सवालः इस बात के मद्देनज़र कि बाप की क़ज़ा नमाज़ें बड़े बेटे पर वाजिब हैं, अगर बेटा खड़े हो कर नमाज़ न पढ़ सके तो क्या वह बैठ कर नमाज़ पढ़ सकता है या फिर उसे किसी शख़्स को उजरत देकर बाप की क़ज़ा नमाज़ें पढ़वानी होंगी? अगर उसके लिए इस काम के पैसे न हों तो क्या करे?

जवाबः अगर वह ख़ुद अपनी नमाज़ें बैठ कर पढ़ता है और भविष्य में यह हालत बदलने की उम्मीद भी नहीं है तो वह अपने बाप की क़ज़ा नमाज़ें बैठ कर पढ़ सकता है और उजरत देकर नमाज़ पढ़वाना ज़रूरी नहीं है।