उन लोगों के लिए जो बेकार बैठे हों और अपने मक़सद की राह में कोशिश न करते हों, लक्ष्य व मक़सद तक पहुंचने की कोई गैरंटी नहीं है। दुआ में अल्लाह से मांगना और चाहना शर्त है, हक़ीक़त में मांगना ज़रूरी है। यह दुआ (उस वक़्त) क़ुबूल होगी। अगर बड़े मक़सद की राह में आप दुआ के साथ अमल और संघर्ष करें तो दुआ के क़ुबूल होने की संभावना बहुत ज़्यादा है। अगर दुआ नियमित रूप से बार बार की जाए तो निश्चित तौर दुआ के क़ुबूल होने की संभावना बहुत ज़्यादा है। इमाम ख़ामेनेई 25/12/1998
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