इस्लामी पहचान यह है कि औरत अपनी पहचान और औरत होने की ख़ूबियों को बाक़ी रखने के साथ साथ, तरक़्क़ी के मैदान में आगे बढ़े। यानी अपनी कोमल जज़्बात और भीतर से उबलते हुए जज़्बात की, मोहब्बत और कोमलता की और अपनी ज़नाना पाकीज़गी की रक्षा करते हुए आत्मिक मूल्यों के मैदान में आगे बढ़े, राजनैतिक और सामाजिक मामलों में भी सब्र, स्थिरता और दृढ़ता दिखाए, दुश्मन की साज़िशों की पहचान, दुश्मन की पहचान और दुश्मन की शैलियों की समझ में दिन ब दिन इज़ाफ़ा करे और घरों और परिवारों के भीतर सुकून व इत्मेनान का माहौल बनाने में आगे निकले। इमाम ख़ामेनेई 20/11/2000
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