बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं जो पूरी सृष्टि का चलाने वाला है और दुरूद हो हमारे सरदार मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम और उनकी पाक व चुनिंदा नस्ल पर और ख़ास तौर पर इंसानियत को मुक्ति दिलाने वाले हज़रत इमाम महदी पर।

क़बायली समाज, मुल्क और क्रांति का भंडार  

प्रिय भाइयो और बहनो! पूरे मुल्क के प्यारे व सम्मानीय क़बायली समाज के प्रतिनिधियो! आपका स्वागत है। आप सभी की सेवा में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस की मुबारकबाद पेश करता हूं। इस कॉन्फ़्रेंस और क़द्रदानी के इस प्रोग्राम के आयोजन पर दिल से आप लोगों का शुक्रगुज़ार हूं, आपका यह काम बहुत ही अच्छा काम है, सही काम है। आप श्रद्धा पेश करने का यह प्रोग्राम आयोजित कर रहे हैं और हमारी यह बैठक मुल्क के सभी लोगों का ध्यान क़बायली समाज की ओर मोड़ने का अच्छा मौक़ा है। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया था कि क़बायली समाज, इंक़ेलाब की पूंजी है, मुल्क की पूंजी है। (2) लोगों को नहीं भूलना चाहिए कि हमारे यहां क़बायली समाज के तबक़े हैं जो मुल्क की पूंजी हैं, ये बात लोगों को हमेशा याद रहनी चाहिए। हमारी आज की इस मुलाक़ात और बैठक का एक फ़ायदा, जिसे आप इस मौक़े पर देखेंगे (3), यह है कि यह ईरानी क़ौम को क़बायली समाज और उनकी अहमियत से परिचित कराएगी।

सांस्कृतिक काम के नतीजे और फ़ीडबैक को परखना कठिन काम है

मैं क़बायली समाज के बारे में संक्षेप में कुछ बातें पेश करुंगा लेकिन इससे पहले इन भाइयों ने जो बातें कही हैं, उनकी तरफ़ इशारा करना चाहूंगा, यह बहुत अच्छी बातें हैं, इन दो भाइयों ने इस कॉन्फ़्रेंस या इन बीस बरसों में श्रृद्धा पेश करने की सभाओं के बारे में जिन कामों का ज़िक्र किया वह सच में मूल्यवान हैं। मैंने किए गए कामों से संबंधित जो तस्वीरें इस गलियारे में लगाई गयी हैं, उन सभी को ध्यान से देखा, अच्छे काम अंजाम पाए हैं। प्राथमिकता की बुनियाद पर जिन तीन उपलब्धियों का उन्होंने ज़िक्र किया, वह तीनों ही अहम काम हैं, लेकिन यहां एक अहम बिन्दु यह है कि जब आप किसी फ़ैमिली को दहेज का सामान देते हैं तो यह सामान उस तक पहुंचता है और वह उसे इस्तेमाल करती है, आपको भी पता चलता है कि उस फ़ैमिली ने इस्तेमाल किया; यह नक़द मामला है, यहाँ तक कि जो चीज़ इतनी भी नक़द नहीं है, मिसाल के तौर पर फ़र्ज़ कीजिए, पौधा लगाना, आप पौधा लगाते हैं। मैंने उसकी तस्वीरें देखीं। दो साल के बाद, पाँच साल के बाद, दस साल के बाद ये पौधे मज़बूत हो जाते हैं और एक जंगल, एक बाग़ और एक हरी भरी जगह वजूद में आ जाती है, इसका असर भी आप अपनी आँखों से देख रहे हैं। सांस्कृतिक काम के बारे में क्या ख़्याल है? आपने किताबें छपवायीं, फ़िल्में बनवायीं, आपकी उस किताब और उस फ़िल्म का क्या नतीजा हुआ ? यह मालूम होना अहम है, यह इतना आसान काम नहीं है। सांस्कृतिक काम की कठिनाई यही है, सांस्कृतिक काम की मुश्किल यही है कि आप इस नज़र से किए गए काम का भौतिक पहलुओं और उसकी मात्रा के आधार पर उसके नतीजे का आंकलन नहीं कर सकते। इंसान किताब छपवाता है, मुमकिन है उस किताब को 100 लोग पढ़ें, मुमकिन है 10000 लोग पढ़ें, मुमकिन है उसका पहला एडिशन ही पूरा न बिक पाए और यह भी मुमकिन है कि उसका सवां एडिशन भी छप जाए, आप इसका क्या करेंगे? किस तरह काम करेंगे कि यह सांस्कृतिक काम नतीजे तक पहुंच जाए?

आज हमें क़बायली समाज सहित ईरानी क़ौम के हर तबक़े में, हर व्यक्ति के लिए हर चीज़ से ज़्यादा सांस्कृतिक काम की ज़रूरत है। ईरानी क़ौम के दुश्मन, इस्लाम के दुश्मन, मुल्क के दुश्मन, इस्लामी गणराज्य के दुश्मन, आज सबसे ज़्यादा सॉफ़्ट वॉर पर काम कर रहे हैं, शायद बाद में, मैं इस बारे में संक्षेप में कुछ कहूं। कुल मिलाकर यह कि जो साथी, श्रद्धा पेश करने के इस तरह के काम कर रहे हैं और सांस्कृतिक कामों पर भी ध्यान दे रहे हैं, उन्हें इस बिन्दु पर ध्यान देना चाहिए जो मैंने कहाः आपके काम का फ़ीडबैक क्या रहा? आप लोगों के काम का नतीजा क्या हुआ? क़बायली समाज पर उसका कितना असर हुआ?

ईरान का क़बायली समाज, क़ौम के सबसे वफ़ादर तबक़ों में से एक

ईरान का क़बायली समाज, ईरानी क़ौम के सबसे वफ़ादार तबक़ों में से एक हैं। यह जो हम कहते हैं “सबसे वफ़ादार तबक़ों में से एक” तो यह खोखली बात और गुमान नहीं है, यह चीज़ उन तथ्यों के मद्देनज़र कही जा रही है जो मुल्क में मौजूद हैं और हम जानते हैं। हमारे निकट अतीत के इतिहास और पिछले दो तीन सौ साल के इतिहास में भी ऐसी घटनाएं मौजूद हैं जिनसे पता चलता है कि विदेशियों ख़ास तौर पर अंग्रेज़ों ने क़बायली समाज में पैठ बनाने के लिए कोशिश की थी, बड़ा हैरत में डालने वाला काम, अगर वक़्त होता और मौक़ा होता तो उनका ज़िक्र करना बेहतर होता, बहरहाल आप किताबों में पढ़िए। विदेशियों ने कोशिश की कि क़बायली समाज में पैठ बनाएं और उन्हें किसी तरह अपने मुल्क से ग़द्दारी के लिए उकसाएं। अनेक तरह से, अलगाववादी अभियान के ज़रिए, गृह युद्ध के ज़रिए, दूसरे अनेक कामों के ज़रिए, लेकिन वह उन्हें अपने मद्देनज़र रास्ते पर आगे बढ़ाने में कामयाब नहीं हुए, हम जो यह “सबसे ज़्यादा वफ़ादार” और “सबसे ज़्यादा वफ़ादारों में से एक” कह रहे हैं, वह इस वजह से है।

इन्क़ेलाब और पवित्र प्रतिरक्षा के दौरान इम्तेहान में क़बायली समाज की ज़बर्दस्त कामयाबी

इसी मौजूदा दौर में यानी इन्क़ेलाब के ज़माने में, पवित्र प्रतिरक्षा के दौर में, पवित्र प्रतिरक्षा के बाद के दौर में भी क़बायली समाज, इम्तेहान में बेहतरीन ढंग से कामयाब रहे हैं। यही बात कि क़बायली समाज से 11000 लोग शहीद हुए हैं, बहुत अहम है। ऐसा नहीं था कि पूरा क़बायली समाज सरहद के क़रीब था, ख़तरे में था, अलबत्ता कुछ हिस्सा सरहद के क़रीब था और पवित्र प्रतिरक्षा के वक़्त वह फ़ौरन ख़तरे में घिर गया था, लेकिन पूरा समाज नहीं था, इस समाज के लोग मुल्क के मध्यवर्ती भाग में थे और उन्हें सीधे तौर पर कोई ख़तरा भी नहीं था लेकिन इसके बावजूद वह पवित्र प्रतिरक्षा के मैदान में आ गए, उन्होंने रक्षा की, कोशिश की, काम किया।

धर्म, धार्मिक कर्तव्य पर अमल, क़बायली समाज में एकता, तरक़्क़ी और क़ुर्बानी की बुनियाद

कौन से तत्व इस बात का कारण बने कि हमारे मुल्क का क़बायली समाज अनेक क़ौमों व अनेक ज़बानों से तअल्लुक़ रखने के बावजूद, इस तरह एक दूसरे के साथ खड़ा रहे और इस्लाम की सेवा करे, मुल्क की सेवा करे? तस्बीह का यह धागा क्या था? धर्म और धर्म पर अमल! धर्म की वजह से एकता है, धर्म की वजह से तरक़्क़ी है, धर्म की वजह से क़ुर्बानी व बलिदान है, धर्म के जज़्बे ने क़बायली समाज को प्रेरित किया कि वह इस तरह मैदान में एक दूसरे के साथ रहें, यह क़ौमी विविधता और इसी तरह दूसरी बातें, उनके बीच जुदाई नहीं डाल सकीं, मतभेद पैदा नहीं कर सकीं, धर्म का इस तरह का असर होता है।

इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की ओर से इन्क़ेलाब के लक्ष्य को हासिल करने के लिए धार्मिक तत्व का इस्तेमाल

इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने भी इसी जज़्बे को इस्तेमाल करके इस महाक्रांति को वजूद दिया और इसे कामयाब बनाया और इन्क़ेलाब की कामयाबी के बाद इसी जज़्बे के ज़रिए मुल्क की रक्षा की। यक़ीन रखिए कि अगर धार्मिक जज़्बा न होता तो इन्क़ेलाब कामयाब न होता। कोई भी दूसरा जज़्बा, उन नौजवानों को, जो ख़ाली हाथ सड़कों पर और गोलियों के सामने आते थे और बंदूक़ के सामने सीना तान के खड़े हो जाते थे, उस सख़्त व कठिन मैदान में नहीं ला सकता था, कोई भी दूसरा जज़्बा यह नहीं कर सकता था, ईमान उन्हें मैदान में लाया। इस इन्क़ेलाब की कामयाबी के लिए इमाम ख़ुमैनी ने इसे उपयोग किया, फिर उन्होंने अवाम के ईमान को उपयोग किया ताकि इस मुल्क को सुरक्षित बना सकें। इन्क़ेलाब के बाद इस मुल्क की ओर ललचायी नज़रें उठने लगीं, लोग इसे ललचायी नज़रों से देखने लगे। ऐसा नहीं था कि अचानक ही ख़ुद सद्दाम की खोपड़ी में यह बात आ गयी थी कि वह उठ कर हमला कर दे, जी नहीं! उसे उकसाया गया था, वरग़लाया गया था, उसे उम्मीद दिलायी गयी थी, उससे वादे किए गए थे, उन्होंने अपने वादों को पूरा भी किया, उसे पैसे दिए, हथियार दिए, जंग के नक़्शे दिए, ये सब इसलिए था कि वह हमला करे। मक़सद यह था कि वह मुल्क के एक हिस्से को अलग करके या दूसरे अनेक हथकंडों से, इस्लामी इन्क़ेलाब को ख़त्म कर दे; यह मुख्य लक्ष्य था। अमरीका का उस के सिर पर हाथ था, ब्रिटेन का समर्थन था, फ़्रांस भी पीछे से साथ दे रहा था, रूढ़ीवादी सरकारें उसके साथ थीं और जो भी उनके पिट्ठू थे वह सद्दाम का साथ दे रहे थे, ये सब आकर ईरान के टुकड़े टुकड़े करना चाहते थे कि मुल्क को फिर से अमरीका के क़ब्ज़े में पहुंचा दें, ये ईरानी क़ौम को ग़ुलाम बनाना चाहते थे, इमाम ख़ुमैनी ने यह नहीं होने दिया, किस चीज़ के ज़रिए? धर्म के ज़रिए, धर्म के माध्यम से, धर्म इस तरह का है, धार्मिक ईमान का असर इस तरह का होता है।

शहीद धार्मिक ईमान के ख़ूबसूरत व गौरवशाली प्रतीक

आपके शहीद भी उसी धार्मिक ईमान का ख़ूबसूरत व भव्य प्रतीक हैं। आपने जिन 11000 शहीदों का नज़राना पेश किया है, वह सब हक़ीक़त में आपके धार्मिक ईमान के गहरे असर के सुबूत हैं। ये जवान अपने घर में, अपनी ज़िन्दगी में, अपने माहौल में, अपने माँ-बाप के पास, अपनी बीवी के पास, अपने बच्चों के पास रह सकता था, ज़िन्दगी के आनंद हासिल कर सकता था, जहाँ तक मुमकिन है-लेकिन उसने ये काम नहीं किया, सबको छोड़ कर चला गया, अपने प्यारे बच्चे को छोड़ दिया, अपनी प्यारी बीवी को छोड़ दिया, उस पर जान छिड़कने वाले माँ बाप को छोड़ दिया, किस लिए? इसके पीछे कौन सा जज़्बा था? प्रोत्साहित करने वाला जज़्बा, धर्म था। या ज़ख़्मी था और जंग के मैदान से वापस आ गया, या जेहाद में उसके शरीर का कोई अंग बेकार हो गया या वह शहीद हो गया। उसके माँ-बाप, इस मुसीबत को, इस कठिनाई को, दिल में लगी उस आग को ठंडा करने में कामयाब हो गए, उन्हें क़रार आ गया, यह धर्म की बर्कत से था, धर्म का असर था।

अल्लाह से सौदा, शहीदों के घरवालों में सब्र व क़रार का सबब

हमारे एक दोस्त के बेटे की एक्सिडेंट में मौत हो गयी थी, वह कुछ दुखी था, तीन शहीदों का बाप वहाँ मौजूद था, मैंने कहा तुम्हारा एक बेटा गया है, इन साहब के तीन बेटे जा चुके हैं, उसने कहा कि जनाब इनके बेटे शहीद हुए हैं, इसमें ग़म नहीं है! देखिए, सही बात भी है, जी हाँ! दिल में तकलीफ़ है- माँ बाप के दिल पर ज़ख़्म लगता है, उसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता- लेकिन शहीदों के घर वाले सब्र करते हैं, उन्हें तसल्ली होती है क्योंकि वह जानते हैं कि उनका यह जवान अल्लाह के पास है, ज़िन्दा है, वह अल्लाह से सौदा करते हैं।  हक़ीक़त यह है कि अल्लाह ने मोमिनों से उनके नफ़्स और उनके माल, स्वर्ग के बदले ख़रीद लिए हैं, वह अल्लाह के मार्ग में लड़ते और मारते तथा मरते हैं।(4) दोनों ही का बदला हैः अगर दुश्मन को जानी नुक़सान पहुंचाएं, तब भी बदला है और अगर आप ख़ुद दुश्मन के हाथों मारे जाएं, तब भी बदला है। इन लोगों ने अल्लाह से सौदा किया है, उस जवान ने भी अल्लाह से सौदा किया है और उसके माँ बाप और बीवी ने भी अल्लाह से सौदा किया है। इस मामले में धर्म के तत्व को भूलना नहीं चाहिए।

मुल्क की सुरक्षा और रक्षा क़ुर्बानियों और शहादतों का फल

अब कुछ लोग अलग तरह की समीक्षा करते हैं, उनमें कहते हैं कि जवान गया ताकि अपने मुल्क की सरहदों की रक्षा करे, सुरक्षा लाए, ठीक है, बात सही है, साफ़ बात है, मुल्क की सुरक्षा, मुल्क की रक्षा इन्हीं बलिदानों की देन है, इन्हीं शहादतों, अपने अंगों की भेंट पेश करने, संघर्ष और जंग का नतीजा है, इसमें कोई शक नहीं है कि ये मुल्क की सुरक्षा का सबब है लेकिन इसे प्रोत्साहित करने वाला जज़्बा धर्म था, अल्लाह था, प्रोत्साहित करने वाले तत्व को धर्म से हट कर किसी चीज़ से नहीं जोड़ना चाहिए। हक़ीक़त में इन लोगों ने अल्लाह के लिए क़दम बढ़ाया, अल्लाह के लिए काम किया और शहीदों की इज़्ज़त और उनका गौरव भी इसी वजह से है। शहीदों की इज़्ज़त इसी वजह से है। कुछ लोग हैं जिनका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, वह इन शहादतों का भी इंकार नहीं कर सकते, तो वह प्रोत्साहित करने वाले तत्व को बदल देते हैं और दुश्मन की सॉफ़्ट वॉर के सबसे अहम पहलुओं में से एक यही है कि धर्म के जज़्बे को जो सबसे अहम प्रेरक जज़्बा है, अवाम के बीच मिटा दें या उसे कमज़ोर बना दें।

धार्मिक जज़्बे को कमज़ोर बनाना, दुश्मन के सॉफ़्ट वॉर के सबसे अहम लक्ष्यों में से एक

आज मुल्क में धार्मिक परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं के ख़िलाफ़ जो भी काम होता है, उसके पीछे राजनीति से प्रेरित कोई तत्व होता है, मुमकिन है ख़ुद उस शख़्स को इल्म न हो लेकिन है यक़ीनन उसे उस रास्ते पर लगाया गया है। धर्म को कमज़ोर बनाना, धार्मिक परंपराओं को कमज़ोर बनाना, धार्मिक निशानियों व संस्कारों को कमज़ोर बनाना, उन पर सवाल खड़े करना, उन्हें अतार्किक ज़ाहिर करना, ये सब, ऐसी चीज़ें हैं जिनसे दुश्मन फ़ायदा उठाता है। यह भी मुमकिन है कि जो शख़्स यह कर रहा है, उसे इसका पता ही न हो, इस ओर उसका ध्यान ही न हो, जी हाँ! कभी कभी कुछ लोग ग़फ़लत में कोई काम कर बैठते हैं।

उम्मीद और मुल्क के प्रशासन को कमज़ोर बनाने के लिए दुश्मन की चाल और योजना

आज दुश्मन की कोशिश है कि धार्मिक ईमान को कमज़ोर कर दे, उम्मीद को कमज़ोर कर दे, भविष्य और मुल्क के प्रशासन की ओर से उम्मीद की भावना को कमज़ोर कर दे, ये वह चीज़ें हैं जिनके बारे में वे प्रोग्राम तैयार कर रहे है, उन पर काम किया जा रहा है। मिसाल के तौर पर क्या किया जाए कि अवाम को यह विश्वास हो जाए कि उनका कोई भविष्य नहीं है, भविष्य अंधेरा है और बंद गली में पहुंच चुका है, इसकी योजना बना रहे हैं, इस पर प्रोग्राम तैयार कर रहे हैं, साइबर स्पेस और सोशल मीडिया पर और अफ़सोस कि कभी कभी मुल्क के भीतर से भी लोगों के बीच ऐसी बातें पहुंचायी जाती हैं कि वे इस नतीजे पर पहुंचे कि मुल्क के अधिकारियों को मुल्क के प्रशासन को मुल्क चलाना नहीं आता। इतनी ज़्यादा मेहनत की जा रही है, इतनी ज़्यादा कोशिशें की जा रही हैं, उन कोशिशों के मुक़ाबले में ऐसा रवैया अपनाया जाता है। फ़र्ज़ कीजिए, मिसाल के तौर पर मुल्क की पुलिस फ़ोर्स चोरी की घटना के 48 घंटे के बाद चोरों को पकड़ लेती है, तो उन पुलिस वालों को शाबाशी दी जानी चाहिए लेकिन ख़ुद हमारे राष्ट्रीय मीडिया से इस तरह की बातें की जाती हैं मानो तारीफ़ के बजाए उन्हें घुड़का जा रहा है! जान बूझकर नहीं-यह बात निश्चित है कि ऐसा जान बूझकर नहीं होता- लेकिन ग़फ़लत है, ये ग़फ़लतें दुश्मन के फ़ायदे में हैं। जो भी अवाम को भविष्य की ओर से निराश करे, वह दुश्मन के फ़ायदे के लिए काम कर रहा है, चाहे उसे मालूम हो या न हो। जो भी लोगों के ईमान को कमज़ोर कर रहा है, वह दुश्मन के हित में काम कर रहा है, चाहे उसे मालूम हो या न हो। जो भी लोगों को मुल्क के अधाकरियों के काम, कोशिश और प्रोग्रामों की ओर से भ्रम पैदा करे तो वह दुश्मन के हित में काम कर रहा है, चाहे जान बूझकर या अनजाने में।

मुल्क के क़बायली समाज की मुश्किलों की पहचान और उनका हल, स्वयंसेवी बल बसीज और सभी अधिकारियों की ज़िम्मेदारी

स्वयंसेवी बल बसीज के अधिकारी भी, जो क़बायली समाज की मुश्किलों को हल करने के लिए काम कर रहे हैं, अच्छा और मूल्यवान काम कर रहे हैं, जिन कामों का साथियों ने ज़िक्र किया, उनके नमूनों को हमने तस्वीरों में देखा है, उन्हें आगे बढ़ाइये, ये मूल्यवान काम हैं। अलबत्ता इसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ स्वयंसेवी बल बसीज पर नहीं है, इसकी कुछ सीमाएं हैं, कुछ सीमित साधन हैं, वह अपने संसाधन की हद तक कोशिश करते हैं, मुल्क के सभी अधिकारियों को कोशिश करनी चाहिए, संबंधित अधिकारियों को चाहिए कि क़बायली समाज की मुश्किलों को पहचानें, उन्हें दूर करें और जैसा कि मैंने कहा, ख़ास तौर पर सांस्कृतिक मामलों पर ध्यान दें, उन पर काम करें, प्रोग्राम तैयार करें ताकि इंशाअल्लाह सही प्रोग्राम अंजाम पा सके।

आशावान रहना और मायूस न होना, शहीदों और जांबाज़ों का सबक़

हमें उम्मीद है कि इंशाअल्लाह, पूरी सृष्टि का चलाने वाला आपको अवसर दे और आपके शहीदों के दर्जे बुलंद करे। आपके शहीद और मुल्क के सभी शहीद वे लोग हैं जिन्होंने हमें यह सिखाया कि आशावान रहना चाहिए, अर्थात हमारे जांबाज़ ऐसे हालात में जंग के मैदान में उतरे थे कि आम हिसाब किताब की नज़र से जीत की कोई उम्मीद नहीं थी, सच में फ़त्ह की कोई उम्मीद नहीं थी। सद्दाम का हमला शुरू हुए तीसरा या चौथा दिन था कि देज़फ़ूल, अहवाज़ और ऐसी ही दूसरी जगहों से एक के बाद ख़बरें आनी लगी थीं, मैं इमाम ख़ुमैनी के पास गया, उनसे इजाज़त ली और कहा कि मैं वहाँ जा रहा हूं शायद लोगों को भर्ती कर सकूं, मुझे यक़ीन था-यक़ीन के क़रीब, यक़ीन जैसी कोई चीज़- कि वापसी नहीं होगी; हम वहाँ गए, दिमाग़ में था कि कुछ भी नहीं किया जा सकता, लेकिन आपने देखा कि इस्लामी गणराज्य ने, हमारे जवानों ने, इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व ने कुछ इस तरह से काम किया कि यह पवित्र प्रतिरक्षा, इस्लामी गणराज्य का गौरव बन गया, दुश्मन अपमानित हुआ, उसकी नाक रगड़ दी गयी। इस ने हमारे जांबाज़ों को उम्मीद अता की; मतलब यह कि इन सभी हालात में, यहाँ तक कि जंग के आग़ाज़ जैसे हालात में भी इंसान को अल्लाह की मदद और अपनी कोशिश की ओर से आशावान रहना चाहिए। इंशाअल्लाह पूरी सृष्टि का मालिक आपके साथ इन्हीं उम्मीदों के मुताबिक़ व्यवहार करे, आपको अवसर दे, आपकी मदद करे, जो कोशिश आप कर रहे हैं, इंशाअल्लाह उसका अच्छा नतीजा आपको हासिल हो। हमारा सलाम भी मुल्क के पूरे क़बायली समाज तक पहुंचा दीजिए, जिनके आप प्रतिनिधि हैं।

अल्लाह की रहमत और बर्कत हो आप पर

  1. इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में बसीज फ़ोर्स के प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल ग़ुलाम रज़ा सुलैमानी और देश की क़बायली बसीज फ़ोर्स के प्रमुख जनरल अहमद सईदी ने ब्रीफ़िंग दी। इस मौक़े पर इमाम ख़ुमैनी इमाम बाड़े की गैलरी में इस कान्फ़्रेंस से संबंधित एक प्रदर्शनी भी लगाई गई।
  2. सहीफ़ए इमाम, जिल्द-8, पेज-19, कहगीलुए व बुवैर अहमद के क़बायली समाज के लोगों से मुलाक़ात में स्पीच, 29 मई सन 1979
  3. यह तीन दिवसीय कॉन्फ़्रेंस चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत में 19 जून सन 2022 से आयोजित होगी।
  4. सूरे तौबा, आयत 111, हक़ीक़त यह है कि अल्लाह ने मोमिनों से उनकी जान और उनके माल, स्वर्ग के बदले ख़रीद लिए हैं वह अल्लाह की राह में लड़ते, और मारते व मरते हैं।