बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

बहुत स्वागत है आप भाई बहनों का और मैं खास तौर पर उन ओहदेदारों का जो इस बैठक में मौजूद हैं (1)। डिप्टी प्रेसीडेंट जनाब मुख़बिर साहब (2) और दूसरे वज़ीर और ओहदेदारों से ज़ोर देकर कहता हूं कि हमारे भाइयों और हमारी बहनों ने जो बातें बयान की हैं उन पर ध्यान दिया जाए।

इस तरह की बैठकों का एक अहम फ़ायदा यही है कि आप सरकारी ओहदेदार, बिना किसी रुकावट के और सीधे तौर पर इंडस्ट्री और तेजारत के मैदान में काम करने वालों की ज़बान से उनकी राह की रुकावटों और परेशानियों को सुनते हैं। इन लोगों की बातों से जो मेरी समझ में आया वह यह है कि ओहदेदारों को दो अहम काम करने चाहिएं। मैं जनाब मुखबिर साहब और दूसरे लोगों से गुज़ारिश करता हूं कि वे इस पर ध्यान दें। एक तो मुल्क की इंडस्ट्री और खास तौर पर कुछ खास क़िस्म की इंडस्ट्रीज़ के लिए रोडमैप तैयार करने की बात है और दूसरी चीज़ है सही मैनेजमेंट और उन्हें चलाना। यक़ीनी तौर पर मेरी राय के बारे में सब को मालूम है। मैं आर्थिक मामलों में सरकारी इदारों के दख़ल के खिलाफ हूं लेकिन सरकारी निगरानी, मदद और देख-रेख का हामी हूं। यह काम ज़रूर होना चाहिए। इस बुनियाद पर स्ट्रैटेजिक रोडमैप और मैनेजमेंट बहुत ज़रूरी काम है। यहां पर हमारे आफ़िस के जो लोग बैठे हैं वे उन बातों को नोट करें जो हमारे दोस्तों ने हम से कही हैं और फिर मुझे दें ताकि उस पर कार्यवाही की जा सके।

दो साल पहले भी इसी तरह की यहीं पर एक बैठक थी। अभी कुछ हफ्तों पहले उस बैठक में मौजूद और अपनी राय रखने वाले कुछ दोस्तों ने मुझे ख़त लिखा और अपने कामों के बारे में मुझे बताया, अपनी कामयाबियों और नाकामियों के बारे में मुझे आगाह किया।

दो साल पहले की उस बैठक के बाद से अब तक ख़ुदा के शुक्र से उन्हें अच्छी कामयाबी मिली। अलबत्ता कुछ नाकामियां भी मिलीं जिनमें से कुछ की वजह तो यह रही कि उन्हें सरकारी संस्थाओं की तरफ़ से मदद नहीं मिली इस लिए वे लोग वो काम नहीं कर पाए जो करना चाहते थे। कुछ की वजह दूसरी चीज़ें थीं जैसे स्मगलिंग वग़ैरा। वैसे पाबंदियों का मामला तो अपनी जगह पर इन सब चीज़ों पर असर डालता ही है। उसने कामयाबियों की राह में हमेशा रोड़े अटकाए हैं।

तो मैं अपनी बात इस तरह से शुरु करता हूं कि हमारे मुल्क की इकोनॉमी दस साल पहले एक बहुत ही अहम और बड़ी जंग में फंसी हुम थी यानि इकोनॉमिक जंग थी। जो हमारी सामने था वह अमरीकी सरकार और युरोप और दूसरे इलाक़ों से उसके कुछ साथी थे। इन लोगों ने इस्लामी जुम्हूरिया के ख़िलाफ़ बाक़ायदा जंग शुरु कर दी थी। इसका एलान भी किया और सात बरसों के बाद यानि तीन साल पहले यह लड़ाई बहुत तेज़ हो गयी। दरअस्ल इकोनॉमी की तबाही तो एक भूमिका थी। वे चाहते थे कि इकोनॉमी को तबाह करके, ईरानियों को सरकार के सामने खड़ा कर दें और अपना नाजायज़ सियासी मक़सद इस तरह पूरा करें, दुश्मन का अस्ली मक़सद यह था। लेकिन उनका अंदाज़ा ग़लत निकला। मुझे बताया गया है, मैंने ख़ुद इस बारे में तहक़ीक़ नहीं की है, कि अमरीकियों ने ईरान की इकोनॉमी तबाह करने का वक्त भी तय कर दिया था। छे महीने। वे समझ रहे थे कि छे महीनों में ईरान की इकोनॉमी को खत्म कर देंगे। मैंने इस बारे में जांच नहीं की और मुझे नहीं मालूम लेकिन मुझे यह बताया गया है। मगर दुश्मन नाकाम रहा। छे महीनों के बजाए, दस बरस बीत गये और इन दस बरसों में हर दिन इस लड़ाई में तेज़ी आती गयी लेकिन हमारे मुल्क की इकोनॉमी और पैदावार का मोर्चा अपनी जगह पर खड़ा है, ज़िन्दा है। दुश्मन के सामने जो सिपाही डट गये वे आप लोग थे। इस पाक डिफ़ेन्स के अफ़सर मुल्क के कारख़ानों के मालिक और इंटरप्रिन्योर थे। सिपाही, उनके वहां काम करने वाले लोग थे। मज़दूर, इस मैदान में पाकीज़ा नीयत के साथ लड़ने वाले सिपाही थे। आप सब लोग, इकोनॉमी के मैदान में काम करने वाले सभी लोग इस कारनामे में शरीक हैं। यक़ीनी तौर पर कुछ नुक़सान भी हुए हैं जिस की तरफ़ में बाद में एक हल्का सा इशारा करुंगा।  

मेरी नज़र में अगर इन दस बरसों में सरकारी ओहदेदार, ज़्यादा साथ देते, ज़्यादा ध्यान देते तो हम और भी फ़ख़्र के लायक़ काम करते और आज जो हमारी हालत है उससे बेहतर हालत होती और इन बरसों में हमें जो नुक़सान हुए हैं सरकारी अफ़सरों की मदद की वजह से वह न होते।

मैं यहां पर इस बात पर भी ज़ोर दे रहा हूं कि बड़ी अच्छी बात होगी अगर आप ने अपनी जिन कामयाबियों का ज़िक्र यहां पर किया है वह आम लोगों तक भी पहुंचें। दुश्मन का एक काम, साइकोलॉजिकल वॉर भी है। इकोनॉमिक वॉर के साथ भी दुश्मन की तरफ से जारी एक अस्ली लड़ाई साइकोलॉजिकल वॉर भी है। सभी मैदानों में जिसमें इकोनॉमिक्स भी शामिल है। इस लिए बेहतर है कि आवाम को आप लोगों की कामयाबियों के बारे में पता हो, नेश्नल मीडिया को चाहिए कि वह कारख़ानों के मालिकों और इंटरप्रिन्योर्ज़ की ज़बान से उनकी कामयाबियों की बात लोगों तक पहुंचाएं, सरकारी ओहदेदारों की ज़बान से बहुत कुछ मीडिया में दिखाया और बताया जाता है लेकिन बेहतर यह है कि ख़ुद पैदावार करने वालों की ज़बान से इस मैदान में काम करने वालों की ज़बान से यह बातें बयान हों और सच्चाई बयान की जाए और आम लोगों को पता चले तो यह ज़्यादा बेहतर है।

हमने नुक़सान की बात की। पिछले दस साल की मुल्क की इकोनॉमिक हालत पर नज़र डाली जाए तो सच बात यह है कि उससे खुशी नहीं होती, जीडीपी में ग्रोथ, मुल्क में इन्वेस्टमेंट में ग्रोथ, महंगाई के आंकड़ों पर नज़र डालने से खुशी नहीं होती। मशीनों की सप्लाई के आंकड़े या फिर हाउसिंग जैसे मैदानों में आंकड़े खुशी देने वाले नहीं हैं। यह सच्चाई है। अगर मुल्क के ओहदेदार इन मैदानों में हालात बेहतर बना पाते तो आज हमारे पूरे मुल्क की हालत बेहतर होती। ज़ाहिर सी बात है कि इन सब कमियों का असर आम लोगों की ज़िंदगी पर पड़ा। यह जो हम आम लोगों की ज़िंदगी के बारे में फ़िक्रमंदी की बात करते हैं तो वह सब इन्ही वजहों से है। इन सभी परेशानियों की वजह सिर्फ पांबदियां नहीं हैं। यक़ीनी तौर पर पाबंदियों का असर रहा है लेकिन सिर्फ़ पाबंदियां नहीं हैं। इन परेशानियों का एक बड़ा हिस्सा, कुछ ग़लत फ़ैसलों या लापरवाही जैसी चीज़ों का नतीजा है जिससे बचा जा सकता था।

इकोनॉमी के मैदान के सभी एक्सपर्ट्स का यह कहना है चाहे वे ईरान के हों या फिर दूसरे मुल्कों के, वह सब यही कहते हैं कि हमारे मुल्क में बहुत कुछ है। मतलब इकोनॉमी के मैदान में आज हमारे मुल्क की जो हालत है हम उससे कई गुना बेहतर हालात बना सकते हैं। इसके लिए सब कुछ हमारे मुल्क में मौजूद है, हमारे पास बहुत कुछ है और गुंजाइश भी बहुत है जिससे मुल्क का दर्द रखने वाले मेहनती ओहदेदार फ़ायदा उठा सकते हैं। इकोनॉमी में इसके कामयाब नमूने भी मौजूद हैं। यही आप लोग, जिन लोगों ने यहां आकर अपनी बातें बतायी हैं, जिन दोस्तों ने बात की हैं वे कामयाब नमूने हैं, इन लोगों ने मुल्क की इन्हीं गुंजाइशों और सहूलतों का इस्तेमाल किया, ख़ुदा के शुक्र से हमारे पास कामयाब नमूने हैं।

इसी तरह वे कारख़ाने भी जिन्होंने पाबंदी ख़त्म होने का इंतेज़ार नहीं किया। उनकी बातों से यह भी एक चीज़ समझी जा सकती है। हालांकि इन लोगों ने खुल कर यह बात नहीं की लेकिन हक़ीक़त यह है कि इन में से किसी ने भी आगे बढ़ने के लिए पाबंदियों के ख़त्म होने का इंतेज़ार नहीं किया या यह कि इस इंतेज़ार में नहीं रहे कि किसी मुल्क में होने वाली बातचीत का नतीजा निकल आए तब कुछ करें! नहीं। इन लोगों ने अपना काम किया, अपनी मेहनत की और इसका उन्हें नतीजा भी मिला। यह वही बात है जो मैं बार-बार दोहराता हूं कि मुल्क की इकोनॉमी को दूसरों के रहमोकरम पर न छोड़ें। उन चीज़ों पर डिपेंड न करें जो हमारे हाथ में ही नहीं हैं बल्कि मज़बूत इरादा करें और अपनी ज़रूरतों को मद्देनज़र रखें। खुदा का शुक्र है इस लिहाज़ से हमारे पास बहुत कुछ है।

इस सिलसिले में मैंने मुल्क के ओहदेदारों से बहुत सी बातें कही हैं, जिन्हें मैं फिर से यहां दोहराना नहीं चाहता। मैं इस मैदान में एक्सपर्ट्स की राय से हमेशा फायदा उठाता हूं। यानि मैं अलग अलग मैदानों में जिनमें इकोनॉमी का मैदान भी शामिल हैं एक्सपर्ट्स की राय को अहमियत देता हूं, उनकी बातें सुनता हूं और उनकी राय से जो नतीजा निकलता है उसे लोगों को और मुल्क के ओहदेदारों को बताता हूं। 

अब आप यह सोचें कि अगर मुल्क में बिज़नेस का माहौल बेहतर बना दिया जाए, फुज़ूल के क़ानूनों को ख़त्म कर दिया जाए, रोज़गार के लिए लाइसेंस में आसानी पैदा की जाए, सिंगल-विन्डो सिस्टम लाया जाए जो किसी हद तक आ भी चुका है लेकिन अभी जैसा होना चाहिए वैसा नहीं हुआ है, या क़ानून इस तरह हों जिन में बार बार बदलाव न करना पड़े ताकि कारोबार करने वाला आदमी प्लानिंग कर सके, इसी तरह वह जो पैसा लगाए वह भी महफ़ूज़ रहे, इसी तरह पैदावार के मैदान में काम करने वालों का हौसला बढ़ाने का क़ानून भी हो, मुल्क में पैदावार के सिलसिले में नॉलेज बेस्ड कंपनियों से फ़ायदा उठाया जाए। करप्शन से मुक़ाबला किया जाए, मुल्क की पैदावार की मदद की जाए और स्मगलिंग का ठोस मुक़ाबला किया जाए तो क्या हालात होंगे? यह वह सब काम हैं जिन्हें करना बहुत ज़रूरी हैं और मैं मुल्क के ओहदेदारों से हमेशा ज़ोर देता हूं कि इस पर संजीदगी से काम करें, स्मगलिंग के ख़िलाफ़ कार्यवाही संजीदा, ठोस और बिना किसी रहम के होनी चाहिए। यह न हो कि फ़ुलां चीज़ अगर बहुत मशहूर है तो उसे मुल्क में ले आएं और इस्तेमाल करें! नहीं! मैंने कहा है कि अगर लगज़री सामान मुल्क में लाया जाए, वह भी गैर क़ानूनी तरीक़े से, स्मगलिंग के ज़रिए तो उसे मशीन में डाल कर बुल्डोज़ कर दीजिए। वर्ना अगर इसी तरह से इन सामानों को दूसरे रास्तों से बाज़ार तक पहुंचाया जाता रहेगा तो नतीजा वही होगा, मुल्क की इन्डंस्ट्री को नुक़सान पहुंचेगा और यह सब होगा। इसी तरह हमें अपने मुल्क की पैदावार के लिए इन्टरनैश्नल बाज़ार की ज़रूरत, बजट में घाटे और सरकारी हिसाब किताब में बेहतरी वे चीज़ें हैं जिन पर मैंने बार बार ज़ोर दिया है। मेरी कुछ बातों पर अमल किया गया और उसका नतीजा भी सामने आया लेकिन कुछ बातों पर ध्यान नहीं भी दिया गया।

क़ानूनों में कमी की जो बात थी उन पर सच में ध्यान नहीं दिया गया। मिसाल के तौर पर एक रिपोर्ट में मुझे बताया गया कि सन 2018 से से 2022 तक सिर्फ़ कस्टम डिपार्टमेंट में 1500 नये क़ानून बनाए गये। अब आप सोचिए कि कितने क़ानूनों पर अमल किया जाए? कितने क़ानूनों को पढ़ा जाए? इन सब चीज़ों को ख़त्म किये जाने की बहुत ज़रूरत है।

अब कुछ बातें प्रोडक्शन के बारे में। हालिया कुछ बरसों में हम ने पैदावार पर बहुत ज़ोर दिया। हमारा मानना है कि पैदावार का बहुत असर होता है। आप सब को भी अच्छी तरह से मालूम है लेकिन मैं भी कुछ बातें कहूंगा। पहली बात तो मैं यह कहना चाहता हूं कि पैदावार एक जेहाद है।    

' मैं गवाही देता हूं कि आपने अल्लाह की राह में जेहाद का हक़ अदा कर दिया।' (3)

हम हमेशा इमामों से यह कहते हैं कि मैं गवाही देता हूं कि आप ने अल्लाह की राह में सच्चा जेहाद किया। जेहाद। आज पैदावार, जेहाद है। क्यों? इसलिए कि हम ने जेहाद का मतलब बताते वक़्त बार बार यह कहा है कि जेहाद उस कोशिश का नाम है जो दुश्मन की कार्यवाहियों की रोक थाम के लिए की जाती है। हर कोशिश जेहाद नहीं है। जेहाद वह कोशिश है जो दुश्मन के हमले के ख़िलाफ़ हो।

जी हां आज हमारी इकोनॉमी पर हर तरफ़ से दुश्मनों का जो हमला  है वह साफ़ नज़र आ रहा है। दुश्मन ने, मुल्क की इकोनॉमी को घुटनों पर लाने के लिए दो तरफ़ से कोशिश की थी। एक तो तेल और गैस का मैदान था जो मुल्क के फारेन इक्सचेंज का सब से बड़ा ज़रिया समझा जाता था। और दूसरी तरफ ट्रेडिंग थी। मतलब उनकी कोशिश  थी कि फारेन करेन्सी के सब से बड़े ज़रिए से मुल्क को कुछ न मिले और इसी के साथ दूसरे मुल्कों से ईरान की ट्रेड को भी रोक दिया जाए ताकि ईरान के लिए परेशानियां पैदा हों और पाबंदी अपना काम कर जाए। यानि ईरान की पैदावार, खत्म हो जाए, घुटने टेक दे बल्कि पूरी तरह से खत्म हो जाए। इसका तो यही मतलब है न! जब आप के पास फ़ारेन करेन्सी न हो, गैर मुल्की खरीदार न होंगे तो फिर पैदावार का कोई मतलब नहीं रह जाता। उनका मक़सद यह था। तो दुश्मन के इस मक़सद के सामने, इस दुश्मनी के सामने जो भी डट कर खड़ा होगा या कोई काम करेगा वह दरअस्ल जेहाद करेगा। इस बुनियाद पर इस बात पर ध्यान दें कि इस तरह से भी काम किया जाता है। अगर आप की नीयत मुल्क की ख़िदमत, लोगों की ख़िदमत और अल्लाह के लिए काम करना हो तो यह सब से बड़ी इबादत है जो आप कर रहे हैं। वैसे अच्छी बात यह है कि दुश्मन, पैदावार के मोर्चे को ख़त्म नहीं कर सका। जी हां न ही वह लोगों की ज़िदंगी को मुश्किल कर पाया, कुछ नुक़सान तो उसने पहुचांया लेकिन इतने बरसों में वह मुल्क में पैदावार के मोर्चे को तबाह करने में नाकाम रहा जिसका ठोस नमूना आप लोग पेश कर रहे हैं। अच्छी बात तो यह है कि आज ख़ुद दुश्मन यह मान रहा है कि ज़्यादा से ज़्यादा दबाव की अमरीकी पालीसी, अमरीका की शर्मनाक हार की वजह बनी है। यह अमरीकी फारेन मिनिस्ट्री के लोगों के बयान हैं। अभी कुछ दिन पहले ही कहा है कि ईरान के ख़िलाफ़ ज़्यादा से ज़्यादा दबाव की अमरीकी पालीसी शर्मनाक हार में बदल चुकी है, यह उनका कहना है। ख़ुदा का शुक्र है। यह मुल्क में की जाने वाली कोशिशों की वजह से है। दरअस्ल आप कारखानों के मालिकों और काम करने वालों ने दुश्मन को हार मानने पर मजबूर किया है।

एक बात यह भी है कि मैंने पिछले साल, पैदावार में उछाल की बात की थी (4)। पैदावार में तेज़ी के साथ तरक़्क़ी बहुत अहम है क्योंकि अगर सच में हम पैदावार में उछाल लाने में कामयाब हो गये तो मुल्क की इकोनॉमी के सभी मैदानों में तरक़्क़ी नज़र आएगी, बड़ा बदलाव आएगा, पैदावार इस तरह की चीज़ है। मतलब टिकाऊ रोज़गार पैदा होगा, बेरोज़गारी में कमी आएगी, एक्सपोर्ट बढ़ेगा, मुल्क को फ़ारेन करेन्सी मिलेगी, महंगाई कम होगी और इन सब के साथ ही साथ मुल्क इकोनॉमी के मैदान में अपने पैरों पर खड़ा होगा और यह मुल्क की ताक़त की वजह है।

दुनिया भर के मुल्क इकोनॉमी के मैदान में अपने पैरों पर खड़े होने पर फ़ख़्र करते हैं। अपनी इकोनॉमी की ताक़त पर इतराते हैं और उनकी इज़्ज़त बढ़ती है। मज़बूत इकोनॉमी मुल्क की इज़्ज़त और सेक्यूरिटी की वजह बनती है। इस से मुल्क में भरोसा बढ़ता है और इकोनॉमी बाहर या मुल्क के अंदर से लगने वाले झटकों के सामने मज़बूती से खड़ी रहती है। हम ने “रेज़िस्टेन्स इकोनॉमी” की जो पालीसी बनायी है उस में इन सब चीज़ों पर ध्यान दिया है (5)।

इस सिलसिले में एक और बात क्वालिटी की है। हम जो पैदावार की बातें करते हैं तो हमारा मक़सद सिर्फ़ बहुत ज़्यादा पैदावार नहीं होता बल्कि क्वालिटी अस्ली चीज़ है। पैदावार की क्वालिटी को एक बुनियादी उसूल के तौर पर देखा जाना चाहिए। क्योंकि इस तरफ़ से लापरवाही नहीं की जा सकती। यह जो मुल्क में प्रोडक्शन की इतनी मदद की जाती है, टैक्स वग़ैरा में कमी या बैंक की तरफ़ से दी जाने वाली अमली सहूलतें हैं या फिर मुल्क की पैदावार की मदद की ज़रूरत पर जो मेरी या दूसरे ओहदेदारों की तरफ़ से बार बार ज़ोर दिया जाता है और जिसका असर भी होता इन सब चीज़ों का नतीजा यह होना चाहिए के क्वालिटी में बेहतरी पैदा हो। इसी तरह तकनीक में भी बेहतरी पैदा होनी चाहिए। तकनीक भी बहुत अहम चीज़ है लेकिन फिलहाल मैं क्वालिटी की बात करुंगा जिसे बेहतर होना चाहिए।

मुल्क में बनाये जाने वाले सामानों के बारे में अफ़सोस है कि हम यह देख रहे हैं कि क्वालिटी पर ध्यान नहीं दिया जाता, यह बहुत बुरी बात है। इतने बरसों से मुल्क में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की मदद की गयी लेकिन गाड़ियों की क्वालिटी अच्छी नहीं है। लोगों को शिकायत है, शिकायत दुरुस्त है, लोगों का कहना सही है, मतलब लोग जो एतेराज़ कर रहे हैं वह सही है। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री आम लोगों को ख़ुश करने में नाकाम रही है। इस लिए क्वालिटी का मामला सब से ऊपर है। अब अगर इतनी मदद का क्वालिटी में बेहतरी के लिए इस्तेमाल न किया बल्कि क़ीमत बढ़ाने के लिए ग़लत फ़ायदा भी उठाया जाए, क्वालिटी ऊपर न जाए बल्कि क़ीमत ऊपर चली जाए तो यह बहुत बुरी बात है।

मुझे घरेलू सामान के मैदान में काम करने वाले ज़िम्मेदारों से शिकायत है। हम ने इन कारख़ानों की मदद की, उनका नाम लिया, लेकिन अब सुना कि कुछ कारख़ानों के सामानों की क़ीमत दोगुना बढ़ गयी है, क्यों? सपोर्ट का इस तरह ग़लत इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। अब अगर हम इस तरह से क्वालिटी में बेहतरी पैदा नहीं करेंगे तो फिर इन्टरनेशनल मार्केट में जाने की उम्मीद कैसे रख सकते हैं? क्वालिटी का बहुत असर होता है यह तो रही एक बात।  

पैदावार के मैदान में दूसरी बात यह है कि मुल्क को रोज़गार पैदा करने वाले कामों पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। कुछ चीज़ें मुल्क के लिए बहुत ज़्यादा अहम हैं और मुल्क की बड़ी ज़रूरत भी। मिसाल के तौर पर ऑयल इंडस्ट्री या स्टील इंडस्ट्री, वग़ैरा यह बहुत अहम हैं लेकिन जिस तरह दूसरे मैदानों में रोज़गार पैदा होते हैं इनमें नहीं होते। यक़ीनी तौर पर इस तरह की बुनियादी इन्डस्ट्रीज़ पर ध्यान देना ज़रूरी है, लेकिन रोज़गार पैदा करने वाले कामों से लापरवाही एक बड़ा मसला है जो हल होना चाहिए। सरकारी संस्थाओं और बैंकों को कुछ करना चाहिए कि पैदावार सही तौर पर रोज़गार पैदा करने की ओर बढ़े क्योंकि रोज़गार का मामला, मुल्क के लिए बहुत अहम मामला है। यही अहम इन्डस्ट्रीज़ जो हैं वह भी इस तरह काम कर सकती हैं कि रोज़गार पैदा हो। यानी अपने आसपास छोटे छोटे काम का माहौल बना सकती हैं जिससे रोज़गार पैदा हो। मिसाल के तौर पर ऑयल इंडस्ट्री जो है उसके तहत छोटी इन्डस्ट्रीज़ होती हैं जिसकी एक मिसाल पेट्रोकेमिकल के कारखाने हैं जिसका क़ानून दो साल पहले पार्लियामेंट में पास हो चुका है। उस वक्त़ की सरकार को कानूनी तौर नोटीफ़िकेशन भी दे दिया गया है लेकिन अफसोस की बात है कि उस पर ध्यान नहीं दिया गया। उसे लागू किया जाना चाहिए। इस तरह लोगों के कम पैसे रोज़गार के मैदान में लगते हैं और रोज़गार भी पैदा होता है। इस तरह की सूरत स्टील इन्डस्ट्री जैसे दूसरे मैदानों में भी है। बैंकों और सरकारी मदद को इस तरफ़ आगे बढ़ना चाहिए और रोज़गार पैदा करने पर ज़्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए।

एक दूसरी बात यह भी है कि इन बरसों में हमने नॉलेज बेस्ड इन्डस्ट्री पर ताकीद की। बार-बार कहा गया है, मदद की गयी है। अच्छा काम भी था मतलब कई हज़ार नॉलेज बेस्ड कंपनियां और इन्डस्ट्रीज़ बनीं। इस मैदान में बहुत अच्छे काम किये गये हैं। छोटे-बड़े कारख़ाने बनाए गये हैं। लेकिन हम ने बड़ी इन्डस्ट्रीज़ को नॉलेज बेस्ड बनाने की तरफ़ से लापरवाही की। तेल की इन्डस्ट्री को नॉलेज बेस्ड बनाया जाना चाहिए। हम इस मैदान में तकनीकी लिहाज़ से पीछे हैं। इलाक़े के बहुत से मुल्क तेल निकालने और इस में इस्तेमाल होने वाली तकनीक के मामले में हम से बहुत आगे हैं, हम इस मैदान में पीछे हैं।  

तो अब पिछड़ेपन को कौन दूर करेगा? किस से मदद ली जाए? क्या ज़रूरी है कि दूसरे मुल्क की कोई कंपनी तकनीक लेकर आए? नहीं, मेरी यह राय नहीं है। आप लोग देखते ही हैं कि बाहर की कंपनियां किस तरह से काम करती हैं। या तो आती ही नहीं या आती हैं तो ईमानदारी से काम नहीं करतीं या फिर आती हैं और बीच में ही कोई बहाना बना कर काम छोड़ कर चली जाती हैं। वैसे मैं मुल्क के अंदर बाहरी कपंनियों के काम करने का सिरे से मुख़ालिफ़ नहीं हूं लेकिन हमें चुनना होगा। मेरा यह मानना है कि मुल्क के अंदर माहिर लोग यह काम हमारे लिए कर सकते हैं। मेरा तो यही नज़रिया है। मेरी नज़र में अब अगर तेल के मैदान के ज़िम्मेदार, मुल्क के नौजवानों से अपील करें, उनकी मदद मांगें और हमारे पढ़े-लिखे और माहिर लोगों से अपनी ज़रूरत बताएं तो यक़ीनी तौर पर यह नौजवान बहुत से मामलों को हल कर देंगे। इसके बहुत से नमूने हम ने बहुत क़रीब से देखे हैं। मिसाल के तौर पर कुछ नौजवान हमारे पास आए और उन्होंने कहा कि तेल के मैदान में हम यह काम कर सकते हैं। हम ने उन्हें ऑयल मिनिस्ट्री भेज दिया, एक दो साल पहले की बात है, कोरोना से पहले की बात है। इन लोगों ने बड़े अहम काम किये और ऑयल मिनिस्ट्री के उस वक्त के ज़िम्मेदारों ने शुक्रिया भी अदा किया और हमें बताया कि इन नौजवानों ने हमारे लिए बड़े-बड़े काम किये। हमें यह नहीं समझना चाहिए कि ऑयल इंडस्ट्री जैसे बड़े-बड़े मैदानों में तकनीक में तरक़्क़ी सिर्फ़, बाहर की कंपियों की मदद से ही हो सकती है! जी नहीं, हमारे नौजवान साइटिंस्टों से काम करने को कहिए, उन्हें अपनी मदद से हौसला दिलाइए तो आप देखेंगे कि वह सब कुछ कर सकते हैं। अच्छे से अच्छा सामान तैयार कर सकते हैं। मेरी राय यह है। जहां भी और जब भी नौजवानों पर भरोसा किया गया है, जब भी उन्हें कोई काम सौंपा गया है वहां उन्होंने नाम रौशन किया है। वाक़ई बड़ा कारनामा अंजाम दिया है। सभी मैदानों में, कोरोना वैक्सीन से लेकर सटीक निशाना लगाने वाले मिसाइलों तक। कोरोना वैक्सीन के सिलसिले में बेहतरीन वैक्सीन बनायी और मिसाइल के मैदान में भी बेहतरीन निशाना लगाने वाले मिसाइल बनाए। नैनो तकनीक में भी हम दुनिया में आगे रहने वालों के साथ हैं। स्टेम सेल्ज़ के मैदान में भी उस वक़्त नाम कमाया जब इस बेहद अहम मैदान में काम करने वाले मुल्कों की तादाद गिनी चुनी थी। बायो टेक्नालाजी में भी अहम काम किये। मेरी नज़र में हमारे नौजवान बहुत से काम कर सकते हैं। हमें उनकी क़द्र करना चाहिए और उन्हें ज़िम्मेदारी सौंपनी चाहिए। क्यों हम यह समझें कि वह तेल के मैदान में बड़े और अहम काम नहीं कर सकते? क्यों? वह कर सकते, यक़ीनी तौर पर यह काम कर सकते हैं। अगर उन्हें काम सौंपा जाए, उनकी मदद की जाए तो बड़े-बड़े काम कर सकते। यहां पर एक और बात है वैसे यह बात मैं पहले भी कई बार कह चुका हूं लेकिन आज चूंकि यहां पर सरकारी ओहदेदार मौजूद हैं इस लिए मैं फिर अपनी बात दोहराता हूं कि बैंकों से दिये जाने वालो लोन को प्रोडक्शन की तरफ ले जाइए। बैंकों को यह कहिए, बैंकों को यह ज़िम्मेदारी सौंपिए, रिज़र्व बैंक इस सिलसिले में संजीदगी से काम कर सकता है। हमारे मुल्क में लिक्विडिटी बढ़ने और जीडीपी ग्रोथ में इतना फर्क़ क्यों है? क्यों? क्यों लोन को इस तरह इस्तेमाल किया जाए कि लिक्विडिटी बढ़ जाए और मुल्क की जीडीपी पर उसका असर हो जाए? इस हालत को बदलना होगा और यह काम मुल्क के सरकारी ओहदेदारों को करना होगा। यह काम हम जनाब मुख़बिर साहब से जो खुदा के शुक्र के काफ़ी माहिर आदमी हैं और इस मैदान में मुल्क के दूसरे ओहदेदारों से उम्मीद करते हैं कि इस काम पर ध्यान देंगे। यानी बैंकों के साथ काम करने के लिए यह शर्त रख दें कि वह पैदावार के लिए लोन दें और इस काम पर रिज़र्व बैंक की निगरानी का यक़ीनी तौर पर असर होगा। यह बहुत ही अहम चीज़ है। यह भी एक बात थी।

एक और बात खेती-बाड़ी के बारे में है। यहां पर ग्रीन हाउस खेती के बारे में बातें की गयीं। कुछ वीडियो और फ़ोटो भी दिखाए गये जो अहम थे। जो बातें भी बतायी गयीं वह दिलचस्पी वाली थीं। बिल्कुल, ग्रीन हाउस के तरीक़े पर खेती बहुत अहम है लेकिन ग्रीन हाउस के तरीक़े की खेती से मुल्क को नहीं चलाया जा सकता। हमारे पास मिट्टी है, ज़मीन है, पानी है हमें सही इस्तेमाल का तरीक़ा तलाश करना चाहिए। हमें मिट्टी की बर्बादी को रोकना चाहिए, पानी की बर्बादी को रोकना चाहिए। पानी बर्बाद किया जाता है। मैं कुछ लोगों को जानता हूं जो मिट्टी और पानी के सही इस्तेमाल के बारे में प्रोजेक्ट और प्रपोज़ल रखते हैं जिन्हें कम से कम आज़माया तो जा सकता है। उनकी बातें सुनना चाहिए, उनकी मदद लेनी चाहिए ताकि हम अपने मुल्क में खेती को आगे बढ़ाएं और उसे नॉलेज बेस्ड बना दें। हमारे मुल्क में खेती बाड़ी के मैदान में डिग्री लेने वालों की कमी नहीं है। मैंने एक बार एक शहर का दौरा किया था तो वहां मुझे बताया गया कि इस शहर में खेती बाड़ी में डिग्री लेने वाला कोई भी व्यक्ति बेरोज़गार नहीं है। उनकी तादाद भी बहुत ज़्यादा थी। मुझे बताया गया कि हमारे यहां शहर में एग्रीकल्चर में डिग्री लेने वाले बहुत लोग हैं लेकिन कोई भी बेरोज़गार नहीं है, इन सब को खेतों और और खेती बाड़ी के अलग अलग मैदानों में नौकरी मिल गयी और किसान उनसे राय लेते हैं। मतलब यह कि उन्हें इसका फायदा नज़र आता है और इस से फ़ायदा होता भी है। हमें खेती बाड़ी में तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ाना चाहिए और पानी में सच्चाई के साथ बचत करना चाहिए, यह भी एक बात थी।

वह जो शुरु में मैं ने कहा था कि स्ट्रैटेजिक रोडमैप, इन्डस्ट्री का स्ट्रैटेजिक रोडमैप बहुत अहम है। इसपर ध्यान दीजिए। हमें एक दस्तावेज़ बनाने की ज़रूरत है। मुल्क के लिए इन्डस्ट्री का स्ट्रैटेजिक रोडमैप बनाइए और उसे क़ानून की शक्ल दीजिए। एक दोस्त ने अभी कहा भी कि सरकारों के आने जाने से प्रोग्राम न बदले जाएं। अब अगर एक कानूनी दस्तावेज़ बन जाए तो बरसों तक उसे इस्तेमाल किया जा सकता है। और भी बहुत सी बातें हैं लेकिन यह बैठक लंबी हो गयी और वक़्त भी खत्म हो गया है। अल्लाह आप सब को तौफीक़ दे और मदद करे। मैं उन सभी लोगों का जो पैदावार के मैदान में काम करते हैं दिल से शुक्रिया अदा करता हूं और अपने उन भाइयों से जो सरकार में हैं, अलग अलग संस्थाओं में हैं या फिर पार्लियामेंट में और इस सिलसिले के कमीशनों में हैं उनसे अपील करता हूं कि इस अहम मुद्दे पर खास ध्यान दें, बहुत ध्यान दें और इस राह की रुकावटों को दूर करें।

इस साल को हम ने “प्रोडक्शन को सपोर्ट करने और रुकावटें दूर करने वाला साल” कहा है (6)। मदद एक काम है लेकिन मेरे ख़याल में रुकावटें दूर करना ज़्यादा बड़ा काम है। मतलब, पैदावार की राह में जो रुकावटें हैं उन्हें दूर कीजिए, आप दूर कर सकते हैं और खुदा का शुक्र है सरकारी ओहदेदार काम भी कर रहे हैं। मैं देख रहा हूं कि वाक़ई वे लोग अच्छी कोशिश कर रहे हैं। यह कोशिशें जारी रखिए और मुल्क के ज़मीनी हालात के मुताबिक कोशिश कीजिए और रुकावटों को दूर कीजिए। इन्शाअल्लाह बहुत जल्द इन कोशिशों का असर लोगों के अंदर महसूस किया जाएगा। ख़ुदा से दुआ है कि आप सब को वह कामयाबी दे और इमाम खुमैनी और  हमारे शहीदों पर रहमत करे और ईरान और हमारे मुल्क के ओहदेदारों पर अपनी बरकतें नाज़िल करे।

वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू।

 

  1. मुलाक़ात के शुरु में पैदावार के मैदान में काम करने वाले 14 लोगों ने अपनी बात रखी।
  2. जनाब मोहम्मद मुखबिर सीनियर वाइस प्रेज़ीडेंट
  3. मिस्बाहुल मुतहज्जिद व सेलाहुल मुतअब्बिद जिल्द 2 पेज 738
  4. 20 मार्च 2020, नये हिजरी शम्सी साल की शुरुआत में की जाने वाली तक़रीर
  5. मुल्क की पालिसियों का एलान 18 फ़रवरी 2014
  6.  20 मार्च 2021 नये हिजरी शम्सी साल की शुरुआत में की जाने वाली तक़रीर