तौबा यानी अल्लाह की जानिब वापसी। चाहे जिस बुलंदी पर इंसान पहुंच जाए, कमाल के जिस दर्जे पर भी पहुंच जाए उसे इस्तेग़फ़ार और तौबा की ज़रूरत रहती ही है। अल्लाह ने अपने नबी से फ़रमाया हैः अपने परवरदिगार की हम्द के साथ उसकी तसबीह करें और उससे मग़फ़ेरत तलब करें। (सूरए नस्र आयत नंबर 3) क़ुरआन में बार बार अल्लाह ने पैग़म्बर से फ़रमाया है कि इस्तेग़फ़ार कीजिए। हालांकि पैग़म्बर मासूम हैं। उनसे गुनाह हो ही नहीं सकता और वे कभी अल्लाह के हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते लेकिन उनसे भी अल्लाह कहता है कि इस्तेग़फ़ार कीजिए। हमें और आपको तो निश्चित तौर पर तौबा और इस्तेग़फ़ार की ज़रूरत है।
इमाम ख़ामेनेई
16 जनवरी 1998