दुनिया पर जिस चीज़ का राज था, वह वर्चस्ववादी व्यवस्था थी। वर्चस्ववादी व्यवस्था का क्या मतलब? यानी दुनिया को दो भागों में बांट दिया जाता है। एक भाग, वर्चस्ववादियों का और दूसरा भाग वर्चस्व को स्वीकार करने वालों का। वर्चस्ववादी को हावी होना चाहिए, उसकी नीति को भी, उसकी संस्कृति को भी, उसकी अर्थव्यवस्था को भी। वर्चस्व स्वीकार करने वालों को वर्चस्ववादी के सामने सिर झुकाए रहना चाहिए। दुनिया के देशों को वर्चस्ववादी और वर्चस्व स्वीकार करने वाले जैसे दो हिस्सों में बांट दिया जाता था, यह दुनिया में एक प्रचलित प्रथा थी। दुनिया को बांट दिया गया था, दुनिया का एक भाग अमरीका के हाथ में और एक भाग उस समय के सोवियत यूनियन के हाथा, एक हिस्सा दूसरे दर्जे की शक्तियों के हाथ में भी था जो इनके पिट्ठू थे, दुनिया की हालत यह थी। इस्लामी गणराज्य, इस्लामी व्यवस्था और इस्लामी क्रांति ने इस व्यवस्था को ठुकरा दिया। यह साम्राज्य की ज़िंदगी की सबसे अहम नस थी, वर्चस्ववादी व्यवस्था की प्रथाएं, साम्राज्य के जीवन की नसें थीं, साम्राज्य का जीवन इसी पर निर्भर था, इस्लामी गणराज्य ने इसे ही ठुकरा दिया, इस्लामी व्यवस्था ने इसे ठुकरा दिया, ये लोग उसके मुक़ाबले में खड़े हो गए। अलबत्ता इसके लिए वह हमेशा कोई न कोई बहाना बनाते थे। कभी मानवाधिकार का मामला, कभी विभिन्न रूपों में धर्म के अत्यधिक प्रभुत्व को बुरा बताना, कभी परमाणु मामला, कभी मीज़ाइल की समस्या, कभी इलाक़े में उपस्थिति की बात, ये सब बहाने हैं, अस्ल बात यह है कि यह इस्लामी व्यवस्था, वैश्विक वर्चस्ववादी व्यवस्था का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं है और वर्चस्ववाद या वर्चस्व स्वीकार करने में उनका साथ देने के लिए तैयार नहीं है। इस्लामी व्यवस्था डटी हुई है, वह ज़ुल्म के ख़िलाफ़ है, वर्चस्ववाद की विरोधी है।