वे लोग सोच रहे थे कि कामयाब हो गए हैं और हिज़्बुल्लाह का काम तमाम हो गया है। 12-13 दिन गुज़रने के बाद, स्थिति बदल गयी। उसके बात तो वे लोग ख़ुद ही संघर्ष विराम के लिए हाथ पैर जोड़ने लगे। फिर प्रस्ताव तैयार हुआ। उससे पहले जो भी प्रस्ताव दिया जाता, उसे रद्द कर देते थे।