योरोप में पुनर्जागरण के शुरू होने और मानववादी विचारों के फैलाव के साथ ही यूनिवर्सिटी का अर्थ भी बदल गया। यूनिवर्सिटी का रुख़ धार्मिक ज्ञानों से उन ज्ञानों की ओर मुड़ गया जो क़ानून, ग्रामर, राजनीति और खगोल शास्त्र जैसे दैनिक जीवन में सरगर्म रोल अदा करते हैं। पंद्रहवीं सदी के मध्य से योरोप की यूनिवर्सिटियों में मानववादी विचार और नए दर्शन शास्त्र को और बढ़ावा मिल गया और धीरे-धीरे वो इन इल्मी सेंटरों और दूसरे विचारों व ख़यालों पर छा गए। सत्रहवीं और अट्ठारहवीं सदी में योरोप के विचारकों और यूनिवर्सिटियों के शिक्षकों को एक बड़ी ज़िम्मेदारी मिली और वो धार्मिक पहलू से हट कर मानव जीवन के लिए नैतिक हदों की परिभाषा पेश करना और उनका निर्धारण था। पूरे इतिहास में सेक्युलर ह्यूमनिज़्म का बड़ा दावा, इंसान की बौद्धिक ताक़त पर भरोसा करके इंसानियत के मुद्दों के हल, इल्म व विज्ञान के क्षेत्र में तरक़्क़ी और मानव समाजों के कल्याण और कामयाबी के लिए धार्मिक क़ानून की ज़रूरत न होने का रहा है। पिछले कुछ बरसों में पूरी दुनिया में विद्वानों और यूनिवर्सिटियों के शिक्षकों ने तथाकथित मानवीय शिक्षा व विचारों की बुनियाद पर अनेक आइडियल समाजों का ख़ाका पेश किया है और उन तक पहुंच के लिए बहुत सारे रास्ते बताए हैं। दुनिया की आज की स्थिति पर एक नज़र डालने से इस बात में कोई शक नहीं रह जाता कि निम्नलिखित दो बाते सही हैं:

1 इंसान के ज्ञान में बेमिसाल इज़ाफ़ा हुआ है।

2 दुनिया की मौजूदा स्थिति उन ख़याली और आइडियल शहरों से मेल नहीं खाती जो कुछ लोगों ने ज़ेहन में बनाए थे।

सवाल ये है कि दुनिया में इल्म व साइस के लेहाज़ से तरक़्क़ी इंसानों से किए गए ज़मीन पर उस स्वर्ग के वादे को व्यवाहरिक क्यों नहीं बना सकी? क्यों कुछ मुल्कों की भौतिक तरक़्क़ी की क़ीमत बहुद सी दूसरी क़ौमों ने अपने विनाश व पिछड़ेपन की शक्ल में चुकायी है? क्यों उन आक्रमणकारी मुल्कों के भीतर वर्ग भेद और ग़रीबी बहुत ज़्यादा है?

पश्चिम के इल्मी लक्ष्य और दुनिया की मौजूदा स्थिति के बीच विरोधाभास को बयान करने के लिए शायद सबसे अच्छी मिसाल ग़ज़ा का मसला हो। पश्चिम में यूनिवर्सिटी ने हमेशा कोशिश की है कि धार्मिक शिक्षा केन्द्रों के विपरीत ख़ुद को सत्ता से अलग और स्वाधीन ज़ाहिर करे। ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के क़त्ले आम पर थोड़ा बहुत भी एतेराज़ इस बात के लिए काफ़ी था कि पश्चिम की मशहूर यूनिवर्सिटियां उन प्रोफ़ेसरों और स्टूडेंट्स को निकाल दें या सस्पेंड(1) कर दें जिन्होंने न्यूनतम मुतालेबा किया था यानी ग़ज़ा में युद्ध विराम का मुतालेबा किया था। इस तरह के काम साफ़ तौर पर ज़ायोनी हुकूमत और ग़ज़ा पर उसके हमले के लक्ष्य के सपोर्ट में किए गए थे।

इंसान के इल्म की एक शाखा यानी क़ानून बरसों से दुनिया की युनिवर्सिटियों में पढ़ाया जा रहा है। ये इल्म विश्व स्तर पर ख़ुद को मज़लूम समूहों का समर्थक बताता है जिन पर हमले होते हैं। हेग की अंतर्राष्ट्रीय अदालत, यूएन और इसी तरह के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय संगठन और विभाग इन्हीं क़ानूनों को पूरा करने और इन्हें लागू करने के लिए बनाए गए हैं। ग़ज़ा में ज़ायोनियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफ़ाए को रुकवाने में इन संगठनों की अयोग्यता ने इन क़ानूनों के अनुपयोगी व दिखावटी होने को दुनिया के लोगों के सामने पहले से ज़्यादा स्पष्ट कर दिया है। हेग की अंतर्राष्ट्रीय अदालत में ज़ायोनी हुकूमत के ख़िलाफ़ एक केस के नतीजे तक पहुंचने में कई महीने लग गए और नतीजा बहुत ही निराशाजनक था। यूएन सेक्युरिटी काउंसिल में भी अमरीका के लगातार वीटो ने ज़ायोनी हुकूमत के हाथों फ़िलिस्तीनियों के क़त्ले आम को रुकवाने की कोशिशों का मज़ाक़ बनाकर रख दिया है। फिर युद्ध विराम का प्रस्ताव पास होने के बाद भी ग़ज़ा के लोगों पर ज़ायोनी हुकूमत के हमलों को रुकवाने के लिए कोई भी व्यवहारिक क़दम नहीं उठाया गया।

इल्म की एक और शाखा, इंजीनियरिंग की है जिसने प्रकृति की ताक़त को कंट्रोल करने और उसका अख़्तियार इंसान के हाथ में देने के लिए सदियों से कोशिश की है और इस मैदान में पश्चिम की तरक़्क़ी का कोई भी इंकार नहीं कर सकता। इस शाखा से संबंधित इल्म ने इंसान को लंबी लंबी दूरियां थोड़े वक़्त में तय करने, आसमान में उड़ान भरने और मुख़्तलिफ़ तत्वों में मौजूद क्षमता से फ़ायदा उठाने की ताक़त दी है। पश्चिम बहुत ही कम वक़्त में बड़े पैमाने पर अमरीका और योरोप के हथियार ज़ायोनी हुकूमत तक पहुंचा देता है, लड़ाकू विमानों के ज़रिए ग़ज़ा के मुहल्लों को मिट्टी के ढेर में बदल देता है और ख़तरनाक बमों का इस्तेमाल करके घरों, अस्पतालों और स्कूल तथा कालेजों को एक लम्हे में तबाह कर देता है। अमरीकी यूनिवर्सिटियों के पढ़े हुए लोगों के हाथों बनाए गए बमों के ज़रिए ग़ज़ा की यूनिवर्सिटियों पर की गयी बमबारी, शायद पश्चिम के इल्म और उस इल्म के लक्ष्य के बीच पाए जाने वाले विरोधाभास की मुंह बोलती तस्वीर हो।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने 7 अप्रैल 2024 को स्टूडेंट्स से मुलाक़ात में कहाः अगर हम यूनिवर्सिटी को परिभाषित करना चाहें तो उसकी परिभाषा का मुख्य तत्व इल्म है। यूनिवर्सिटी के तीन मुख्य फ़रीज़े हैं। पहले ये कि विद्वान की तरबियत करे, दूसरे ये कि इल्म का प्रोडक्शन करे और तीसरे ये कि विद्वान की तरबियत और इल्म के प्रोडक्शन को दिशा दे। दुनिया की यूनिवर्सिटियां विद्वान की तरबियत करती हैं, इल्म का प्रोडक्शन भी करती हैं लेकिन इस तीसरे फ़रीज़ें में लड़खड़ा जाती हैं। नतीजा क्या होता है? नतीजा ये होता है कि उनके इल्म की तरबियत, इल्म का प्रोडक्शन और विद्वान की तरबियत का प्रोडक्ट दुनिया ज़ायोनी और साम्राज्यवादी ताक़तों के हाथों का खिलौना बन जाता है।

पश्चिम में धार्मिक नैतिकता के दायरे से इल्म के सेंटरों की दूरी इस बात का सबब बनी है कि ये सेंटर पूरी दुनिया में ताक़त और पूंजिपतियों का हथकंडा बन जाएं। शायद ग़ज़ा इस रास्ते पर पुनर्विचार का एक मौक़ा हो जिस पर पश्चिम की यूनिवर्सिटी पिछले 400 साल से चल रही है।

1. https://www.reuters.com/world/us/us-professors-suspended-probed-over-gaza-war-comments-2023-11-17/