स्टक्सनेट! एक विध्वंसक कंप्यूटर वायरस जिसका नाम सन 2010 की गर्मियों में मीडिया की सुर्ख़ियों में आया। यह ऐसा वायरस था जिसका मक़सद, औद्योगिक सिस्टमों की जासूसी और उन्हें तबाह करना था, वे सिस्टम जो सामान्य रूप से ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों या एटमी प्लांट्स में स्थापित थे और इन प्रतिष्ठानों के कंट्रोल की ज़िम्मेदारी उन पर थी। उसी समय जब, सभी स्टक्सनेट और उसके विध्वंस की ख़बरों पर पल पल नज़र रखे हुए थे, ईरानी अधिकारियों ने अपने माहिर शोधकर्ताओं, इंजीनियरों व वैज्ञानिकों की एक टीम को लामबंद कर दिया था ताकि इस ख़तरनाक और बेलगाम वायरस को नियंत्रित किया जा सके। उस टीम का एक सदस्य कुछ महीनों बाद बहुत मशहूर हो गया जिसका नाम था प्रोफ़ेसर मजीद शहरयारी!

ईरान के 44 वर्षीय युवा वैज्ञानिक जिनकी हत्या की ख़बर कुछ महीने बाद विश्व मीडिया की सबसे बड़ी ख़बर बन गई। वे ईरान के परमाणु उद्योग के सबसे अहम वैज्ञानिकों में से एक थे। उनके प्रोफ़ेसर बनने के लगभग एक-दो महीने बाद ही स्टक्सनेट की समस्या पेश आ गई। अब वे और उनके युवा सहयोगी, जो उनके सलाहकारों और ईरान के मज़बूत होते परमाणु उद्योग के वैज्ञानिकों की क़तार में पहुंच गए थे, उस वायरस से लड़ने के लिए तैयार हो गए थे जिसका जन्म इस्राईल व अमरीका की जासूसी संस्थाओं की प्रयोग शालाओं में हुआ था। दो से तीन महीने में ही मजीद और अन्य ईरानी वैज्ञानिकों की कोशिश सफल हो गई और ईरान के सिस्टमों के अधिकतर भाग को स्टक्सनेट से साफ़ कर दिया गया।

ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था के तत्कालीन प्रमुख डॉक्टर अली अकबर सालेही, शहरयारी की वैज्ञानिक महारत और विनम्र स्वभाव के बारे में एक रोचक क़िस्सा बयान करते हैं,  “जब हमें यह ज़िम्मेदारी सौंपी गई कि यूरेनियम का 20 प्रतिशत संवर्धन (एनरिचमेंट) शुरू करें तो विभिन्न विषयों के वैज्ञानिकों की एक बड़ी टीम बनाई गई। काम को आगे बढ़ाने के लिए क्रिटिकल कैल्क्यूलेशंस करने थे। ईरान में यह काम करने वाला कोई नहीं था। अलग अलग राहों से हमने कोशिश की कि इस कमी को दूर करें लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। यह काम नहीं होता तो फिर पूरे प्रोजेक्ट को रोकना पड़ता। बड़ा ही कठिन और संवेदनशील काम था। मैंने यह बात कुछ लोगों के सामने पेश की। डॉक्टर शहरयारी ने अत्यंत शांत स्वर में, जो उनकी ख़ास पहिचान थी, कहा कि सर! यह कैल्क्यूलेशंस मैं कर दूंगा। यह यक़ीन करने वाली बात नहीं थी कि जिस शख़्स ने यह काम न सीखा हो और देश से बाहर न गया हो, वह यह कैल्क्यूलेशंस अंजाम दे। शहरयारी ने यह काम किया, सिर्फ़ और सिर्फ़ शहरयारी ने। उन्होंने यह कैल्क्यूलेशंस किए और एक पैसा भी नहीं किया, मैंने लाख कोशिश की लेकिन उन्होंने कुछ नहीं लिया।”

मजीद शहरयारी, SESAME प्रोजेक्ट में इस्लामी गणराज्य ईरान के सबसे अहम सलाहकारों व वैज्ञानिकों में से एक थे। उनका जन्म दिसम्बर 1966 में तेहरान के पश्चिम में 330 किलो मीटर की दूरी पर स्थित ज़ंजान शहर में हुआ था। उन्होंने स्कूल से लेकर परमाणु तकनीक में अपनी पीएचडी तक की सारी पढ़ाई, ईरान में ही की थी। एक ज़बरदस्त ईरानी वैज्ञानिक, जिन्होंने वर्णमाला से लेकर एटॉमिक बिजली घरों के रिएक्टरों के पेचीदा कैल्क्यूलेशंस तक की शिक्षा ईरान के अंदर और ईरानी यूनिवर्सिटी में ईरानी प्रोफ़ेसरों से हासिल की थी। उनके एक शागिर्द का कहना है कि एक बार मैंने प्रोफ़ेसर शहरयारी के सामने कुछ समस्याओं और कुछ लोगों के सही से काम न करने का शिकवा किया। प्रोफ़सर ने बहुत साफ़ शब्दों में जवाद दिया।

प्रोफ़ेसर मजीदी ने उन समस्याओं और कुछ लोगों के सही से काम न करने की बात मानते हुए अपने शिष्य से कहा था कि हमें यहीं इसी देश में रुकना होगा और इन्हीं समस्याओं के साथ काम करना होगा। उन्होंने स्पष्ट रूप से यह भी कहा था कि वे कभी भी ईरान और उसकी शासन व्यवस्था के ख़िलाफ़ खड़े नहीं होंगे, वे समस्याओं का सामना करेंगे और अपना काम जारी रखेंगे। उन्होंने कहा था कि अगर तुम इस देश के साथ हो तो यहीं रुको और कुछ चीज़ों को बर्दाश्त करो क्योंकि हमेशा तो यह नहीं होता कि हम हालात को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ बदल डालें। उनकी पत्नी भी इसी तरह की एक घटना बयान करती हैं। मजीद की पत्नी डॉक्टर बहजत क़ासेमी कहती हैं कि वे कभी भी विदेशी दौरे के निमंत्रण का जवाब नहीं देते थे। “एक बार, ऐसे ही - यह नहीं कि मेरी सोच यही थी, बल्कि ऐसे ही- मैंने कहाः कुछ साल ईरान से बाहर चलते हैं और इन हंगामों से दूर हो जाते हैं। उन्हें बहुत बुरा लगा कि उनकी बीवी ऐसी बात क्यों कर रही है। वे कहते थे कि अगर अपने देश को छोड़ दें तो कहां जाएं?”

शहरयारी की एक और विशेषता, धार्मिक व इस्लामी मान्यताओं का कड़ाई से पालन करने की थी। यह चीज़ उनकी घुट्टी में पड़ी हुई थी और उनकी अंतिम सांस तक, वैसे ही मज़बूती के साथ बाक़ी रही। उनकी पत्नी बताती हैं कि शहरयारी की एक आदत क़ुरआने मजीद की तिलावत थी। उनकी आवाज़ भी अच्छी थी और वे ईरान के मशहूर क़ारी, उस्ताद परहेज़कार के तरीक़े से क़ुरआने मजीद पढ़ा करते थे। उनके दोस्त बताते हैं कि वे नमाज़े शब (आधी रात के बाद और सुबह की अज़ान से पहले पढ़ी जाने वाली सुन्नत नमाज़) भी पूरी पाबंदी से पढ़ा करते थे। डॉक्टर शहरयारी के सामने दूसरों की बुराई करना सख़्ती से मना थ। अगर वे किसी जगह दूसरों की बुराई को रोक नहीं पाते थे तो वहां से हट जाते थे। वे आम तौर पर अपनी सफलता भी अल्लाह से ही मांगा करते थे। उनके एक शागिर्द, उस समय की एक दिलचस्प घटना बयान करते हैं जब वे प्रोफ़ेसर बने थे।

“जब वे प्रोफ़ेसर बने तो उनके लिए जश्न आयोजित किया गया। उनसे कहा गया कि वे कुछ देर स्पीच दें। उन्होंने अपनी बात हज़रत अली की मशहूर दुआ, दुआए कुमैल के इस जुमले से शुरू की, ऐ ख़ुदा मेरी कितनी ही ऐसी बुराइयां हैं जिन पर तूने पर्दा डाल रखा है। वे कहना चाहते थे कि यह मत सोचिए कि मेरा सब कुछ इस डिग्री में है। वे कहना चाहते थे कि मुझ में बहुत सी कमियां हैं जिन पर अल्लाह ने पर्दा डाल रखा है। उस बैठक में उन्होंने अपनी विशेषताओं के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा!” उनके एक और शागिर्द डॉक्टर शहरयारी की ओर से नमाज़ की पाबंदी और उसे दी जाने वाली अहमियत के बारे में एक और रोचक बात बताते हैं। “नमाज़ को उसके सही समय पर पढ़ने के बारे में डॉक्टर की चिंता और कोशिश मैं कभी भी भूल नहीं सकता। यहां तक कि जब हम पहाड़ पर भी जाते थे तो मैं देखता था कि जैसे ही अज़ान होती, वे तेज़ी से क़िब्ला मालूम करते और नमाज़ के लिए खड़े हो जाते। उन्हें नमाज़ पढ़ते देख कर कभी कभी मुझे शर्मिंदगी होती थी। डॉक्टर अपनी उपासनाओं में बहुत गहरे थे।”

प्रोफ़ेसर मजीद शहरयारी की एक और ख़ासियत, पारिवारिक संबंधों, पत्नी, बच्चों, माँ और पिता को उनकी तरफ़ से दी जाने वाली अहमियत थी। उनके एक शिष्य बयान करते हैं कि वे जब क्लास में मौजूद होते और पढ़ा रहे होते थे तो किसी की भी टेलीफ़ोन कॉल का जवाब नहीं देते थे लेकिन एक शख़्स इस नियम से परे थाः उनकी माँ! वे जब भी उन्हें फ़ोन करतीं, वे जवाब देते थे। उनके घर वाले और रिश्तेदार बताते हैं कि उन्हें अपनी माँ के हाथ-पैर चूमने में भी कोई संकोच नहीं होता था। इस नियम से उनकी पत्नी और बच्चे भी अलग नहीं थे। उनकी पत्नी डॉक्टर शहरयारी के पारिवारिक संबंधों के बारे में कहती हैं। “कई बार जब वे देर से घर आते थे तो मैं मज़ाक़ में कहती थी कि कहीं रास्ता तो नहीं भूल गए, यहां कैसे आना हुआ? वे सिर्फ़ यह कहते कि शर्मिंदा हूं। वे ख़ास अवसरों पर घर के सदस्यों के लिए कोई न कोई तोहफ़ा भी ज़रूर लाते थे, चाहे एक फूल ही क्यों न हो। वे बच्चों के अच्छे दोस्त थे और उनके लिए समय निकालते थे। उन्होंने ज़िंदगी में मेरी हर ज़रूरत पूरी की। प्यार, मुहब्बत, अपनाइयत और रूहानियत जैसी चीज़ें मेरे लिए अहम थीं और मजीद में यह सारी चीज़ें भरपूर तरीक़े से मौजूद थीं।”

यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर के रूप में शहरयारी अपने छात्रों के साथ भी घर वालों की तरह ही व्यवहार करते थे। वे कहते थे कि माता-पिता ने अपने बच्चे हमारे हवाले किए हैं। अनुशासन के कड़ाई से पालन के साथ ही वे उन छात्रों के कामों के लिए भी कोशिश करते रहते थे जिन्हें कोई समस्या आ जाती थी। उनके एक शागिर्द को शादी के समय कुछ आर्थिक मुश्किल पेश आ गई। शहरयारी ने उन्हें कुछ रक़म दी और कहा कि जब तुम्हारे पास पैसे हो जाएं तभी लौटाना। उनके एक अन्य शिष्य कहते हैं। “एक छात्र, कुछ कारणों से दो-तीन सेमिस्टर यूनिवर्सिटी में नहीं आया और उसे यूनिवर्सिटी से निकाला ही जाने वाला था। डॉक्टर शहरयारी ने उसके लिए बड़ी कोशिश की और वह इस शर्त के साथ यूनिवर्सिटी से नहीं निकाला गया कि वह अच्छे नंबर लाएगा। बाद में जब वह छात्र अपनी थेसिस पेश कर रहा था तो उसके माँ-बाप डॉक्टर शहरयारी के लिए फूल लेकर आए थे जबकि वे उसके सुपरवाइज़र नहीं थे।”

प्रोफ़ेसर मजीद शहरयारी, अपने छात्रों को ज्ञान देने में बिलकुल भी कंजूसी नहीं करते थे। उनके एक छात्र का कहना है कि वे अपना ज्ञान, दूसरों को देने में कंजूस नहीं थे। वे हमेशा  वर्कशॉप रखते थे और इसी माध्यम से उन्होंने अपने लोगों का प्रशिक्षण किया। ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था के पूर्व प्रमुख डॉक्टर अली अकबर सालेही भी कुछ इसी तरह की बात कहते हैं। “जब डॉक्टर शहरयारी शहीद हो गए तो मैं बहुत चिंतित हुआ लेकिन उनका चरित्र, अपना ज्ञान बांटने का था और मैंने इसके बारे में बिलकुल नहीं सोचा था। लोगों ने कहा कि चिंता न करें, डॉक्टर शहरयारी ने शुरुआत में ही हमारे लिए वर्कशॉप रखी थी और हमें यूरेनियम के 20 फ़ीसदी एनरिचमेंट के कैल्क्यूलेशंस की प्रक्रिया की शिक्षा दी थी। वे अच्छी तरह जानते थे कि उनके पास जो क्षमता है वह ईरान में किसी और के पास नहीं है लेकिन इसके बावजूद उन्होंने एक वैज्ञानिक वर्कशॉप शुरू की थी और लगभग 15 लोगों को अपने ज्ञान की शिक्षा दी थी। उनके स्टुडेंट्स ने बताया कि अब हम संवर्धन के बारे में सब कुछ जानते हैं।”

स्टक्सनेट पर लगाम लगाने में ईरानियों की सफलता को कुछ ही हफ़्ते बीते थे। मजीद की वर्षगांठ में आठ दिन बचे थे। आठ दिन बाद वे 45वें साल में प्रवेश करने वाले थे। वे ऐसे युवा वैज्ञानिक थे जो बहुत सारे लोगों के लिए अनजान थे लेकिन कुछ लोग उन्हें अच्छी तरह से जानते और पहचानते थे, जैसे मूसाद और सीआईए के अधिकारी, एजेंट और उनके पिट्ठू। मजीद शहरयारी की सालगिरह को आठ दिन बचे थे कि तेहरान के पूर्वोत्तर में एक हाईवे पर एक गाड़ी में मैगनेट बम के धमाके ने एक शख़्स का नाम पूरी दुनिया के मीडिया की हेडलाइन बना दिया। वह शख़्स जिसे बहुत से लोग नहीं पहचानते थे, लेकिन उसने हैरतअंगेज़ कारनामे अंजाम दिए थे। प्रोफ़ेसर मजीद शहरयारी!