कोई भी चीज़ इससे बढ़कर नहीं है कि कोई इंसान अपने हाथों से, अपने इरादे और अख़्तियार से अपनी जान और अपना वजूद एक बड़े पाकीज़ा और अज़ीम मक़सद के लिए क़ुर्बान कर दे। शहादत के मानी यह हैं। इमाम ख़ामेनेई 27 सितम्बर 1998
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