आप देखते हैं कि हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को ‎मदीने से सामर्रा लाया गया और जवानी की उम्र में, 42 साल की उम्र में उन्हें शहीद कर दिया गया। ‎या हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को 28 साल की उम्र में शहीद किया गया। ये सारी ‎बातें इतिहास में इमामों, उनके साथियों और शियों के आंदोलन की महानता और वैभव की निशानियां ‎हैं। इमाम ख़ामेनेई 10 मई 2003