इन दिनों जो नीतियां चल रही हैं, यानी हालिया हफ़्ते में ज़ायोनी सरकार के भीतर जो नीति चल रही है, उसे अमरीकी तय कर रहे हैं, मतलब यह कि पॉलिसी मेकर वो हैं और जो यह काम हो रहे हैं, वो अमरीकियों की नीतियों के तहत हैं।
इमाम ख़ामेनेई
17 अक्तूबर 2023
यह जो आप देख रहे हैं कि अमरीका के राष्ट्रपति, ज़ालिम व दुष्ट मुल्कों ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी के राष्ट्राध्यक्ष एक के बाद एक वहाँ जा रहे हैं! इसकी वजह क्या है? वजह यह है कि वो देख रहे हैं कि (क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन) बिखरता जा रहा है।
अगर आप देखें कि वह राह जिस पर आप चल रहे हैं, कुफ़्फ़ार उससे ख़ुश होते हैं, तो जान लीजिए कि वह रास्ता ‘वो काफ़िरों पर सख़्त हैं’ वाला रास्ता नहीं हैं, तो आप पैग़म्बरे इस्लाम के साथ नहीं हैं, पैग़म्बर के हमराह नहीं हैं।
इमाम ख़ामेनेई
12/09/2023
इस (ग़ज़ा के) मसले में अमरीका यक़ीनी तौर पर अपराधियों का भागीदार है। यानी इन अपराधों में अमरीका के हाथ कोहनियों तक मज़लूमों, बच्चों, बीमारों, औरतों के ख़ून में डूबे हुए हैं।
बमबारी फ़ौरन रुकना चाहिए। मुसलमान क़ौमों में क्रोध है। बहुत ज़्यादा ग़ुस्से में हैं। बहुत सी सूचनाएं हैं जो हमें यह बताती हैं कि ज़ायोनी सरकार के भीतर जो नीति चल रही है, उसे अमरीकी तय कर रहे हैं। अमरीकी अपनी ज़िम्मेदारी पर ध्यान दें, वो जवाबदेह हैं।
फ़िलिस्तीन के मामले में जो चीज़ पूरी दुनिया की नज़रों के सामने है वह क़ाबिज़ सरकार के हाथों नस्ली सफ़ाए का जुर्म है। यह पूरी दुनिया देख रही है। अब तक ग़ज़्ज़ा के कई हज़ार फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं, इन्हीं कुछ दिनों में। आज की क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार पर निश्चित तौर पर मुक़दमा चलाया जाना चाहिए।
यह काम, ख़ुद फ़िलिस्तीनियों का है, सूझ बूझ रखने वाले रणनीतिकार, बहादुर नौजवान, जान हथेली पर रख कर घूमने वाले जवानों ने बहादुरी की यह दास्तान लिखी है और इन्शाअल्लाह यह कारनामा, फ़िलिस्तीन को छुटकारा दिलाने की राह में एक बड़ा क़दम होगा।
इस्राईल एक मुल्क नहीं, बल्कि फ़िलिस्तीनी क़ौम और दूसरी मुसलमान क़ौमों के ख़िलाफ़, आतंकवाद की एक छावनी है। इस बर्बर सरकार के ख़िलाफ़ जद्दोजेहद, हक़ीक़त में ज़ुल्म के ख़िलाफ़ संघर्ष और आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग है और यह सबका सामूहिक फ़रीज़ा है।
दुश्मन का यह अंदाज़ा भी ग़लत है कि अगर वह विक्टिम कार्ड खेलेगा तो इस तरह वो अपने अपराधिक हमले जारी रख सकेगा। यक़ीनी तौर पर इस्लामी दुनिया को इन अपराधों के सामने चुप नहीं रहना चाहिए, प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए।
इस ज़ालिम हुकुमत ने फ़िलिस्तीनी औरतों, मर्दों, बच्चों, बूढ़ों पर रहम नहीं किया, मस्जिदुल अक़्सा के सम्मान का ख़्याल नहीं रखा, उसने ज़ायोनी कालोनियों में रहने वालों को पागल कुत्तों की तरह फ़िलिस्तीनियों पर छोड़ दिया, नमाज़ियों को पैरों तले रौंदा गया, तो इतने ज़ुल्म और अपराधों के मुक़ाबले में एक क़ौम क्या करे?
यह आफ़त ख़ुद ज़ायोनियों ने अपनी हरकतों से ख़ुद अपने सरों पर नाज़िल की है। जब ज़ुल्म और अपराध हद से गुज़र जाएं, जब दरिंदगी अपनी हद पार कर ले तो फिर तूफ़ान के लिए तैयार रहना चाहिए।
जैसा कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने क़ाबिज़ हुकूमत को कैंसर कहा है, अल्लाह के करम से इंशाअल्लाह निश्चित तौर पर फ़िलिस्तीनी अवाम के हाथों और रेज़िस्टेन्स फ़ोर्सेज़ के हाथों इस कैंसर को जड़ से काट दिया जाएगा।
इमाम ख़ामेनेई
ज़ायोनी हुकूमत ग़ुस्से से भरी हुयी है, सिर्फ़ हमारे सिलसिले में ही नहीं, मिस्र, सीरिया और इराक़ से भी द्वेष रखती है, क्यों? क्योंकि “नील से फ़ुरात तक” का उनका लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। क़ुरआन कहता है कि ग़ुस्से से मर जाओ। यही होगा भी, वो मर रहे हैं।
इमाम ख़ामेनेई
इस्लामी जुम्हूरिया का निश्चत स्टैंड यह है कि जो सरकारें ज़ायोनी हुकूमत से संबंध बहाल करने का जुआ खेल रही हैं, नुक़सान उठाएंगी। यूरोपियों के शब्दों में हारने वाले घोड़े पर शर्त लगा रही हैं।
पवित्र इस्लामी शरीयत में सिर्फ़ खाने की ज़रूरत के तहत शिकार की इजाज़त है। शिकार के सफ़र में नमाज़ पूरी पढ़नी है; यानी सफ़र, हराम सफ़र है; इसका यह मतलब हुआ।
आज इस्लाम से दुश्मनी, पहले से कहीं ज़्यादा ज़ाहिर है, जिसका एक जाहेलाना नमूना, क़ुरआन मजीद का अनादर है जो आपकी नज़रों के सामने है कि एक जाहिल बेवक़ूफ़ खुल्लम खुल्ला यह हरकत कर रहा है। अस्ल बात, पर्दे के पीछे मौजूद तत्वों की है। वो सोचते हैं कि इस तरह की हरकतों से क़ुरआन को कमज़ोर कर सकते हैं, यह उनकी ग़लतफ़हमी है।
इमाम ख़ामेनेई
पैग़म्बरे इस्लाम का वजूद कहकशां जैसा है। इसमें महानता के हज़ारों बिन्दु पाए जाते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम जैसी बेमिसाल शख़्सियत की ज़िन्दगी, इस्लामी इतिहास के हर दौर के लिए नमूना व पाठ है, हमेशा के लिए आइडियल है।
हम दुनिया को यह सिखाना चाहते हैं, हम यह कहना चाहते हैं कि मुसलमान आपस में सहयोग करें। एक दूसरे के साथ मिलकर ज़िन्दगी गुज़ारें, इसका नमूना हमारे यहाँ सीस्तान व बलोचिस्तान में मौजूद है।
मुसलमानों में एकता, क़ुरआन का निश्चित फ़ैसला है, इसे एक ज़िम्मेदारी की नज़र से देखना चाहिए। मुसलमानों में एकता कोई टैक्टिक नहीं है कि कोई यह सोचे कि ख़ास हालात की वजह से हमें एकजुट होना चाहिए।
दुनिया की बड़ी ताक़तें, उस ज़माने की सभी बड़ी ताक़तें एक मोर्चे पर इकट्ठा हो गयीं और हम पर, इस्लामी गणराज्य पर और इस्लामी इंक़ेलाब पर हमले में शरीक थीं। एक ऐसी जंग और एक ऐसे मुक़ाबले में ईरानी क़ौम फ़तह की चोटी पर पहुंची, वहाँ खड़ी हुयी और अपनी शान दुनिया को दिखा दी। महानता यह है।
इमाम ख़ामेनेई
इब्ने अब्बास से रिवायत है कि पैग़म्बरे इस्लाम ज़मीन पर बैठ जाते थे, ज़मीन पर बैठ कर खाते थे, चौपाये की रस्सी अपने हाथ में पकड़े रहते थे, ग़ुलाम की जौ की रोटी पर दावत को क़ुबूल कर लेते थे।
पाकीज़ा डिफ़ेन्स के तथ्यों में फेरबदल कर दिए जाने का ख़तरा है। फेरबदल करने वाले तत्व घात में हैं। इसलिए वक़्त के लेहाज़ से पाकीज़ा डिफ़ेन्स से जितना ज़्यादा दूर हो रहे हैं, उतना ही मारेफ़त के लेहाज़ से हमें उससे ज़्यादा क़रीब होना चाहिए।
पाकीज़ा डिफ़ेन्स का इतिहास एक पूंजी है, इस पूंजी को मुल्क की तरक़्क़ी के लिए, क़ौमी तरक़्क़ी के लिए, हर क़ौम के सामने मौजूद मुख़्तलिफ़ मैदानों में आगे बढ़ने की तैयारी के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
दुश्मनों ने खुलकर कहा कि वो ईरान में सीरिया और यमन जैसे हालात पैदा करना चाहते हैं। अलबत्ता उन्होंने बकवास की है, वो यह नहीं कर सकते, इसमें कोई शक नहीं है लेकिन, शर्त यह है कि हम पूरी तरह चौकन्ना रहें। अगर आप सोते रहे तो एक बच्चा भी आपको चोट पहुंचा सकता है।
इमाम ख़ामेनेई
दुनिया में बड़ा बदलाव शुरू हो चुका है। इस बदलाव की मूल निशानी, अमरीका जैसी साम्राज्यवादी ताक़तों का कमज़ोर पड़ना और नई क्षेत्रीय व वैश्विक ताक़तों का उभरना है।
वो ख़ुद कहते हैं कि दुनिया में अमरीका की ताक़त के इंडेक्स नीचे जा रहे हैं। कौन से इंडेक्स? जैसे अर्थव्यवस्था, अमरीका की ताक़त के सबसे अहम इंडेक्स में से एक अमरीका की मज़बूत अर्थव्यवस्था थी और वो कह रहे हैं कि यह पतन की ओर जा रही है।
नए बदलाव की कुछ मूल निशानियां हैं। पहली निशानी, साम्राज्यवादी ताक़तों का कमज़ोर हो जाना है, अमरीका की साम्राज्यवादी ताक़त कमज़ोर पड़ चुकी है और भी कमज़ोर हो रही है।
इमाम ख़ामेनेई
11/09/2023
सीस्तान व बलोचिस्तान प्रांत और दक्षिणी ख़ुरासान प्रांत के अवाम तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात के लिए जमा हुए। सभा में आयतुल्लाह ख़ामेनेई के आगमन का लम्हा बड़ा ख़ास था।
इस अरबईन वॉक में जिस इरादे और मज़बूती के साथ आपने क़दम बढ़ाए, जवानों के अंदाज़ में क़दम बढ़ाए, हर मैदान में रूहानियत, हक़ीक़त और तौहीद की हुक्मरानी की राह में इंशाअल्लाह आप इसी मज़बूती से आगे बढ़ेंगे।
ईरानी क़ौम अपने पूरे वजूद से आप अज़ीज़ इराक़ी भाइयों की शुक्रगुज़ार है, ख़ास तौर पर अर्बईन पर मौकिब के मालिकों के शुक्रगुज़ार हैं। हम दिल की गहराई से शुक्रिया अदा करते हैं।
रास्ते में बने मौकिबों में आप अज़ीज़ इराक़ी भाइयों के सुलूक के बारे में, हुसैनी ज़ायरों से आपके दानशीलता के बर्ताव के बारे में हमें जो सूचनाएं मिलती हैं वो ऐसी चीज़ें हैं जिनकी कोई नज़ीर नहीं है।
आज भी जब पेचीदा दुनिया में इंसानियत पर उत्तेजक शोर और प्रोपैगंडा छाया हुआ है, अर्बईन का यह आंदोलन दूर दूर तक पहुंचने वाली आवाज़ और बेमिसाल मीडिया बन गया है। बेमिसाल मीडिया है।
आज इस्लामी जगत ताक़त की एक मिसाल को देख रहा है और वह अर्बईन मार्च है। अर्बईन मार्च इस्लाम की ताक़त है, सत्य की ताक़त है, इस्लामी प्रतिरोध मोर्चे की ताक़त है।