जिस वक़्त तक़वा और परेहज़गारी की बात होती है, इंसान का ज़ेहन शरीअत की ज़ाहिरी चीज़ों, हराम से दूरी और वाजिब पर अमल की ओर जाता है, लेकिन तक़वे में दूसरे पहलू भी हैं कि जिसकी ओर से हम में से ज़्यादातर लोग लापरवाही दिखाते हैं। मकारेमुल अख़लाक़ नामी दुआ में एक जुमला है जिससे इन पहलुओं की व्याख्या होती हैः “अल्लाह से इल्तेजा करते हैं कि परवरदिगार! मुझे सालेहीन के ज़ेवर से सजा दे और परहेज़गारों का लिबास पहना दे। अच्छा तो यह परहेज़गारों का लिबास क्या है? उस वक़्त यह दिलचस्प व्याख्या देखने को मिलती है, परहेज़गारों का लिबास न्याय व इंसाफ़ क़ायम करना है और ग़ुस्से को पी जाना है... आपस में आग भड़काने, इधर उधर लगाने, इनको उनका दुश्मन बनाने और इनके उनके राज़ का पर्दाफ़ाश करने के बजाए “आपस में सुलह सफ़ाई व मेल-जोल कराएं”, मोमिन भाइयों के बीच, इस्लामी बंधुओं के बीच भाईचारा पैदा करें, ये सब तक़वा है।
इमाम ख़ामेनेई
10/8/2010