क़ुरआन सुनना वाजिब व ज़रूरी काम है, अब या तो ख़ुद आयत की तिलावत कीजिए या फिर किसी और से क़ुरआन की तिलावत सुनिए।साल के दौरान कोई दिन ऐसा न गुज़रे जब आप क़ुरआन न खोलें और क़ुरआन की तिलावत न करें। तो क़ुरआन का सुनना पहली बात यह कि ईमान की वजह सेफ़रीज़ा है, दूसरे यह कि अल्लाह की रहमत के नाज़िल होने का ज़रिया है। इरशाद होता हैः और (ऐ मुसलमानो) जब क़ुरआन पढ़ा जाए तो कान लगा कर (तवज्जो से) सुनो और ख़ामोशहो जाओ ताकि तुम पर रहमत की जाए। (सूरए आराफ़, आयत-204) यानी क़ुरआन सुनना अल्लाह की रहमत के दर खोल देता है।
इमाम ख़ामेनेई
23/3/2023