आज पश्चिम की सभ्यता पतन का शिकार है, यानी हक़ीक़त में पतन की ओर बढ़ रही है। नरक की आग के मुहाने पर खड़ी है (सूरए तौबा, आयत-10) खाई के किनारे है। अलबत्ता समाज में बदलाव धीरे- धीरे आता है, यानी जल्दी महसूस नहीं होते, यहाँ तक कि ख़ुद पश्चिमी विचारकों ने इसे महसूस कर लिया है और ज़बान से कहने भी लगे हैं।  ये सब उम्मीद बंधाने वाले बिन्दु हैं, पश्चिमी सभ्यता, भौतिक सभ्यता है जो हमारे मुक़ाबले में है और पतन का शिकार है, यह भी हमारे लिए उम्मीद बंधाने वाले बिन्दु हैं और यह भी अल्लाह के अटूट वादों में से एक है। इमाम ख़ामेनेई 22/5/2019