चुनाव, मैदान में अवाम की मौजूदगी की निशानी और अवाम के इरादे व निर्णय का चिन्ह है। इसलिए हर उस इंसान का क़ौमी फ़रीज़ा है कि चुनाव में शरीक हो जो चाहता है कि मुल्क तरक़्क़ी करे काम करे और बड़े लक्ष्य तक पहुंचे।
इस्लाम के सबसे ख़ूबसूरत आध्यात्मिक दृष्यों में से एक, मस्जिदुन नबी में क़ुरआन की तिलावत है, मस्जिद और क़ुरआन एक साथ, काबा और क़ुरआन एक साथ, यह बहुत ही सुंदर संगम है।
हज़रत इब्राहीम ने जो शिक्षाएं हमें दी हैं उनके मुताबिक़ इस साल का हज बेज़ारी के एलान का हज है। पश्चिमी कल्चर से निकलने वाले ख़ूंख़ार वजूद से बेज़ारी का एलान जिसने ग़ज़ा में अपराध किए।
अगर अमरीका की मदद न होती तो क्या ज़ायोनी सरकार में इतनी ताक़त थी, हिम्मत थी कि मुसलमान मर्दों, औरतों और बच्चों के साथ उस छोटे से इलाक़े में ऐसा बर्बरतापूर्ण व्यवहार करे?
हज़रत इब्राहीम की शिक्षाओं की बुनियाद पर इस साल का हज ख़ास तौर पर बराअत का हज है, क्योंकि एक तरफ़ ख़ूंख़ार ज़ायोनी है तो दूसरी ओर ग़ज़ा के मुसलमान अवाम का इतनी मज़लूमियत के साथ प्रतिरोध है।
अगर हमारे ये दसियों लाख बच्चे और नौजवान, सिस्टम के बुनियादी हितों को समझ लें, तो फिर दुश्मन के प्रोपैगंडे और प्रोपैगंडों पर अरबों डॉलर ख़र्च करके की जाने वाली ये सारी कोशिशें वग़ैरह नाकाम हो जाएंगी
ग़ज़ा, दुनिया का सबसे बड़ा मुद्दा है। हमें इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के लोगों की नज़रों से हटने नहीं देना चाहिए, ये मुद्दा नंबर एक की पोज़ीशन से दुनिया के लोगों की नज़रों से हटने न पाए।
अगर बीस साल और तीस साल बाद तक इस हुकूमत को बचाए रखना चाहें, कि जो उनके बस की बात नहीं है, तो भी मुश्किल हल होने वाली नहीं है। मुश्किल तब हल होगी जब फ़िलिस्तीन उसके अस्ली मालिकों को वापस मिल जाए।
ईरान ने कड़ी पाबंदियों के दौरान भी आधुनिक हथियार वो भी इतनी तादाद में तैयार कर लिए! वो इससे भी ज़्यादा तैयार कर सकता है, इससे भी बेहतर तैयार कर सकता है।
इक़बाल अगर आज ज़िंदा होते तो वो एक ऐसी क़ौम को अपनी आँखों के सामने पाते जो अपने क़दमों पर खड़ी है; क़ौम परस्ती, राष्ट्रवाद और ग़ैर ज़रूरी वतनपरस्ती की चहारदीवारी में ख़ुद को क़ैद नहीं करती और इक़बाल की ऐसी ही दूसरी आरज़ूएं जो उनकी क़ीमती किताबों में हर जगह मौजूद हैं, उनको वो क़ौम यहाँ नज़र आती।
इस साल रमज़ान के महीने में ग़ज़ा के ख़ूंरेज़ वाक़यात ने सारी दुनिया में मुसलमानों को रंजीदा कर दिया। अल्लाह की लानत हो क़ाबिज़ ज़ायोनी हुकूमत पर। ज़ायोनी हुकूमत ने एक और ग़लती अपनी ग़लतियों में बढ़ा ली और वो सीरिया में ईरान की काउंसलेट पर हमला था। घटिया हुकूमत को सज़ा मिलेगी।
पश्चिमी हुकूमतों ने अपने फ़रीज़े पर अमल नहीं किया। किसी ने ज़बानी कोई बात कह दी। लोगों के सपोर्ट में लेकिन अमली तौर पर न सिर्फ़ यह कि उन्होंने रोका नहीं बल्कि उनमें ज़्यादातर ने मदद भी की।
ख़ुद दुष्ट हुकूमत ने जो सिर से पैर तक घटिया हरकतों, दुष्टता और ग़लती से भरी हुयी है
एक और ग़लती अपनी ग़लतियों में बढ़ा ली और वो सीरिया में ईरान की काउंसलेट पर हमला था।
रहमान अल्लाह की आम रहमत है जिसका दायरा संसार की सभी चीज़ों पर फैला हुआ है लेकिन कम मुद्दत के लिए यानी क़यामत से पहले तक, रहीम यानी अल्लाह की वो रहमत जो मोमिनों से मख़सूस है और किसी ख़ास वक़्त तक सीमित नहीं है बल्कि हमेशा है।
अल्लाह से माफ़ी के लिए सिर्फ़ दुआ ज़रूरी नहीं है, अमल भी ज़रूरी है। वो अमल क्या है? गुनाहों से तौबा, इस्तेग़फ़ार, गुनाह को छोड़ना और भविष्य में दोबारा न करने का संकल्प, अमल ये चीज़ें हैं।
सभी लोगों को सचेत करता हूं कि चौकन्ना रहिए कहीं आपका दिल टेढ़ा न हो जाए, अगर हम व्यवहारिक तौर पर टेढ़े हो गए तो अल्लाह भी हमारे दिल को टेढ़ा कर देगा, हमारा बुरा कर्म, हमारे दिल को बुरा बना देगा।
ख़ुदा फ़रामोशी की सज़ा, ख़ुद फ़रामोशी है। ख़ुद फ़रामोशी यानी आत्म सुधार को भूल जाना, यानी अपने ऐबों को भूल जाना, ख़ुद फ़रामोशी यानी अपनी सलाहियतों को भुला देना और अपने भीतर पाए जाने वाले विकास, तरक़्क़ी, निखार और उत्थान को भूल जाना है।
इंसान जब ख़ुद अपना हिसाब किताब करता है और अपने ऐबों को देखता है तो शर्मिंदा होता और उन्हें ठीक करने की कोशिश करता है। कम से कम अल्लाह का डर उसके दिल में पैदा होता है। ये वो चीज़ें हैं जो इंसान के लिए उत्थान का सबब हैं।
इस साल का क़ुद्स दिवस एक अंतर्राष्ट्रीय एलाने मुख़ालेफ़त होगा क़ाबिज़ ज़ायोनी हुकूमत के ख़िलाफ़ यानी इस साल अगर पिछले वर्षों में क़ुद्स दिवस सिर्फ़ इस्लामी देशों में मनाया जाता था तो इस साल पूरी संभावना है कि ग़ैर इस्लामी देशों में भी क़ुद्स दिवस इंशाअल्लाह अज़ीम पैमाने पर मनाया जाएगा।
ये शिकस्त यक़ीनन जारी रहेगी, ये नाकाम कोशिशें भी, जैसे ये हरकत जो उन्होंने सीरिया में की, अलबत्ता इसका ख़मियाज़ा उन्हें भुगतना पड़ेगा, इस तरह की हरकतें उनके काम नहीं आएंगी।
जब इंसान अपनी ओर से चौकन्ना रहता है तो वो दीनदार होता है, लेकिन जैसे ही वो अपनी ओर से ग़ाफ़िल होता है, ख़ुद पर अपना अख़्तियार खो देता है और फिर धीरे-धीरे दीन से बाहर निकल जाता है।
जहाँ तक हो सके नमाज़े शब पढ़िए, नमाज़े शब छूटने ने पाए। जवानी का ये मौक़ा जो आपके पास है, दोबारा नहीं मिलता इससे अल्लाह से मोहब्बत के लिए फ़ायदा उठाइये।
पश्चिम के समर्थन से अंजाम पाने वाले ज़ायोनी सरकार के अपराध और दरिंदगी पर ग़ज़ा के अवाम का तारीख़ी सब्र एक अज़ीम हक़ीक़त है जिसने इस्लाम की मर्यादा बढ़ाई।
अगर हम अल्लाह को मानते हैं तो फिर बिखराव का कोई मतलब ही नहीं है और अगर वैचारिक मतभेद भी है तो उसे सच्चे ईमान और अल्लाह से सच्चे लगाव के साए में छिप जाना चाहिए।
बहुत से लोग नमाज़ के लफ़्ज़ों के मानी को नहीं समझते या बहुत थोड़ा समझते हैं, वो भी अगर नमाज़ की हालत में और उसके लफ़्ज़ों को अदा करते हुए इस बात की ओर ध्यान रखें कि वो अल्लाह से बात कर रहे हैं तो इसका असर होगा। मतलब ये कि इंसान नमाज़ पढ़ते हुए मानसिक तौर पर हाज़िर रहे और अल्लाह के सामने अपनी हाज़िरी को महसूस करे तो असर होगा।
मज़लूम फ़िलिस्तीनी बच्ची जिसने अपनी शहादत से पहले एक वसीयतनामा लिखा था और इस वसीयतनामे में ड्राइंग की थी। जो कुछ उसके पास था उसने बख़्श दिया था। इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शबे विलादत इमाम ख़ुमैनी इमाम बारगाह में बच्ची को शेर पढ़कर श्रद्धांजलि दी गई।
दुनिया का मोह, इच्छाओं के पूरे न होने और हैवानी इच्छाओं और वासनाओं को कुचले न जाने की वजह से इंसान धीरे-धीरे ईमान से कुफ़्र की ओर झुकने लगता है। हमें इस बात की ओर से चौकन्ना रहना चाहिए कि मोमिन होने के बाद हम मुनाफ़िक़ न बन जाएं।
वाक़ई आप बेमिसाल शख़्सियत के मालिक हैं। आम तौर पर राजनेता और मुल्क चलाने वाले लोग सामाजिक व आर्थिक मामलों पर तो गहरी नज़र रखते हैं मगर शेर व साहित्य की ओर ज़्यादा ध्यान नहीं होता।