बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

पूरी इस्लामी दुनिया, ईरानी क़ौम और दुनिया में आज़ादी के नज़रिए को पसंद करने वाले सभी लोगों को बेसत अर्थात पैग़म्बरी के दायित्व के लिए रसूले ख़ुदा की नियुक्ति के मुबारक मौक़े पर बधाई पेश करता हूं।

बेसत का दिन और बेसत की रात, ऐसा दिन और रात है जब अल्लाह के सबसे अच्छे बंदे पैग़म्बरे इस्लाम को सृष्टि का सबसे अच्छा तोहफ़ा दिया गया जिसे बेसत की रात की ख़ास दुआ में महान जलवा (1) कहा गया है। अलबत्ता पैग़म्बरे इस्लाम का पैग़म्बर बनना पूरी इंसानियत के लिए भी तोहफ़ा है। अगर हम इस्लाम के बहुत से मूल्यों में से सिर्फ़ दो मूल्यों यानी माक़ूलियत या तार्किकता को बढ़ावा देने और अख़लाक़ व नैतिकता पर ख़ास ताकीद को मद्देनज़र रखें, जिनके बारे में इस्लाम ने बहुत ज़ोर दिया है, तो हमें ख़ुद बख़ुद यक़ीन हो जाएगा कि इस्लाम ने इंसानियत को नजात का सबसे अच्छा तोहफ़ा व ज़रिया दिया है। अक़्ल पसंदी और तार्किकता पर इस्लाम की ताकीद, बहुत अहम बात है। पवित्र क़ुरआन में दसियों आयतों, दसियों जगह शायद गिना जाए तो सौ जगहों पर अलग अलग लफ़्ज़ों जैसे सोच विचार करने और ग़ौर करने जैसे लफ़्ज़ों से अल्लाह ने एक एक इंसान को ग़ौर करने, सोच विचार करने, अक़्ल को इस्तेमाल करने की दावत दी है। अख़लाक़ को बढ़ावा देने और उसे अपनाने के लिए इतना काफ़ी है कि बेसत का सबसे पहला मक़सद अख़लाक़ और दिल की पाकीज़गी बयान किया गया है। जैसा कि जुमा सूरे (2) की दूसरी आयत में है “वह जिसने उम्मी लोगों में उन्हीं के एक शख़्स को पैग़म्बर बनाया ताकि उन्हें आयतें सुनाए और उन्हें पाक करे।” पहले मन का पाक होना ज़रूरी है। इसी तरह आले इमरान सूरे (3) की 164 वीं आयत में है “यक़ीनन मोमिनों पर अल्लाह का एहसान है कि उनके बीच उन्हीं में से एक को पैग़म्बर बनाया, ताकि उसकी आयत की तिलावत करे और उन्हें पाक करे।” क़ुरआन में कुछ दूसरी जगहें भी हैं जहां बेसत के मक़सद को तय किया गया है। तो इस तरह इस्लाम ने इन दो उच्च व बेजोड़ मूल्यों का तोहफ़ा इंसानों को दिया और उसे अपने वजूद में उतारने की दावत दी है। मोमिनों को और उन्हीं के तहत पूरी इंसानियत को ग़ौर व फ़िक्र करने और मन को पाक करने के लिए प्रेरित किया, यह इंसानियत को इस्लाम की तरफ़ से मिलने वाला सबसे बड़ा तोहफ़ा है।

बेसत के बारे में कुछ बातें मुख़्तसर तौर पर बयान करना चाहता हूं और बाद में मौजूदा हालात के बारे में कुछ बातें पेश करुंगा। पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी या बेसत के बारे में एक अहम बात यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत से वह चीज़ अमली तौर पर अंजाम पायी जो नामुमकिन नज़र आ रही थी, वह क्या चीज़ थी? वह यह थी कि उसने जेहालत के दौर के अरब प्रायद्वीप के लोगों को, मैं अभी बताउंगा कि वे कैसे लोग थे, एक नेक क़ौम में बदल दिया और वह भी ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम के दौर में; यह चीज़ आम नज़रों से नामुमकिन दिखाई देती है; जाहेलियत के दौर के अरब प्रायद्वीप के लोग, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम से पहले कुछ ऐसी ख़ुसूसियत रखते थे जिनमें से कुछ का ज़िक्र नहजुल बलाग़ा मैं है और कुछ का इतिहास में; गुमराह, लक्ष्यहीन, जेहालत में डूबे, बड़ी बड़ी साज़िश में लिप्त, भेदभाव और बड़ी जेहालत की वजह से होने वाले फ़ित्ने, इन सारी ख़ुसूसियतों के अलावा, अज्ञानता, इल्म की रौश्नी का अभाव, अख़लाक़ से दूरी, लक्ष्यहीनता और इन सबके साथ बहुत ज़्याद घमंड में चूर, चरमपंथी सोच, सच को क़ुबूल न करना, अड़ियल रवैया,  हठधर्मी, यह अरब प्रायद्वीप, मक्के और दूसरी जगहों पर उस वक़्त मौजूद लोगों की ख़ुसूसियत थी। उनके बड़ों से लेकर छोटों तक और सरदारों से लेकर अधीनस्थ लोगों तक में ये बातें मौजूद थीं। पैग़म्बरे इस्लाम ने मुख़्तसर सी मुद्दत में इन्हीं लोगों को ऐसी क़ौम में बदल दिया जो पूरी तरह से एकजुट थी। आप पैग़म्बर के ज़माने के मुसलमानों को देखिए, चाहे उस वक़्त के हों जब वे मदीने तक सीमित थे और चाहे उस वक़्त के हों जब मक्के, ताएफ़ और कुछ दूसरी जगहों तक फैल गए थे, एकजुट, नेक, दूसरों को माफ़ करना, बलिदान देना और भलाई से सजी एक ऐसी क़ौम में बदल गए थे, पैग़म्बरे इस्लाम ने इन्हीं लोगों को, इस तरह के इंसानों में बदल दिया। यह ज़ाहिरी तौर पर नामुमकिन था, यह चीज़ किसी भी लेहाज़ से मुमकिन नहीं लगती थी कि एक मुख़्तसर सी मुद्दत में इस तरह की आदतों व ख़ुसूसियत वाले ये लोग, जब इस्लाम क़ुबूल कर लेते हैं तो 20 साल से भी कम मुद्दत में पूरी दुनिया में उनका डंका बजने लगता है, उन्होंने अपने पूरब की ओर, अपने पश्चिम की ओर अपनी सोच को, अपने नज़रिए को और अपनी महानता को फैला दिया, आज की शब्दावली में हार्डवेयर की नज़र से भी और सॉफ़्टवेयर की नज़र से भी बढ़ावा दिया। यह वह काम था जो इस्लाम की वजह से अंजाम पाया और सच में यह एक नामुमकिन काम था, नामुमकिन दिखाई दे रहा था, लेकिन इस्लाम ने उसे कर दिखाया; बेसत ने उसे अमली रूप दिया।

तो यह वह वाक़ेआ है जो इतिहास में हुआ लेकिन हम आज भी इस वाक़ेए से फ़ायदा उठा सकते हैं, इस अर्थ में कि यह पूरे इतिहास में सभी मुसलमानों के लिए ख़ुशख़बरी है कि जब भी लोग, अल्लाह के इरादे की ओर, उसके रास्ते की ओर आ जाएं और ईश्वरीय इरादे के आगे झुक जाएं तो वे ऐसे ऐसे काम अंजाम दे सकते हैं जो नामुमकिन दिखाई देते हैं, ऐसे लक्ष्य हासिल कर सकते हैं जो आम नज़रों से और सामान्य अंदाज़ों से इंसान की पहुंच से बाहर हैं, हमेशा यह होता रहा है। पूरे इतिहास में पैग़म्बरे इस्लाम का यह तजुर्बा दोहराए जाने के लायक़ है; अगर इंसान, इस दिशा में आ जाएं तो वे ऐसे उच्च लक्ष्य हासिल कर सकते हैं जो आम निगाहों और आम अंदाज़ों से नामुमकिन नज़र आते हैं। यह तजुर्बा कुछ फ़र्क़ के साथ ईरानी क़ौम के साथ भी हुआ है और अल्लाह ने अपनी कृपा व रहम से ईरानी क़ौम को यह तजुर्बा दिया, अल्लाह ने ईरानी क़ौम को इस तजुर्बे का मौक़ा दिया। यह तजुर्बा, इस देश से शाही हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का था, यह देश जो पूरी तरह शाही शासन के तहत था, ज़ालिम की हुकूमत थी, भौतिक ताक़तों की मोहताज, अध्यात्म से कोसों दूर, बड़ा लंबा अतीत रखने वाली थी, यह वाक़ेआ यहां इस देश में हुआ, जबकि देश में इस शाही व्यवस्था को अमरीका का समर्थन हासिल था; दुनिया की बड़ी ताक़तें भी थीं: अमरीका भी, ब्रिटेन भी, आख़िर में पूर्व सोवियत यूनियन भी; सभी पहलवी शासन का समर्थन और उसकी मदद कर रहे थे, लेकिन ईरानी कौम ने, इस शासन को जड़ से उखाड़ फेंकने में, ज़ो ज़ाहिरी तौर पर नामुमकिन लग रहा था, कामयाबी हासिल की। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का पाक नेतृत्व, अवाम के बुलंद हौसलों और उनके बलिदान की बर्कत से यह लक्ष्य हासिल हुआ।

सच में उन दिनों हम कोशिश कर रहे थे, आगे बढ़ रहे थे; हम में से हर एक यह कहता कि ऐसा होगा तो बहुत ज़्यादा यक़ीन नहीं था लेकिन ऐसा हुआ; और इस क्रांति ने राष्ट्र को सुस्ती से बाहर निकाला, उसे हरकत में ले आयी, उसमें ख़ुशी की लहर आ गयी। इस क्रांति ने न सिर्फ़ दुनिया के सामने अपनी महानता की तसवीर पेश की बल्कि ईरानी राष्ट्र को भी महान बनाया, इस्लामी ईरान की दुनिया वालों के सामने महानता ज़ाहिर की। यह पहली बात है; अगर हम बेसत के उद्देश्य की तरफ़ आगे बढ़ें, तो नामुमकिन दिखने वाले काम को मुमकिन कर दिखाएंगे और ऐसे उद्देश्य तक पहुंच सकते हैं जिसे हासिल करना मुमकिन नहीं लगता।

पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत के बारे में अगला बिन्दु यह है कि उन लोगों के नज़िरए के विपरीत, जो धर्म को राजनीति से अलग चीज़ मानते हैं, धर्म को जीवन, राजनीति और शासन से पूरी तरह अलग बताते हैं, अनेक तरह के गुट इस संबंध में काम कर रहे हैं। पहले भी ऐसा कर रहे थे, मगर इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के साथ ही यह कोशिश नाकाम हो गयी। लेकिन अब फिर देखने में आ रहा है कि कुछ लोगों ने बयानों और तहरीर में दोबारा यह सरगोशियां शुरू कर दी हैं, तो इन लोगों के नज़रिए के विपरीत, पैग़म्बरे इस्लाम के आंदोलन का आख़िरी मक़सद, शासन की स्थापना करना था। इसके लिए बुनियादी काम, रास्ता समतल करने का काम ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम ने अंजाम दिया, मदीने के बड़े बड़े लोगों ने जब इस्लाम के बारे में सुना और यह देखने के लिए आए कि मामला क्या है, तो पैग़म्बरे इस्लाम ने उनसे बात की, अपनी बात पेश की, समझौता किया यसरिब के सरदारों के साथ मिल कर उस वक़्त तक इस शहर का नाम मदीना नहीं पड़ा था, बल्कि यसरिब था, रास्ता समतल किया। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने बहुत ही अजीब हालात में अपनी हिजरत शुरू की, फिर मुसलमानों का पलायन शुरू हुआ, धीरे-धीरे मोहाजिर मदीना आए। हिजरत से पहले पैग़म्बरे इस्लाम ने अपना प्रतिनिधि मदीना भेजा। मुसअब इब्ने उमैर को अपने प्रतिनिधि के तौर पर वहाँ भेजा कि वहाँ जाकर लोगों के सामने क़ुरआन की आयतों की तिलावत करें; उन्होंने यह बुनियादी काम किए, उसके बाद ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम ने यसरिब की ओर हिजरत की और वहाँ इस्लामी शासन क़ायम किया; यह उनके आंदोलन का चरम बिन्दु था। वह सिर्फ़ इसी पर नहीं रुके कि एक हुकूमत क़ायम करें और अवाम की ज़रूरतों और ज़िंदगी निगरानी करें, नहीं! उन्होंने दुश्मनों पर चौतरफ़ा हमला शुरू किया। क्योंकि दुश्मन मुसलमानों को चैन से नहीं बैठने देना चाहते थे। उन्होंने लश्कर तैयार किया, जंगी साज़ों सामान से लैस किया और दुश्मनों पर हमला कर दिया, कभी रक्षा की तो कभी हमला किया; दोनों चीज़ें हैं। कुछ लोग जो यह कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम की सारी जंगें रक्षात्मक आयाम पर आधारित थीं, यह सही नहीं है, इनमें से कुछ रक्षात्मक थीं और कुछ हमले थे; अलग अलग तरह के हालात थे। इसके बाद उन्होंने शिर्क के गढ़ को फ़त्ह किया और अल्लाह का घर इस्लाम और मुसलमानों के पास आ गया। आपने इस्लामी शासन को ज़्यादा से ज़्यादा मज़बूत किया। यह इस्लामी तहरीक का जोश और उत्साह से भरा अध्याय है। किस तरह वे लोग जो इस तरह की कोशिश करते हैं, इस्लाम को, धर्म को शासन से अलग करना चाहते हैं?

बेसत के बारे में एक अहम बिन्दु यह है कि बेसत के अहम नारों और पैग़म्बरे इस्लाम के लक्ष्यों में एक अहम लक्ष्य जेहालत का अंत करना था। पवित्र क़ुरआन में जेहालत की बार बार आलोचना की गई है। जेहालत का मतलब-अभी बताउंगा कि जेहालत से मुराद क्या है- जिसकी क़ुरआन में बार बार बुराई की गयी है। मायदा सूरे (4) की आयत 50 के एक भाग में आया है “...क्या जाहेलियत का हुक्म चाहते हो?” अहज़ाब सूरे (5) की आयत 33 के एक भाग में है; “...जाहेलियत के ज़माने की तरह अपने सजावट को ज़ाहिर न करो। फ़त्ह सूरे (6) की 26वीं आयत के एक भाग में है “उस वक़्त काफ़िरों के मन में अज्ञानता के दौर की कट्टरता उभरी” कुरआन में कुछ और जगहें भी हैं मुझे ये तीन आयतें याद आयीं, जिन्हें मैंने नोट किया था। क़ुरआन में जाहेलियत की बुराई की गयी है। यह जाहेलियत क्या है? जाहेलियत से मुराद सिर्फ़ अनपढ़ होना नहीं है, नादानी नहीं है; इसमें अनपढ़ का अर्थ भी शामिल है, लेकिन इस जाहेलियत के अर्थ का दायरा बहुत बड़ा है। नैतिक बुराइयां भी इस जाहेलियत में शामिल हैं कि जिनमें से कुछ का हमने पहले ज़िक्र किया। इंसानों का बेरहमी से भरा रवैयाः क़त्ल, चोरी, हमला, दूसरों के हक़ पर डाका डालना, कमज़ोरों को जान से मारना, इन सब चीज़ों का अरब प्रायद्वीप के लोगों में चलन था और ये सब उसी जाहेलियत का हिस्सा है। यौन दुराचार, अख़लाक़ी पस्ती, शर्म व हया का ख़त्म हो जाना; ये सब चीज़ें थीं, ये सब उस जाहेलियत का हिस्सा थीं। इन सभी से बेसत ने मुक़ाबला किया। यानी ऐसी जाहेलियत कि अहज़ाब सूरे में पैग़म्बरे इस्लाम की बीवियों को ख़िताब करके कहा गया है, “जाहेलियत के ज़माने की तरह अपने श्रंगार को ज़ाहिर न करो” यह ऐसी चीज़ है जिसमें अनपढ़, नादानी और जेहालत भी है, नैतिक बुराइयां, ज़ुल्म, भेदभाव, दूसरों का हक़ मारना, कमज़ोरों को जान से मारना, यौन दुराचार, अश्लीलता भी है, ये सब जाहेलियत का हिस्सा है। पैग़म्बरे इस्लाम ने जाहेलियत के ख़िलाफ़ जंग की। अहम बात यह है कि बहुत सी वे बुराइयां जिनका उस वक़्त मक्का में चलन था, अरब प्रायद्वीप में चलन था और पैग़म्बर ने उनके ख़िलाफ़ संघर्ष किया, उनमें से बहुत सी नैतिक बुराइयां आज पश्चिम के कथित मॉडर्न जगत में संगठित रुप में बड़े पैमाने पर मौजूद हैं, ठीक उसी तरह बड़े पैमाने पर आज नैतिक बुराइयां मौजूद हैं ज़्यादा शिद्दत के साथ।

आज पश्चिमी सभ्यता में ज़िन्दगी लालच पर टिकी है, लोभ पर टिकी है, वाक़ई पश्चिमी सभ्यता में ज़िन्दगी की बुनियाद लालच व लोभ है। पश्चिम में सभी मूल्यों की बुनियाद पैसों पर है। सब चीज़ को पैसे की कसौटी पर परखा जाता है, नैतिकता, अध्यात्म, सभी चीज़ को पैसों की बुनियाद पर परखा जाता है, कसौटियां यह है। प्रचलित नीतियां, सरकारें सभी भेदभाव को बढ़ावा दे रही हैं, बड़ी बड़ी कंपनियों और कार्टेल्ज़ को बड़े से बड़ा करने में लगी हुयी हैं। आज इस तरह से काम हो रहा है। इल्म, इंसानियत के क़त्ले आम में इस्तेमाल हो रहा है, इल्म व टेक्नॉलोजी नरसंहार की सेवा में हैं। एक वक़्त इल्म को फ़र्ज़ कीजिए वैक्सीन या किसी दवा को बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं ताकि कुछ लोगों की जान बचायी जा सके, लेकिन उसी इल्म को सामूहिक विनाश के हथियारों, केमिकल हथियारों, परमाणु हथियारों को बनाने में इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे उन लोगों की तुलना में सैकड़ों गुना लोगों का विनाश कर रहे हैं; ऐसा दुनिया में हुआ और अभी भी हो रहा है; कमज़ोर देशों को लूटना, नैतिक बुराइयां, बहुत ज़्यादा नैतिक गिरावट, समलैंगिकता और इस जैसी चीज़ें बहुत ही शर्मनाक हैं; ज़बान से कहते हुए इंसान को शर्म आती है। आज दुनिया में बेलगाम यौन इच्छा का चलन है, उस दौर में सीमित स्तर पर थी, मगर अब बड़े पैमाने पर है, सुनियोजित रूप में है; बहुत सी बुराइयों को बेबुनियाद तर्क का सहारा दिया गया है, यानी उसके लिए तार्किक व वैचारिक बैकग्राउंड बनाया है, उसके लिए वैचारिक आधार बनाकर इंसानियत के सामने पेश करते हैं। यह आज के दौर की जाहेलियत है। अगर कोई आज के दौर की सभ्यता, आज के दौर की पश्चिम की सभ्यता को, मॉडर्न जाहेलियत के बारे में स्टडी करे, लोगों ने स्टडी की है, बहुतों ने कहा कि मॉडर्न जाहेलियत सही है, सच में यह जाहेलियत, उसी दौर की जाहेलियत है बस नई शक्ल में, मॉडर्न शक्ल में दुनिया के सामने ख़ुद को पेश कर रही है।

तो अब क्या किया जाए? हमें बेसत के सबक़ को याद करना चाहिए। वही काम जो पैग़म्बरे इस्लाम ने उस दौर की जाहिलियत के मुक़ाबले में किया था, वह आज हमारे ज़िम्मे है, यह हमारी ज़िम्मेदारी है।

सब से पहले ईमान की मज़बूती है। पूरी दुनिया में इन्सानी दिल रखने वाले सभी लोगों और हमारे लिए एक बहुत ज़रूरी काम, दीन पर अक़ीदे को मज़बूत करना है। पूरी दुनिया में डट जाने वाले ईमान वालों की तादाद बढ़ना ज़रूरी है, वे लोग जिनके अंदर दीनी जोश हो और डट कर काम करने की जिन्हें आदत हो।

दूसरी चीज़ इस्लामी हुकूमत को मज़बूत करना है। इस वक़्त ख़ुदा के शुक्र से इस्लामी परचम की मदद से, इस्लामी परचम के साये में ईरान में एक इस्लामी हुकूमत बनी है, इसे मज़बूत करना चाहिए। इस हुकूमत को जितना हो सके मज़बूत करें, उसके असर को जितना हो सके बढ़ाएं।

इसके बाद स्ट्रैटेजिक प्लानिंग है। यह वह मैदान नहीं है जहां हम सिर झुकाए घुस जाएं और हमला करने लगें, प्लानिंग ज़रूरी है, रिसर्च की ज़रूरत है, स्ट्रैटेजी ज़रूरी है और प्लानिंग के साथ काम करना चाहिए। यह प्लानिंग इस जाहिलियत की पहचान की बुनियाद पर होनी चाहिए, अगर हम इस जाहिलियत को सही से न पहचानेंगे तो हम उसका मुक़ाबला नहीं कर सकते, उसके खिलाफ जंग नहीं छेड़ सकते।

यक़ीनी तौर पर अभी हम यह दावा नहीं कर सकते कि इन बड़े बड़े कामों में हम अपना मक़सद पूरा करने में कामयाब हुए हैं, जी नहीं! इन सभी बड़े मैदानों में हम अभी आधे रास्ते में हैं, इसमें कोई शक नहीं है। यक़ीनी तौर पर काम हुआ है, ख़ुदा के शुक्र से हम आगे बढ़े हैं लेकिन इन सभी मैदानों में हमने सिर्फ़ आधा रास्ता तय किया है, अभी मंज़िल तक पहुंचने में बहुत देर है। इसके बावजूद, इस्लामी इन्क़ेलाब का मॉडल और इस्लामी जुम्हूरी हुकूमत, पूरी दुनिया के लोगों या कम से कम दुनिया के मुसलमानों के लिए एक आकर्षक नमूना है।  आप देखें, तेहरान से कई हज़ार किलोमीटर की दूरी पर एक मुल्क के एक शहर में (7) शहीद क़ासिम सुलैमानी के फ़ोटो की बेअदबी की जाती है, लोग सड़क पर उतर आते हैं, जिसके बाद बेअदबी करने वाली पुलिस खुद मजबूर होकर माफी मांगती है, और फिर वह लोगों के साथ मिल कर शहर में उनकी दोबारा फोटो लगाती है, यह बहुत अच्छी मिसाल है। इस से पता चलता है कि यह अच्छा नमूना है। यही जो आधा अधूरा काम हुआ है वह भी लोगों को अपनी तरफ खींचता है। अगर हम इस राह पर अच्छी तरह से आगे बढ़ सकें, अगर हम इस मिशन को एक साथ मिल कर आगे बढ़ा सकें तो दुनिया में एक बहुत ही आकर्षक और लोगों को अपनी तरफ खींचने वाला मॉडल पैदा हो जाएगा और दूसरे मुल्कों के लोग ख़ुद से उस की तरफ़ खिचें चले आएंगे।

हमारा सामना इस तरह की जेहालत से है। वैसे यह माडर्न जेहालत, पूरी दुनिया में हर जगह एक जैसी नहीं है। मेरे ख्याल में माडर्न जाहिलियत का सब से बड़ा और खुला नमूना, अमरीका है। पूरी दुनिया में किसी भी दूसरी जगह से ज़्यादा यह जेहालत अमरीका में नज़र आती है। वहां सब से ज़्यादा ख़तरनाक शक्ल में नज़र आती है, वहां सही मानों में ऐसा ही है। अमरीका ऐसी हुकूमत है जहां ग़लत बातों को बढ़ावा दिया जाता है, नस्ल परस्ती हर दिन बढ़ रही है और मुल्क की दौलत मालदार लोगों की जेब में जा रही है। अमरीका जैसे मालदार मुल्क में जब सर्दी बढ़ जाती है तो कुछ लोग सड़क पर सर्दी से मर जाते हैं, जब गर्मी बढ़ती है तो कुछ लोग गर्मी से सड़क पर मर जाते हैं, क्यों? इसका क्या मतलब है? आज माडर्न जेहालत, नस्लपरस्ती, ज़ुल्म का नमूना और पूरी दुनिया में हालात खराब करने वाला मुल्क, अमरीका है। अमरीका, क्राइसेस से ज़िन्दा है, दूसरे मुल्कों की परेशानियों की रोटी खाता है। वहां पर यह हो रहा है।

अमरीका में ताक़त के अलग अलग माफ़िया, पूरी दुनिया में पैदा होने वाले क्राइसेस से रोटी खाते हैं, उससे फ़ायदा उठाते हैं। अस्ल में अमरीका, एक माफ़ियाई सरकार है, पॉलिटिकल माफ़िया, इकॉनोमिक माफ़िया, हथियारों का माफ़िया और इसी तरह के न जाने कैसे कैसे माफ़िया जो इस मुल्क को चलाते हैं और इस मुल्क की बागडोर उन्ही के हाथों में है। यह लोग पर्दे के पीछे रह कर किसी को सत्ता लाते हैं किसी को सरकार से बाहर का रास्ता दिखाते हैं। यह माफ़िया अमरीका में प्रेज़ीडेंट बनाते हैं। यही वजह है कि अमरीका के इन माफ़ियाओं के लिए दुनिया के किसी न किसी इलाक़े में क्राइसेस ज़रुरी है। इस लिए यह लोग क्राइसेस पैदा करते हैं। पश्चिमी एशिया में आप देखिए यह लोग कितने मुद्दे पैदा करते हैं। इन्हें ज़रूरत पड़ी तो इन्होनें दाइश जैसे भयानक गिरोह को बना दिया जो इन के पालतू कुत्ते थे और खुले आम और कैमरों के सामने लोगों के सिर काटते थे, ज़िन्दा जलाते थे या पानी में डुबोते थे और उसकी क्लिप पूरी दुनिया को दिखाते थे, इन्हें अमरीका ने बनाया था, ख़ुद  अमरीकियों ने यह माना भी है, ख़ुद बताया कि दाइश को उन्होंने बनाया यह लोग, क्राइसेस पैदा करते हैं। अगर यह क्राइसेस न पैदा कर सकें तो इनके हथियार बनाने के कारख़ाने मुनाफ़ा कैसे कमाएंगे? इस लिए इन्हें हर हाल में दुनिया में जंग और क्राइसेस पैदा करना होता है ताकि अमरीकी माफ़ियाओं को फ़ायदा मिलता रहे।

आज मेरी नज़र में यूक्रेन भी इसी तरह की पॉलिटिक्स का निशाना बना है। आज यूक्रेन में जो कुछ हो रहा है उसका ताल्लुक़ भी अमरीका की इसी पॉलीसी से है। अमरीका ने ही यूक्रेन को इस हाल में पहुंचाया है, उसके अदंरूनी मामलों में दख़ल देकर, वहां की सरकारों के ख़िलाफ लोगों को सड़कों पर उतार कर, साफ़्ट वॉर शुरु करके, वेलवेट इन्क़ेलाब शुरु करके, रंगीन इन्क़ेलाब कराके, अपोज़ीशन के जुलूसों में अमरीकी सेनेटरों की मौजूदगी से, इस सरकार को हटा कर, उस सरकार को सत्ता में लाकर यह काम किया है तो ज़ाहिर सी बात है कि इस तरह की हरकतों का यही अंजाम होना था।

यक़ीनी तौर पर हम जंग और तबाही के ख़िलाफ़ हैं। वह चाहे जहां हो, यह हमारी स्थायी पॉलिसी रही है। हम लोगों के क़त्ल के, और दूसरे मुल्कों की तबाही के ख़िलाफ़ हैं, यह काम दुनिया में चाहे जहां हों हम उसकी हिमायत नहीं कर सकते, यह हमारा स्थायी स्टैंड है। हम अमरीकियों की तरह नहीं हैं कि अगर अफ़ग़ानिस्तान में किसी शादी पर बमबारी कर दी जाए और शादी को ग़म में बदल दिया जाए तो भी यह कहें कि यह तो दहशतगर्दी के खिलाफ जंग है, कोई जुर्म नहीं। उनकी लॉजिक यही है। अफ़गानिस्तान में, इराक़ में, उनका यही काम है। अमरीका ईस्टर्न सीरिया में क्या कर रहा है? क्यों सीरिया का तेल चुरा रहा है? अमरीकी अफ़ग़ानियों के पैसे क्यों चुरा रहे हैं? अफ़ग़ानिस्तान की क़ौमी दौलत को क्यों ज़ब्त कर रहे हैं? क्यों पश्चिमी एशिया में रात दिन जुर्म करने वाले ज़ायोनियों का साथ देते हैं? इसे कहते हैं क्राइसेस पैदा करना, अमरीकी यह काम करते हैं और यह सारे काम, ह्यूमन राइट्स और इस तरह के बहानों से करते हैं।

हम उनकी तरह नहीं हैं कि अगर किसी जगह जहां हमारी मर्ज़ी हो, कुछ हो तो उसके बारे में एक तरह से फैसला करें और वही काम कहीं और हो तो उसके बारे में अलग फैसला करें। आठ बरसों से यमन के लोगों पर बम बरसाए जा रहे हैं, पश्चिमी मुल्क उसकी बुराई नहीं करते बल्कि साथ भी दे रहे हैं, ज़बान से भी, मीडिया से भी और जंग में शामिल हो कर भी, यह लोग इस तरह के हैं। हम यक़ीनी तौर पर यूक्रेन में जंग का खात्मा चाहते हैं, हम चाहते हैं कि वहां जंग ख़त्म हो जाए लेकिन किसी भी मसले का हल उसी वक़्त तलाश किया जा सकता है जब उसकी अस्ल वजह का पता हो। यूक्रेन के मसले की जड़ अमरीका है, पश्चिमी मुल्कों की पॉलीसियां हैं, यह क्राइसेस की जड़ें हैं, इनका पता लगाया जाना चाहिए और उस की बुनियाद पर फैसला किया जाना चाहिए और अगर कुछ करना मुमकिन हो तो उस की बुनियाद पर काम किया जाना चाहिए।

अब जब यूक्रेन की बात आ गयी है तो इस बारे में कुछ सीख और सबक़ भी हैं जो नज़र आते हैं और जिन की तरह बहुत से लोगों ने इशारा भी किया है। मैं दो सबक़ का ज़िक्र करता हूं। एक तो यह है कि पश्चिमी सरकारों की तरफ़ से अपनी पिट्ठू सरकारों का साथ देने की बात एक धोखा है, यह बात सब को समझ लेना चाहिए। जो सरकारें, अमरीका और युरोप के आसरे पर हैं और उनकी मदद से उम्मीद लगाए हैं वह आज यूक्रेन की हालत और कल के अफ़ग़ानिस्तान की हालत देख लें। यूक्रेन के प्रेसीडेंट ने अभी कुछ दिन पहले ही कहा है कि हमने अमरीका पर भरोसा किया, हम ने यूरोप पर भरोसा किया लेकिन उन लोगों ने हमें अकेला छोड़ दिया। इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता, यह पहला सबक़ है। पूरी दुनिया पर अपनी छाप छोड़ने वाले इस्लामी गणराज्य की तो बात ही अलग है, इसमें तो उन लोगों के लिए बहुत बड़ा सबक़ है जो अमरीका पर भरोसा करते हैं। उन्हें यह बात समझना चाहिए।

दूसरा सबक़ यह है कि अवाम हुकूमत की सब से बड़ी ताक़त होती है। अगर यूक्रेन में आम लोग मैदान में आ जाते तो यूक्रेन की सरकार और वहां के लोगों का यह हाल न होता, यह इस लिए हुआ क्योंकि वहां के लोगों के दिलों में सरकार की कोई इज़्ज़त नहीं थी ठीक उसी तरह जैसे जब सद्दाम के दौर में अमरीका ने इराक़ पर हमला किया था, लोगों ने मुक़ाबला नहीं किया, वह अलग हट गये और अमरीका का क़ब्ज़ा हो गया। लेकिन इसी इराक़ में जब दाइश ने हमला किया, तो लोग मैदान में उतरे और दाइश जैसे बहुत बड़े ख़तरे को अपने मुल्क से दूर कर दिया और उन्हें ख़त्म कर दिया। दुनिया के किसी भी मुल्क की आज़ादी और ताक़त की अस्ल बुनियाद वहां के अवाम हैं, हमने यह तजुर्बा हासिल किया है, हमने इसे आज़माया है, जब हम पर सद्दाम ने हमला किया था, हमारे लोग मैदान में आए और हालांकि दुनिया की सभी ताक़तें सद्दाम का साथ दे रही थीं लेकिन इस्लामी गणराज्य अवाम की मदद से जीतने और दुश्मन को नाकाम बनाने में कामयाब रहा। इस बुनियाद पर यह भी एक सबक़ है।  हमें उम्मीद है कि हम सब अपनी आंखें खुली रखेंगे, कान खुले रखेंगे, सही अंदाज़ से सोचेंगे, सही सोच रखेंगे, सही काम करेंगे और इस तरह के सबक़ से कुछ सीखेंगे।  

ख़ुदा से दुआ है कि वह इमाम ख़ुमैनी के दरजात बुलंद करे क्योंकि उन्होंने हमें यह सिखाया है, उन्होंने हमें इस राह पर लगाया है। इसी तरह ख़ुदा हमारे शहीदों को पैग़म्बरे इस्लाम के साथ उठाए क्योंकि उन्होंने इस दुनिया में हमारा सिर ऊंचा किया है। मैं एक बार फिर मुबारकबाद पेश करता हूं और इमाम ज़माना की खिदमत में सलाम पेश करता हूं।

वस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू

  1. बलदुलअमीन, पेज 183
  2. सूरए जुमा, आयत नंबर 2 का हिस्सा
  3. सूरए आले इमरान, आयत नंबर 164 का हिस्सा
  4. सूरए मायदा, आयत नंबर 50 का हिस्सा
  5. सूरए अहज़ाब आयत नंबर 33 का हिस्सा
  6. सूरए फत्ह, आयत नंबर 26
  7. कश्मीर में एक हिन्दुस्तानी फौजी ने शहीद कासिम सुलैमानी की फोटो जला दी थी जिसके बाद लोग सड़कों पर उतर आए और हड़ताल कर दी और आखिर में पुलिस ने ईरान के सुप्रीम लीडर और शहीद क़ासिम सुलैमानी की तस्वीर ख़ुद लगायी जिससे हंगामा खत्म हुआ।