"ख़ुदा की क़सम मैं मुंतज़िर हूं।"

अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) अपने चचा, भाई और चचेरे भाई के साथ बैठे और एक बाद का अहद किया कि हम इस राह में शहीद हो जाने तक बिना डरे आगे बढ़ते रहेंगे, शहीद हो जाने तक जेहाद करते रहेंगे। इसके बाद अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) फ़रमाते हैं, मेरे यह साथी मुझसे आगे निकल गए और मैं पीछे रह गया। ख़ुदा की क़सम मैं मुंतज़िर हूं।


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