी है।

पाबंदियां भी तबाही फैलाने की साज़िश का ही हिस्सा हैं जैसे दवाओं पर बैन, अगर वेस्टर्न मुल्कों के बस में हो तो वो अपने पैरों पर खड़े होने और आज़ादी की ख़्वाहिश रखने वाले ईरान जैसे मुल्क को खाने पीने की चीज़ों से भी वंचित कर दें जैसा कि इन लोगों ने ज़रूरी दवाओं पर भी पाबंदी लगा दी। जब हमें वैक्सीन की ज़रूरत थी तो उन्होंने रक़म ले ली लेकिन वैक्सीन नहीं दी, सन 2021 में उन्होंने वैक्सीन की क़ीमत ले ली लेकिन तरह तरह के बहाने बना कर वैक्सीन नहीं दी तो आप यक़ीन रखें अगर उन के बस में होता कि ईरान के अंदर खाना, लोगों को रोटी न मिल सके और उसका इंतेज़ाम मुल्क के अंदर न हो सके तो वे यह काम भी कर देते यानी यह लोग इस तरह के हैं। वह सदी की भयानक भुखमरी तो अपनी जगह पर है ही। (6) यह भी एक तरह का हमला है। इन सब के अलावा, सैकडों, हज़ारों मीडिया हाउस, रात दिन झूठ, अफ़वाह और ग़लत बातें फैलाते रहते हैं। इस वक़्त फ़ौजी हमले से लेकर आर्थिक हमले तक, सॉफ़्ट वॉर से लेकर जंग तक, ईरान के ख़िलाफ़ सब कुछ आज़माया जा रहा है। तो इन हालात में शायर का क्या रोल है? मेरा कहना यह है। हमारे शायरों ने एक दौर में बहुत अच्छे और बड़े कारनामे किये हैं, यानी उन्हें जो करना चाहिए था वह किया है।

आज दुश्मन का मक़सद यह है कि वह हम से हमारी रूहानी और सोचने की ताक़त छीन ले, हम अपने पैरों पर खड़े होना चाहते हैं लेकिन दुश्मन इस तरह से हमारे इरादे को कमज़ोर करना चाहता है, हम वेस्ट की तानाशाही के सामने डट जाना चाहते हैं, वह हमारे हौसले पस्त करना चाहता है, हमारे दुश्मन हमें शक में डालना चाहते हैं, हमारे अंदर इस्लामी शिक्षाओं और इस्लामी भावनाओं को कमज़ोर करना चाहते हैं, हमारे इस्लामी कामों को कमज़ोर करना चाहते हैं, राष्ट्रीय एकता, क़ौमी इत्तेहाद को कमज़ोर करना चाहते हैं, महिलाओं में दीनदारी को, उन की शर्म व हया को कमज़ोर करना चाहते हैं, यह सब कुछ, एक क़ौम और एक मुल्क की रूहानी ज़रूरतें हैं। यह लोग इन्ही चीज़ों को निशाना बना रहे हैं। औरतों के बारे में अभी किसी ने शेर पढ़े हैं, कितने अच्छे शेर थे, सच में इस तरह के काम ज़्यादा से ज़्यादा किये जाने की ज़रूरत है।

मैं यह कहना चाहता हूं कि पश्चिम के लोगों को ईरानी महिलाओं से हमदर्दी नहीं है कि जिसकी वजह से वह यह कह रहे हैं कि औरतों के राइट्स पर ध्यान दिया जाए। बल्कि उनके दिल में ईरानी महिलाओं की दुश्मनी है। यक़ीनी तौर पर अगर महिलाएं न होतीं तो ईरान का इन्क़ेलाब कामयाब नहीं होता, मैं यह बात पूरे यक़ीन से कह रहा हूं। मैं तो ज़ाहिर है, इन्क़ेलाब की सारी बातों की जानकारी रखता था। मतलब यह कि अगर उन बड़े बड़े जुलूसों में औरतें शामिल न होतीं, तो इन्क़ेलाब कामयाब नहीं होता। अगर महिलाएं, इन्क़ेलाब के सिलसिले में अपने शौहरों और अपने बेटों के ख़िलाफ़ होतीं तो फिर हालात का रुख़ कुछ और होता, जंग में भी यही हालत थी। सच में जब इन माओं और बीवियों की ज़िंदगी के बारे में हम पढ़ते हैं तो दिल अजीब सा होने लगता है, यह औरते ही थीं जिन्होंने इस तरह की बहादुरी, इस तरह का बलिदान का जज़्बा हमारे नौजवानों और मर्दों के दिलों में जगा दिया। उन्हें ईरानी औरतों से दुश्मनी है! लेकिन वे ख़ुद को महिलाओं के अधिकारों और उनकी आज़ादी का हामी और समर्थक बताते हैं। यह सब दुश्मनों के हमलों का हिस्सा है।

ह्यूमन राइट्स, वाक़ई हैरत होती है, ह्यूमन राइट्स की बात, वेस्ट वालों के मुंह से अच्छी नहीं लगती, जैसा कि अभी एक साहब के क़सीदे का ‘रदीफ़’ (तुक) बेमन नेमी आयद” (मुझे शोभा नहीं देती।) (7) था। सच में पश्चिम वालों के मुंह से महिलाओं के अधिकारों की बात अच्छी नहीं लगती। इस वक़्त भी, पश्चिमी देशों में महिलाओं को बेहद कठिन समस्याओं का सामना है। मतलब यह कि दुनिया के दूसरे मुल्कों से ज़्यादा पश्चिमी देशों में औरतों को परेशानियो का सामना है। दर अस्ल यह लोग ह्यूमन राइट्स के हिमायती ही नहीं हैं इस लिए इन लोगों के मुंह से ह्यूमन राइट्स की बात अच्छी नहीं लगती। यह लोग तो इन्सानों के दुश्मन हैं! उनके ह्यूमन राइट्स को हमने दाइश के रूप में देखा, वही दाइश जिसके आतंकवादी, इन्सानों को ज़िंदा ही पानी में डुबो कर मार देते थे या जला देते थे, वह भी सब के सामने। पश्चिम के लोगों के ह्यूमन राइट्स को हम ने एमकेओ संगठन के आतंकवादियों की मदद के रूप में देखा है, उनकी तरफ़ से सद्दाम के समर्थन के रूप में भी देखा है और ग़ज़्ज़ा में देख रहे हैं, फ़िलिस्तीन में हम पश्चिमी देशों के ह्यूमन राइट्स को देख रहे हैं, टारगेट किलिंग में हम उनके ह्यूमन राइट्स को देखते हैं और नौजवानों के क़त्ल में भी, यहां तेहरान की सड़कों पर, हमारे बेहद पाकीज़ा नौजवानों के क़त्ल के दौरान हमने पश्चिम वालों के ह्यूमन राइट्स को देखा जैसे वह एक नौजवान जिसका यहां नाम लिया गया, आरमान अलीवर्दी और रुहुल्लाह अजमियान, यह नौजवान हक़ीक़त में बेहद पाकीज़ा और पवित्र नौजवान थे, इन लोगों को टार्चर करके क़त्ल किया जाता है और वो लोग इसके ख़िलाफ़ कुछ नहीं कहते। यानी उनके लिए इसका कोई महत्व नहीं है बल्कि वह इस काम पर उकसाते भी हैं, सिखाते हैं, उनके रेडियो, उनके एजेन्ट, इन अपराधों की ट्रेनिंग देते हैं, यह सब वेस्टर्न मुल्कों के ह्यूमन राइट्स के नमूने हैं।

मैं कहता हूं कि आज के दौर में हर एक को, दुश्मन की पहचान हासिल करना चाहिए। सब को इन जगहों का पता होना चाहिए जिनको दुश्मन निशाना बनाता है, सब को दुश्मन के तरीक़ों की जानकारी होनी चाहिए, सब को दुश्मन की पोज़ीशन का पता होना चाहिए, फ़ौजी जंग की तरह, फ़ौजी जंग इसी तरह की होती है। अगर आप को यह न पता हो कि दुश्मन किस तरफ़ से हमला करना चाहता है तो मार खा जाएंगे, अगर आप को यह न पता हो कि वो किस इलाक़े पर क़ब्ज़ा करना चाहता है और वो आप को धोखा देने में कामयाब हो जाए तो फिर आप मार खा जाएंगे, पता होना चाहिए। सॉफ़्ट वॉर में भी यही हालत है, आप को पता होना चाहिए कि दुश्मन करना क्या चाहता है, कहां हमला कर रहा है, उसका मक़सद क्या है और उसके साथ ही आप को उसके मक़सद का भी पता होना चाहिए, इन सब चीज़ों की पहचान हासिल करें और उसकी रोकथाम करें लेकिन सब से ज़्यादा अहम, कलाकार आर्टिस्ट और कल्चर के मैदान में काम करने वाले हैं। इन सब को यह पता हा चाहिए कि आज हम दुश्मनों की तरफ़ से हमले और तबाह करने वाली यलग़ार के निशाने पर हैं, ख़ुद उन्हें इस पर ध्यान देना चाहिए, हालात को सही तौर पर समझना चाहिए और दूसरों को भी समझाना और दिखाना चाहिए, सब को आगाह करना चाहिए, डिफ़ेन्सिव पोज़ीशन नहीं अपनानी चाहिए। आज ख़ुदा के शुक्र से हमारे मुल्क में ईमान वाले, सच्चे और दीन व इन्क़ेलाब में यक़ीन रखने वाले शायरों की कमी नहीं है। जिसकी कुछ मिसालें यहां मौजूद हैं, आप सब की शक्ल में। 

ख़ुशक़िस्मती से आर्ट व हुनर के विभाग सहित बहुत से विभागों की तरफ़ से जो एक अच्छा काम हुआ है वह इस शेर व शायरी को मुल्क भर में फैलाना है, यानी आज पूरे मुल्क से यहां तक कि गांवों से, छोटे छोटे शहरों से शायर आगे बढ़ कर ख़ुद को पेश कर सकते हैं, अलग अलग सेन्टरों में अपने शेर सुना सकते हैं, आज यह सब मुमकिन हो गया है। ज़ाहिर सी बात है, शायर, इमोशनल होते हैं, शायर जज़्बाती होता है, नर्म दिल होता है, लेकिन उसे जज़्बात के बहाव में बहने से बचना चाहिए, बहुत से मामलों में इमोशनल होने से बचना चाहिए। बल्कि ग़ौर करना चाहिए, सोचना समझना चाहिए और हालात का सही तौर पर जायज़ा लेकर उन्हें समझना चाहिए और जो कुछ हो रहा हो उसके सिलसिले में अपनी ज़िम्मेदारी को समझना और फिर वह जिस मैदान का आर्टिस्ट हो उस की मदद से, अपनी उस ज़िम्मेदारी को पूरा करना चाहिए। अगर ऐसा न हुआ तो फिर आर्ट व हुनर में वह जितना भी आगे बढ़ जाए, उसकी अहमियत नहीं रहेगी। शायर ने कहा कि ...

می نابی ولی از خلوت خم - بہ ساغر چون نمی آيی چہ حاصل ؟(8)

मतलब यह कि शराब को जाम में आना होगा ताकि दूसरों की ख़ुशी की वजह बने। अभी यह शेर यहां किसी ने पढ़ा है।

अल्लाह आप सब को तौफ़ीक़ दे और हम सब को यह मौक़ा दे कि हम आर्ट व हुनर व शेर सहित मुल्क और अपने सिस्टम के संसाधनों और नेमतों से फ़ायदा उठाएं और कामयाब रहें। मैं एक बार फिर आप सब का और जनाब अमीरी इस्फ़न्दक़े (9) और इसी तरह जनाब क़ज़वे (10) का शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने महफ़िल की नेज़ामत की, शायरों को बुलाकर उनके शेर सुनाए लेकिन ख़ुद अपने शेर नहीं सुनाए इन्शाअल्लाह अगले बरसों में हम उनके शेर भी सुनेंगे।

वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू

1) मुलाक़ात की शुरुआत में कुछ शायरों ने अपने शेर सुनाए

2) कमालुद्दीन व तमामुन्नेमा, जिल्द 2 पेज 73

3) माल व दौलत

4) हवाला देना

5) सूरए शोअरा आयत 224 से 226 तक और आयत नंबर 227 का एक हिस्सा “और जो शायर हैं उनका अनुसरण गुमराह लोग करते हैं। क्या तुम नहीं देखते कि वो हर घाटी में हैरान  सरगर्दां फिरा करते हैं। और वो इस तरह की बातें कहते हैं जो करते नहीं हैं। सिवाए उन लोगों के जो ईमान लाए और नेक अमल किए और बहुत ज़्यादा अल्लाह का ज़िक्र किया और इसके बाद कि उन पर ज़ुल्म हुआ उन्होंने बदला लिया।”   

6) सन 1917 में ईरान में आने वाली भयानक भुखमरी जिसकी वजह यह थी कि ब्रिटेन ने पहली वर्ल्ड वॉर के लिए ईरान की खाने पीने की चीज़ें इस्तेमाल कर ली थीं। इस भुखमरी में बेशुमार ईरानी मारे गये थे।

7) जनाब हसन ख़ुसरवी वेक़ार की गज़ल की तरफ़ इशारा है जिसकी शुरआत इस तरह हैः

मैं शराब हूं मैं ख़ुशी हूं फ़रियाद करना मुझे शोभा नहीं देता

रूह की नदी हूं जिस्म की मृगत्रिष्णा मुझे शोभा नहीं देती।

8) साएब तबरेज़ी, दीवान, उस ग़ज़ल का शेर जिसकी शुरुआत इस तरह होती हैः

तनहाई से बाहर नहीं निकलते तो फिर क्या फ़ायदा-नम आंखों में नहीं आते तो फिर क्या फ़ायदा

9) जनाब मुर्तुज़ा अमीरी इस्फ़ंदुक़े

10) जनाब अली रज़ा क़ज़वे