हालिया कुछ महीनों में सुप्रीम लीडर ने जिन अहम बातों का ज़िक्र किया उनमें एक मौजूदा वर्ल्ड आर्डर में बदलाव और एक नये वर्ल्ड आर्डर की तरफ प्रस्थान का बिंदु शामिल है। उनके मुताबिक़ इस बदलाव की सब से बड़ी बात, वेस्ट और अमरीका की ताक़त का अंत है। KHAMENEI.IR वेब साइट ने इस विषय पर रौशनी डालने और इसका जायज़ा लेने के लिए ईरान की न्यायपालिका के ह्यूमन राइट्स कमीशन के सचिव डॉक्टर जवाद लारीजानी से बात की।
क्या आज दुनिया में होने वाले बदलाव में और इन्टरनेशनल सतह पर ईरान की निर्णायक पोज़ीशन है या नहीं? क्या ऐसे सुबूत और बदलाव सामने आ रहे हैं जिनसे इस ख़्याल की पुष्टि हो?
जवाबः नब्बे के दशक में सोवियत युनियन के ख़ात्मे के बाद ज़ायोनिस्ट वेस्ट ने जो पहली थ्योरी पेश की और जिस का जम कर प्रोपैगंडा किया और जिससे फ़ायदा उठाया वह यह थी कि अब अमरीकी लीडरशिप के सामने कोई चैलेंज और उसके सामने टिकने वाला कोई नहीं है। इस सिलसिले में अजीब तरह की थ्योरियां भी पेश की गयीं।
मिसाल के तौर पर फोकोयामा ने अपनी किताब The End of History and the Last Man में लिखा है कि अब सब कुछ पूरा हो गया और इन्सान का इन्सान बनने का सफ़र मुकम्मल हुआ। लिबरल सेक्युलरिज्म पूरी दुनिया पर छा जाएगा और इस्लामी इन्क़ेलाब और इस तरह के दूसरे सभी रेज़िस्टेंस पूरी तरह ख़त्म हो जाएंगे।
हैंटिंग्टन ने भी अपनी किताब Clash of Civilizations में लिखा है कि मौजूदा जंग और झगड़ों की थ्योरी, कल्चरल मैदान तक पहुंच गयी है और इन सब को लिबरल सेक्युरलिज़्म के सामने हार का सामना करना पड़ेगा। इस लिए हम आख़िरी विजेता हैं और इन्टरनेशनल सतह पर अमरीका और ज़ायोनिस्ट वेस्ट की लीडरशिप ने अपना मिशन पूरा कर लिया है। इसके बाद इस थ्योरी के साथ कि दुनिया में दूसरा ब्लॉक ख़त्म हो चुका है और अब अमरीका की सुपर पावर की हैसियत के सामने कोई चैलेंज नहीं है, उन्होंने आगे क़दम बढ़ाना शुरु किया और इराक़ व अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया। लेकिन ज़मीनी सच्चाई के बारे में उनका यह ख़्याल सही नहीं था।
सोवियत युनियन के बिखर जाने के बाद वर्ल्ड आर्डर के सिलसिले में यह थ्योरी किस हद तक ज़मीनी सच्चाईयों से मेल खाती थी?
जवाबः धीरे धीरे यह साबित हो गया कि अमरीका की निर्विवाद अंतर्राष्ट्रीय लीडरशिप और पूरी दुनिया पर क़ब्ज़ा करने का उसका दावा इतनी आसानी से पूरा होने वाला नहीं है और उसे कई मोर्चों पर हार का सामना करना पड़ा। सब से पहली हार, फ़ौजी हार थी जैसे इराक़ में उन्हें मिलने वाली शिकस्त। अमरीकियों ने बेवक़ूफ़ी में यह सोच लिया था कि इराक़ पर एक फ़ौजी शासक थोप कर वह सब कुछ ठीक कर लेंगे लेकिन उन्हें बहुत जल्द उस एडमिनिस्ट्रेटर को हटाने पर मजबूर होना पड़ा और अब उन्हें पब्लिक के दबाव के सामने मजबूर होकर इराक़ छोड़ना पड़ेगा।
एक और मिसाल अफ़ग़ानिस्तान में नेटो का मिशन है। शुरु में नेटो, सोवियत संघ के हमलों से अपने मेंबरों के बचाव के लिए बनायी जाने वाली एक यूनियन थी और उसका मिशन, डिफ़ेंसिव था और वह मेंबर मुल्कों की सरहदों के अंदर तक ही सीमित थी। लेकिन सोवियत युनियन के बिखराव के बाद, वेस्ट ने नेटो के चार्टर को बदल दिया और उसके दायरे को मेंबर मुल्कों की सरहदों से बाहर तक फैला दिया। उसका पहला मिशन अफ़ग़ानिस्तान था लेकिन उसका अंजाम क्या हुआ? अफ़ग़ानिस्तान में नेटो को जो हार मिली है वह अमरीका के सामने सोवियत संघ की हार से कम नहीं बल्कि उससे भी ज़्यादा बड़ी है।
नये रूस ने भी, पूरी दुनिया पर क़ब्ज़े के वेस्ट के ख़्याल और दावे पर अहम चोट लगायी। पुतीन बड़ी तेज़ी से पूर्व सोवियत संघ के कुछ हिस्सों को नेशनलिज़्म, आज़ादी और ताक़त के लेहाज़ से दोबारा एक साथ लाने और रूस को एक अहम और असरदार मुल्क बनाने में कामयाब रहे। अमरीकी लीडरशिप के लिए यह बहुत बड़ा चैलेंज था।
अब दुनिया को लीड करने का दावा करने वाले वेस्ट के सामने दो बड़े चैलेंज थे। एक रूस की तरफ़ से था और दूसरा चैलेंज, वेस्टर्न एशिया और इस्लामी दुनिया में इस्लामी जुम्हूरिया ईरान की मौजूदगी और उस रेज़िस्टेंस मोर्चे की तरफ़ से था जिसकी बुनियाद, इमाम ख़ुमैनी ने रखी थी। इसी के बाद से यह भी साबित हो गया कि दुनिया की लीडरशिप इतनी आसान भी नहीं है।
इसके अलावा भी अमरीका के सामने दूसरे बहुत से चैलेंजेज़ हैं। दुनिया साउथ अमरीका में रेसिटेंस मोर्चा बन गया। मिसाल के तौर पर वेनेज़ोएला और क्यूबा में लोगों ने जिस तरह अमरीकी विस्तार के सामने डट जाने का फ़ैसला किया या फिर जो कुछ ब्राज़ील में हुआ वह सब एक तरह से अमरीका की तरफ़ से दुनिया की लीडरशिप के दावे की नाकामी ही है।
इस्लामी इन्क़ेलाब, जो इस्लामी जुम्हूरिया की वजह बना, सिर्फ़ हमारी सरहदों तक ही सिमटा नहीं रहा। रेज़िस्टेंस मोर्चा आज वेस्टर्न एशिया में एक अहम और असरदार मोर्चा है। हम ने सीरिया में देखा कि किस तरह ज़ायोनिज़्म, अमरीकी साम्राज्यवाद, वेस्टर्न सपोर्ट और इस्लामी दुनिया के कुछ दोग़ले लोग एक साथ जमा हो गये थे जो दरअस्ल ब्लैक वॉटर की मदद से काम करने के एक ख़ास क़िस्म के नज़रिये की नुमाइंदगी करते हैं। वही ब्लैक वॉटर जो एक सेक्युरिटी कंपनी की आड़ में बेपनाह हिंसा की ट्रेनिंग देती है और पैसे लेकर इन्सानों का क़त्ल करती है। लेकिन रेज़िस्टेंस मोर्चे ने विश्व साम्राज्यवाद की इस साज़िश को पूरी तरह नाकाम बना दिया जिस पर दर अस्ल सीरिया, लेबनान, ईरान, इराक़ और दूसरे बहुत से मुल्कों में अमल होने का प्लान था। इस लिए यह पूरी तरह साफ़ हो गया कि रेज़िस्टेंस मोर्चा एक अहम सब्जेक्ट है।
आप से आख़िरी सवाल यह है कि आप की राय में न्यु वर्ल्ड आर्डर कब स्टेबल होगा और यह अंतरिम दौर कितना लंबा होगा?
जवाबः न्यू वर्ल्ड आर्डर अभी बना नहीं है। अभी जो कुछ नज़र आ रहा है वह दरअस्ल उस सिस्टम और आर्डर का अंत है जिसका दावा अमरीका और वेस्टर्न सरकारें करती रही हैं। न्यू वर्ल्ड आर्डर को सही बुनियादों पर क़ायम किया जाना चाहिए। न्यू वर्ल्ड आर्डर बनाने के इस प्रोसेस में ईरान की भागीदारी की अहमियत है। यूएनओ को उन लोगों का अखाड़ा नहीं बनना चाहिए जो ख़ुद को दुनिया का मालिक और नरेश समझते हैं। यूएनओ को पूरी दुनिया के सभी लोगों की पनाहगाह होना चाहिए।
हम न्यू वर्ल्ड आर्डर बनने के प्रोसेस से गुज़र रहे हैं कि जिसने वेस्टर्न मुल्कों के असर को ख़त्म कर दिया है लेकिन नया वर्ल्ड आर्डर बनना अभी बाक़ी है। इन्टरनेशनल स्तर पर ईरान की मौजूदगी की अहमियत इसी लिए है। इनशाअल्लाह फ्यूचर के नये वर्ल्ड आर्डर में इस्लामी दुनिया, इस्लामी रेज़िस्टेंस का और साम्राज्यवाद विरोधी मुल्कों का रोल अहम होगा।