दुनिया को माद्दियत (भौतिकवाद) में डूबने से कोई फ़ायदा नहीं पहुंचा, जिन्सी आज़ादी को बढ़ावा देने से भी कोई फ़ायदा नहीं हासिल हुआ, इंसानियत को उन तहरीकों से जो यूरोप में आयीं -रूहानियत से दूरी, अल्लाह की ओर से तय नियमों के दायरे में न रहना- उनसे भी कोई फ़ायदा नहीं पहुंचा। न इंसाफ़ मिला, न उमूमी सतह पर आराम व सुकून मिला, न सेक्युरिटी हासिल हुयी, न फ़ैमिली महफ़ूज़ रह सकी, न ही आने वाली नस्लों की सही तरीक़े से तरबियत हो सकी, इन सभी मैदानों में नुक़सान हुआ। इस्लामी इंक़ेलाब का पैग़ाम, बदक़िस्मती व बुराई लाने वाली इन हरकतों के चंगुल से आज़ादी है। रूहानियत पर ध्यान, इलाही अख़लाक़ पर ध्यान, साथ ही इंसानी ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश करना, वही चीज़ जो इस्लाम में है, मध्यमार्गी रविश है...इस्लाम का रास्ता बीच का रास्ता है, इंसाफ़ का रास्ता है। इंसाफ़ में बहुत मानी छिपे हुए हैं। सभी मैदानों में इंसाफ़- यानी हर चीज़ को उसके मक़ाम पर रखना- मद्देनज़र होना चाहिए, बीच का रास्ता, (मुसलमानो! जिस तरह हमने तुमको सही क़िबला बता दिया) उसी तरह हमने तुमको एक दरमियानी (मियाना रौ) उम्मत बनाया है ताकि तुम आम लोगों पर गवाह हो (सूरए बक़रह, आयत-143)

इमाम ख़ामेनेई

8/2/2012