ऐ मेरे अल्लाह! बेशक जो तेरे ज़रिए पहचाना गया वह गुमनाम नहीं रहता और जो तेरी पनाह में आया वह बे यार व मददगार नहीं होता और जिसकी ओर तूने रुख़ क़िया वह ग़ुलाम नहीं बनता। (शाबान की विशेष मुनाजात से)