इस्लाम के दुश्मनों की हमेशा यही इच्छा रही है कि मुसलमानों के दिलों को बेचैन रखें। इस्लाम के लंबे इतिहास में ऐसे बहुत से वाक़ए पेश आए हैं। इस्लाम से पहले भी पैग़म्बरे इस्लाम से पहले अल्लाह के अज़ीम पैग़म्बरों के संघर्ष के दौरान जो मोमिन ईमान की राह पर डटे रहे उन्होंने रूहानी सुकून हासिल कर लिया। यह रूहानी सुकून ही उनको पूरे अख़्तियार के साथ ईमान के रास्ते पर क़ायम रख सका और वो कभी बेचैन नहीं हुए और न ही अपनी राह से भटके, क्योंकि बेचैनी की हालत में सही राह पर क़ायम रहना दुश्वार हो जाता है। वह इंसान जिसे रूहानी सुकून हो, उसकी सोच सही रहती है, वह सही फ़ैसले करता है और सही क़दम उठाता है। ये सब अल्लाह की रहमतों की निशानियाँ हैं। “याद रहे ज़िक्रे इलाही से ही दिलों को इतमेनान नसीब होता है” (सूरए राद, आयत-28) यह अल्लाह का ज़िक्र और याद है जो हमारे दिलों को, हमारी दुनिया और ज़िन्दगी के तूफ़ानों में सुरक्षित रखती है, इसलिए अल्लाह की याद को ग़नीमत समझिए।
इमाम ख़ामेनेई
19/6/2009