14/01/2025
अमीरुल मोमेनीन की हस्ती को शिया-सुन्नी और इस्लामी मतों के बीच मतभेद की बुनियाद न बनाइये। अमीरुल मोमेनीन की हस्ती एकता का बिंदु है न कि फूट का। इमाम ख़ामेनेई 5 नवम्बर 2004
14/01/2025
अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की शख़्सियत के ख़ुबसूरत पहलुओं में से एक, इंसाफ़ है। उनकी ज़िंदगी और बातों में इंसाफ़ इतनी अहमियत रखता है कि अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की पूरी हुकूमत पर इसका प्रभाव पड़ा है।  इमाम ख़ामेनेई 7 जनवरी 1993
14/01/2025
कोई भी ख़ुद की हज़रत अली अलैहिस्सलाम से तुलना नहीं कर सकता लेकिन सभी उस चोटी की ओर बढ़ सकते हैं। अमीरुल मोमेनीन आदर्श हैं। इमाम ख़ामेनेई 21 मार्च 2001
13/01/2025
अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम सत्ता, हुकूमत और शासन के पूरे दौर में जो अल्लाह ने उनके अख़्तियार में दिया, समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग की चिंता में लगे रहे...ग़रीब के घर जाते हैं, यतीम बच्चे को अपने हाथ से खाना खिलाते हैं। इमाम ख़ामेनेई  27 दिसम्बर 1992
12/01/2025
अमीरुल मोमेनीन का राजनैतिक व्यवहार उनके आध्यात्मिक और अख़लाक़ी व्यवहार से अलग नहीं है; अमीरुल मोमेनीन की नीति में अध्यात्म और अख़लाक़ शामिल है, हक़ीक़त में उसका स्रोत हज़रत अली का अध्यात्म और उनका अख़लाक़ है। इमाम ख़ामेनेई 11 सितम्बर 2009
01/04/2024
अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की पूरी ज़िंदगी सरापा ख़ालिस जेहाद है। बचपन में इस्लाम लाने से लेकर 63 साल की उम्र में शहादत तक ज़िंदगी का एक भी लम्हा ख़ालिस जेहाद से ख़ाली नहीं। इस्लाम के इतिहास में इतनी सेवाएं करने वाली कोई और हस्ती नहीं है। इमाम ख़ामेनेई 20 मई 1987
01/04/2024
अमीरुल मोमेनीन ने हुकूमत क़ुबूल करने के लम्हे से मेहराबे इबादत में सर पर तलवार लगने तक एक दिन और एक लम्हा ऐसा नहीं गुज़ारा जिसमें आप उस हक़ और हक़ीक़त का मुतालबा करने से पीछे हटे हों जिसके लिए इस्लाम आया। न कोई रियायत, न तकल्लुफ़, न लेहाज़, न ख़ौफ़, न कमज़ोरी कुछ भी उनके आड़े नहीं आया। इमाम ख़ामेनेई 28 जुलाई 2007
31/03/2024
शबे क़द्र वह मौक़ा है जिसमें हम अपने दिलों को अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के अज़ीम मरतबे से परिचित कराएं और सबक़ लें। माहे रमज़ान की फ़ज़ीलत और इस महीने में नेक बंदों की ज़िम्मेदारियों के बारे में जो कुछ ज़बान पर आता है और बयान किया जा सकता है अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम उसका मुकम्मल नमूना और उन विशेषताओं का उदाहरण हैं।  इमाम ख़ामेनेई  19 सितम्बर 2008
27/12/2022
रवायतों में नज़र आता है कि हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के पास बस नबूवत व इमामत की ज़िम्मेदारी नहीं थी वरना रूहानी बुलंदी के एतेबार से उनमें और पैग़म्बर व अमीरुल मोमेनीन अलैहिमुस्सलाम में कोई फ़र्क़ न था। इससे औरत के बारे में इस्लाम के नज़रिए का पता चलता है। एक औरत इस मक़ाम पर पहुंच सकती है वह भी इस नौजवानी की उम्र में। इमाम ख़ामेनेई 29 नवम्बर 1993