आप देखिए कि इन्होंने भारत में क्या किया? चीन में क्या किया? 19वीं सदी में अंग्रेज़ों ने भारत में वह तबाही मचाई कि - मुझे विश्वास है कि आप युवा इतिहास को भी और इन चीज़ों को भी कम ही अहमियत देते हैं - जो कुछ हुआ है उसका हज़ारवां हिस्सा भी आपने प्रचारों में और बातों में नहीं सुना है।
नेहरू अपनी किताब में लिखते हैं कि अंग्रेज़ भारत आए। उनके मुताबिक़, उस समय में, जब अभी औद्योगिक क्रांति नहीं आई थी और बड़ी बड़ी मशीनों वुजूद में नहीं आई थीं, भारतीय उपमहाद्वीप, उद्योग की दृष्टि से दुनिया के विकसित देशों में से एक था। इन लोगों ने अपना काम निकालने के लिए भारत के उद्योग को तबाह कर दिया, भारत के मध्य वर्ग को ख़त्म कर दिया, विज्ञान व उद्योग की दिशा में बढ़ने वाले क़दमों को तरह तरह की साज़िशों और हथकंडों से रोक दिया, एक राष्ट्र के शरीर में एक ख़तरनाक बीमारी पैदा कर दी और इस काम को भारत में शुरू हुए लगभग डेढ़ सौ साल हो चुके हैं लेकिन अब तक इस बीमारी का इलाज नहीं हो सका है। इन्होंने इसी तरह का काम चीन में भी किया, चीन में भी भयंकर समस्याएं पैदा कीं, चीनी राष्ट्र पर दबाव डाला। ये सब 19वीं सदी की बात है। अफ़्रीक़ा में क्या किया? विज्ञान की मदद से ख़ुद अमरीका महाद्वीप में क्या क्या मुसीबतें पैदा कीं? अफ़्रीक़ा व लेटिन अमरीका में कितने आज़ाद लोगों को दास बनाया गया, कितने परिवारों को तबाह व बर्बाद किया गया। इन्होंने विज्ञान को इस तरह हासिल किया।
इस आधार पर ज्ञान-विज्ञान की दिशा, नैतिकता, ईमान व अध्यात्म पर कण भर भी ध्यान दिए बिना पूंजी की ओर बढ़ने का नाम थी। यूरोप वाले उस वक़्त भी सभ्यता का दावा करते थे लेकिन उनका रवैया, विभिन्न क़बायली हमलों के दौरान सबसे पाश्विक क़बीलों से भी ज़्यादा पाश्विक था। ये जो कुछ मैं कह रहा हूं, नारा नहीं है। इनमें से हर एक बात का ठोस सुबूत, प्रमाण व सटीक दस्तावज़े मौजूद है कि ये लोग क्या करते थे, अलबत्ता अभी इस बारे में विस्तार से बताने का समय नहीं है। अगर मैं इनके कामों का सिर्फ़ छोटा सा हिस्सा आपके सामने बयान करता तो आप समझ जाते कि पूर्वी एशिया, अफ़्रीक़ा और दुनिया के अन्य स्थानों में इन्हीं यूरोप वालों व पश्चिम वालों ने ज्ञान-विज्ञान के साधनों से क्या क्या किया है। क्योंकि इनका लक्ष्य धन था, कोई नैतिकता मौजूद नहीं थी, इनका कोई धर्म नहीं था और इनका कोई ख़ुदा नहीं था।
हमें इस प्रकार का ज्ञान-विज्ञान नहीं चाहिए। यह ज्ञान जब प्रगति करता है और अपने चरम पर पहुंचता है तो वैसा हो जाता है जैसा आज इन पश्चिमी देशों में है, एटम बम बन जाता है, अपार ज़ुल्म बन जाता है, प्रजातंत्र की दृष्टि से दुनिया में सबसे बड़े प्रजातंत्र का दावा करने वाले देश, यानी अमरीका में प्रजातंत्र की तबाही बन जाता है, हर दिन बढ़ता वर्गभेद बन जाता है, एक धनवान व विकसित देश में फ़ुटपाथ पर सोने वाले करोड़ों लोग, ग़रीबी रेखा के नीचे करोड़ों लोग! इस ज्ञान-विज्ञान का कोई फ़ायदा नहीं है। हम इस प्रकार का ज्ञान-विज्ञान नहीं चाहते। न पैग़म्बरों की शिक्षाएं, न इस्लामी शिक्षाएं और न ही इंसानी ज़मीर हमें इस तरफ़ बढ़ाता है, इंसान को इसके लिए प्रेरित नहीं करता।
आयतुल्लाह ख़ामेनई
6 अक्तबूर 2010