हमारा समाज अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की परहेज़गारी की दिशा में आगे बढ़े। मतलब यह नहीं है कि हम अमीरुल मोमेनीन की तरह परहेज़गार बन जाएं। क्योंकि न हम बन सकते हैं न हमसे इसकी मांग की गयी है लेकिन हमको उन्हीं की राह पर चलना चाहिए यानी फ़ुज़ूलख़र्ची और एक दूसरे की देखादेखी से दूर रहना चाहिए। अफ़सोस कि हम फ़ुज़ूलख़र्ची का शिकार हैं। हम बरसों से इस बारे में मुसलसल नसीहत करते चले आ रहे हैं ख़ुद अपने आपको, अवाम को और दूसरों को बराबर समझाते रहते हैं और बार-बार कहते हैं, हमें आगे बढ़ना चाहिए और समाज में फ़ुज़ूलख़र्ची को कम करना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई
21/09/2016